पेठे वाले कुम्हड़े की खेती: कम लागत के साथ ज़्यादा मुनाफ़ा, ऐसे करें खेती

Sumit Yadav | Feb 03, 2021, 12:37 IST
पेठे की मिठाई आप में से ज्यादातर लोगों ने खाई होगी। पेठा मिठाई कुम्हड़ा से बनाई जाती है। इसकी खेती में लागत और देभखाल काफी कम होती है। इसे छुट्टा पशु तक नहीं खाते हैं। ऐसे कम लागत में इसकी खेती से मुनाफा कमाया जा सकता है।
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उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। ज्यादातर फसलों में लागत अधिक लगाने के बाद भी अच्छा मुनाफ़ा न मिलना किसानों की एक बड़ी समस्या है परंतु कुम्हड़े की खेती में कम लागत के साथ ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।

पेठे को तो सभी जानते हैं लेकिन यह कम लोग ही जानते होंगे कि पेठा बनाने में कुम्हड़े का इस्तेमाल होता है। पेठे की मांग के चलते कुम्हड़े की मांग भी बढ़ी है। 120-150 दिन में तैयार होने वाली कुम्हड़े की फसल किसानों में काफी लोकप्रिय हो रही है। पेठा वाले कुम्हड़ा को देश के कई राज्यों में खबहा भी कहा जाता है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव में कुम्हड़े की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। खेतों से तोड़कर रखें कुम्हड़ों के पास बैठे 72 वर्ष के जगरूप सिंह चार बीघे में कुम्हड़े की खेती करते हैं। गाँव कनेक्शन से बात करते हुए जगरूप कहते हैं कि बरसात के सीज़न में खेती के लिए कुम्हड़े की फसल अच्छा विकल्प है। इसमें कम लागत के साथ अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। 100 रुपए के बीज से 3 बीघे में कुम्हड़ा बोया जा सकता है।

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उत्तर प्रदेश में पेठा के लिए आगरा मशहूर है लेकिन पेठा कद्दू की खेती उन्नाव, बरेली, कानपुर देहात समेत कई जिलों में होती है। फोटो- सुमित यादव

किसान देवी शंकर कुम्हड़े की खेती के बारे में बताते हैं, "बरसात शुरू होते ही इसकी बुआई की जाती है। समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहे खाद डालते रहे बस फसल तैयार हो जाती हैं। ज्यादा मेहनत नही है लागत कम है और मुनाफ़ा भी ठीक है।"

खरीफ की फसलों में मक्का, उड़द, मूंग को छोड़कर कुम्हड़े की तरफ रुख करने वाले अशोक कुमार लगभग 10 बीघा में कुम्हड़े की खेती करते हैं। गाँव कनेक्शन से अशोक ने बताया, "मक्का, उड़द, मूंग के बजाय कुम्हड़े की खेती अच्छी है। हमारे यहाँ खेत से ही व्यापारी खड़ी फसल ख़रीद लेते हैं और खुद ही खेत से तुड़वा लेते हैं। पेठे की मांग बढ़ने से कुम्हड़े की मांग बढ़ी है। इसलिए अभी तक नुकसान नहीं हुआ है।"

कैसे करें कुम्हड़े की खेती

खरीफ की फसल में पारंपरिक फसलों से मुँह मोड़ चुके किसानों के लिए कुम्हड़ा अच्छा विकल्प है। हालांकि कुम्हड़े के लिए बालुई मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है फिर भी जिन खेतों में पानी न रुकता हो वहाँ कुम्हड़े की खेती की जा सकती है। जून के अंत या जुलाई के शुरुआत में कुम्हड़े की बुआई की जाती है, इसके लिए खेत को अच्छी तरह तैयार कर ले, फिर गोबर की खाद के एक लाइन में छोटे छोटे ढेर लगा दे। और इन्ही ढेरों पर 5 से 10 बीज तक गाड़ सकते हैं।

खरपतवार होने पर उसकी निराई करते रहें। फूल आने के समय खाद का हल्का छिड़काव कर दे। इस समय रोग लगने के आसार अधिक रहते हैं जिससे फसल को नुकसान हो सकता है। इसलिए रोग के लक्षण दिखाई दें तो विशेषज्ञ की सलाह से दवा का उचित छिड़काव कर दें। फसल तैयार होने पर फलों की तुड़ाई किसी धारदार हथियार (चाकू, कैची जैसे) से करें जिससे फल में लगा डंठल न टूटे, डंठल टूटने पर फल के जल्दी सड़ने की संभावना मानी जाती है। इसके बाद इन्हें कही भी खुले स्थान पर रख सकते हैं। फलों को रखने के समय ध्यान रखना है कि एक फल के ऊपर दूसरा फल नहीं रखना है वर्ना इनके सड़ने /खराब होने की आशंका बढ़ जाती हैं। सही बाजार कीमत आने पर आसानी से बेचकर अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।

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