कुम्हड़ा की बुवाई का ये है सही समय, पेठा की इस फसल में लागत कम मुनाफा ज्यादा

Neetu Singh | Apr 23, 2018, 13:40 IST
कुम्हड़ा
क्या आप जानते हैं जो पेठा हम और आप खाते हैं वो बनता कैसे है, क्या उसकी कोई फसल होती है? जी हाँ, जिस चीज से पेठा बनता है उसे देश के अलग-अलग राज्यों में कई नामों से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में इसे कुम्हड़ा कहते हैं। कुम्हड़ा एक ऐसी फसल है जिसकी लागत कम आती है और मुनाफा अच्छा होता है।

कुम्हड़ा की फसल अलग-अलग महीनों में कच्ची और पक्की फसल के रूप में ली जाती है। मई के तीसरे और चौथे सप्ताह में अगर कुम्हड़ा की बुवाई की जाए तो इसे कच्ची फसल या अगैती फसल कहते हैं। अगर कुम्हड़ा की बुवाई जुलाई में की जाए तो उसे पक्की फसल कहते हैं। तीन से चार महीने की इस फसल से एक बीघे में मंडी भाव के हिसाब से किसान 15 से 35 हजार तक का मुनाफा कमा सकते हैं। कुम्हड़ा की फसल से बनने वाले पेठे की मिठास विदेशों तक फैली है। आगरा पेठे का गढ़ माना जाता है।

कुम्हड़ा यानि पेठे की खेती सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित पूरे भारत में कुम्हड़े की खेती होती है। कुम्हड़ा को पूर्वी उत्तर प्रदेश में भतुआ कोहड़ा, भूरा कद्दू, कुष्मान या कुष्मांड फल के नाम से भी जानते हैं। कुम्हड़े की मार्केटिंग में किसानों को किसी तरह की परेशानी से नहीं जूझना पड़ता है, क्योंकि पेठा मिठाई के कारोबारी इसकी तैयार फसल को खेतों से ही खरीद लेते हैं। जिन जिलों में कुम्हड़ा की खेती ज्यादा होती है वहां पेठा बनने की फैक्ट्री भी लगी होती हैं जिससे किसान सीधे फैक्ट्री में जाकर इसे बेच सकता है।

कानपुर देहात जिले में कुम्हड़े की खेती हजारों बीघा होती है। यहां के किसान कुम्हड़ा की खेती को जुआ की फसल मानते हैं अगर मंडी भाव अच्छा मिल गया तो एक बीघे में हर फसल की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा होता है। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर राजपुर ब्लॉक के इटखुदा गाँव के निवासी राजनारायण कटियार (37 वर्ष) बताते हैं, “कुम्हड़ा के खेत में किसान दो से तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं। कुम्हड़ा की खेती जुए के सामान है अगर बाजार भाव ठीक रहा तो किसान और व्यापारी दोनों को अच्छा फायदा होता है। किसान को जरूरत के हिसाब से एडवांस में भी व्यापारी पैसे दे देते हैं।”

कुम्हड़ा की फसल में लागत कम होती है इसलिए इसे छोटी जोत के किसान भी आसानी से कर सकते हैं। कुछ किसान कुम्हड़ा की फसल करने के साथ ही अपने क्षेत्र के कुम्हड़ा व्यापारी बन जाते हैं जो किसान की फसल सीधे खेत से खरीद लेते हैं। पेठा बनाने में इस्तेमाल कुम्हड़ा की मांग आगरा, कानपुर और बरेली की मंडियों में बहुत ज्यादा रहती है। एक बीघा खेत में कुम्हड़ा का उत्पादन 60-80 कुंतल तक हो जाता है।

कुम्हड़ा बुवाई करने का ये है तरीका

अगर किसान अगैती कुम्हड़ा की खेती करना चाहता है तो खेत खाली होते ही गहरी जुताई करा दे। गहरी जुताई के बाद किसान 15 मई तक खेत की पलेवा कर दें। पानी लगाने के बाद खेत 20 मई तक कुम्हड़ा की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के एक सप्ताह बाद पहला पानी और पहला पानी लगाने के 15 दिन बाद दूसरा पानी लगाते हैं। इसके बाद अगर बारिश हो गयी तो फिर पानी लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

कुम्हड़ा की बुवाई के लिए पन्द्रह हाथ का एक सीधा लकड़ी का डंडा ले लेते हैं, इस डंडे में दो-दो हाथ की दूरी पर फीता बांधकर निशान बना लेते हैं जिससे लाइन टेढ़ी न बने। दो हाथ की दूरी पर लम्बाई और चौड़ाई के अंतर पर गोबर की खाद का घुरवा बनाते हैं जिसमे कुम्हड़े के सात से आठ बीजे गाढ़ देते हैं अगर सभी जम गए तो बाद में तीन चार पौधे छोड़कर सब उखाड़ कर फेंक दिए जाते हैं। किसान इस बात का ध्यान रखें की लाइन सीधी रहे।

कुम्हड़े के खेत में खरपतवार बिल्कुल नहीं होनी चाहिए इसलिए खेत की निराई-गुड़ाई हमेशा होती रहे। इस फसल में समय-समय पर बहुत कम मात्रा में खाद डाली जाती है। बुवाई ऐसे खेत में करते हैं जिसमे पानी का भराव न रहे, क्योंकि अगर बरसात में ज्यादा पानी हो गया और पानी निकास की सुविधा नहीं है तो कुम्हड़ा सड़ने की सम्भावना ज्यादा रहती है।

Tags:
  • कुम्हड़ा

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.