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बेमौसम बारिश ने बढ़ाई किसानों की चिंता, हर दिन 20% फसलें चौपट

गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:08 IST
India
लखनऊ। बीते तीन सालों से मार्च का महीना किसानों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा है। जब बारिश की ज़रूरत होती है तो बारिश नहीं होती है और जब फसलें तैयार होने का वक्त करीब आता है तो बेमौसम बारिश और ओले सबकुछ चौपट कर देते हैं। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो एक दिन की बारिश और ओले 15 से 20% तक फसलें खराब होने की आशंका है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के जियोग्राफी डिपार्टमेंट के प्रेसिडेंट आरबी सिंह बताते हैं,''मौसम में पिछले दो सालों में कुछ बदलावों की वजह से मार्च महीने में मॉनसून सीजन की तरह बारिश हो रही है।''इस वक्त खेतों में गेहूं, सरसों, दालें पकी होती हैं। ऐसे में अगर बारिश और ओले गिरने लगें तो किसान के नुकसान के अलावा ये देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी ठीक नहीं है।

बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा नुकसान

ओले पड़ने से सबसे ज्यादा नुकसान बुंदेलखंड के जालौन जिले में हुआ है। जालौन की तहसील माधौगढ़ में 32 से ज्यादा गाँवों में फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं। जलौन से 20 किलोमीटर दूर उरई के पास वजीदा गाँव के किसान नरेश सिंह (29 वर्ष) ने फोन पर बताया, “ पत्थर ( ओले) पड़ने और बारिश से मेरी 10 बीघे मटर और 15 बीघे गेहूं बर्बाद हो गया। मटर में अब कुछ नहीं बचा है। एक-एक पत्थर (ओला) से 50 से 100 ग्राम का ग्राम का था ऐसे में क्या बचता।”

जालौन में माधौगढ़ के तहसीलदार बीके राव बताते हैं, ''करीब तीन से चार किलोमीटर की एरिया (क्षेत्र) में चक्रवात की तरह आया था। कल्हरपुरा, कुंवरपुरा समेत 32 से ज्यादा गाँवों में 70 से 80 फीसदी गेहूं, चना, मटर और अरहर को नुकसान पहुंचा है। हम लोग प्लाट टू प्लाट (खेत-खेत जाकर) सर्वे कर रहे हैं। किसानों को हर संभव सहायता दिलाई जाएगी।'' पिछले वर्ष भी रवि की फसल के दौरान पहले सूखा और फिर मार्च-अप्रैल में हुई बारिश ने किसानों की कमर तोड़ दी थी।

जालौन के साथ ही बुंदेलखंड के बांदा और महोबा में भी मौसम ने कहर बरपाया है। बुंदेलखंड वही इलाका है जहां से पूरे देश में दाल उत्पाद का 40 फीसदी हिस्सा पैदा होता है। ऐसे अगर यही मौसम रहा तो दलहन और सरसों के उत्पादन और महंगाई दोनों पर असर पड़ेगा। मौसम में बदलाव की वजह पश्चिमी विक्षोभ को बताया जा रहा है। यानि मौसमी परस्थितियों में वह बदलाव जो प्रशांत महासागर के अचानक गर्म होने की वजह से होता है।

उत्तर प्रदेश मौसम विभाग के निदेशक जेपी गुप्ता बताते हैं, “रविवार को पूर्वी यूपी समेत प्रदेश के कई इलाकों में बारिश हो सकती है। पिछले कई वर्ष से मार्च में बारिश का चलन बढ़ा है।”

पश्चिमी यूपी में पिछले दो दिनों से रुक-रुक कर बारिश और तेज हवाएं चल रही हैं। मेरठ में भटीपुरा के पास शनिवार की सुबह बड़े-बड़े ओले गिरे। भटीपुरा के किसान किसान नितिन काजला (29 वर्ष) बताते हैं, ''सरसों की सफल को नुकसान हुआ है, गेहूं पर असर हुआ है ये दो तीन दिन बाद पता चलेगा, अगर पौधे खड़े हो गए तो कम, वर्ना नुकसान बढ़ जाएगा।”

मेरठ के जिला विभाग के अनुसार ज़िले में 78 हज़ार हेक्टर कृषि भूमि में गेहूं और सरसों की बुवाई, 40 हज़ार हेक्टर में आलू और अन्य सब्जियां जबकि करीब 14 हज़ार हेक्टेयर में आम समेत अन्य फलों की खेती की जाती है।

मेरठ के कृषि अधिकारी जसवीर सिंह बताते हैं, “क्योंकि हमारे यहां गन्ना काटकर गेहूं सरसों बोया जाता है, इसलिए पछेती फसलों में नुकसान कम है, फिर भी 10-15 फीसदी असर जरूर पड़ेगा।”

कृषि विश्वविद्यालय मेरठ के वैज्ञानिक डॉक्टर आर एस सेंगर बताते हैं, “जो फसलें जमीन में लेट गई हैं उनमें नुकसान तय है, लेटी फसल पर ओले गिरे हैं तो अधिकतर फलियां फट जाएंगी और बचे दाने भी काले पड़ सकते हैं। अब अगर तामपान गिरा तो आम और फलों में कीड़े भी लग सकते हैं।”मौसम के बदलते तेवर को देखकर बुंदेलखंड के किसान सहमे हुए हैं। भारतीय किसान यूनियन (भानु) के बुंदेलखंड के प्रवक्ता आशीष सागर बताते हैं, “पिछली बार रवि की फसल के दौरान मौसम के कहर को किसान अभी तक भूले नहीं हैं। जालौन में आटा स्टेशन के पास मसगांव गाँव में ओले पड़ने से खरपैल तक टूट गए हैं। बांदा के नाराणनी में भी पत्थर पड़े हैं। अगर फिर बारिश और ओले पड़े तो रही सही कसर पूरी हो जाएगी।”

राजस्थान और मध्यप्रदेश में गेहूं और सरसों की कटाई चल रही है जबकि यूपी में सरसों और मसूरी की कटाई चल रही हैं, ऐसे में उन्हें काफी नुकसान हो सकता है। बारिश ज्यादा हुई तो कटी हुई फसल और पकी हुई दोनों को नुकसान हो सकता है। हां मेंथा की रोपाई कर रहे किसानों को जरूर फायदा हो सकता है।

बीते साल 25% फसलें बर्बाद हुईं

  1. पिछले साल मार्च-अप्रैल की बारिश और ओलों से 25% फसलें तबाह हो गई थीं। गेहूं का उत्पादन 114 लाख टन टारगेट के मुकाबले 102 लाख टन हुआ था।
  2. 3 मार्च को 97.4 एमएम बारिश हुई थी करनाल में, जो मार्च महीने का रिकॉर्ड है।
  3. दिल्ली-एनसीआर समेत कई राज्यों में रुक-रुककर बारिश के साथ कई जगहों पर ओले गिरे। वहीं जम्मू-कश्मीर के ऊपरी इलाकों में बर्फबारी और श्रीनगर समेत मैदानी इलाकों में बारिश हुई। बेमौसम बारिश से टेम्परेचर काफी नीचे आ गया है।


अरब सागर-बंगाल की खाड़ी में हलचल के चलते बदला मौसम

  1. अरब सागर और बंगाल की खड़ी से जो हवाएं चल रही हैं, वो राजस्थान के ऊपर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस से बने चक्रवात से टकराकर बारिश और कहीं-कहीं ओले गिराती हैं।
  2. 2015 के मार्च महीने में इन्हीं बदलावों और अलनीनो फैक्टर की वजह से 100 साल की बारिश का रिकॉर्ड बना था।
  3. इसी को देखते हुए मार्च महीने में इस बार मौसम विभाग ने पहले ही बता दिया था कि वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के कारण दिल्ली-एनसीआर, उत्तर भारत के कई राज्यों में 11, 12 और 13 मार्च को बारिश होगी।


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