पिंक बॉलवर्म के हमले और बढ़ती लागत से संकट में महाराष्ट्र के कपास किसान

Mithilesh Dhar | Oct 08, 2018, 06:45 IST
#Cotton farmers
नागपुर/छिंदवाड़ा। महाराष्ट्र और उसके सीमावर्ती मध्य प्रदेश के कपास किसान अब हार मानने लगे हैं। लगातार होते नुकसान के कारण कपास से उन्हें सिवाय निराशा कुछ हाथ नहीं लग रहा। इस साल भी पिंक बॉलवर्म के हमले के बाद अब फसल को बचाने के लिए चार से पांच बार दवा का छिडकाव करना पड़ रहा। मजदूरी भी बढ़ गयी है। लेकिन कपास की कीमत वैसी नहीं बढ़ी जैसे महंगाई बढ़ रही। ऐसे में कपास किसानों का अब कपास से धीरे-धीरे मोह भंग हो रहा।

"साहब बीटी कपास अब किसी काम का नहीं रहा। ये मैं इस साल तीसरी बार स्प्रे कर रहा हूं। कीट लगने के बाद अब इसे बचाना बहुत मुश्किल हो रहा है। मैं 10 साल से कपास की खेती कर रहा हूं। पहले हम देसी बीज लगाते थे। लेकिन फिर बीटी आ गया। हमें बताया गया कि इस किस्म में कीड़े नहीं लगेंगे। लेकिन अब कीड़े रुक ही नहीं रहे। मजदूरी भी बढ़ गयी है। खाद भी महंगा हो गया है। महंगी दवाओं के छिडकाव के बाद भी ये नहीं पता होता कि फसल इससे बच जाएगी।" महाराष्ट्र के नागपुर, वाड़ी के कपास किसान बाबू राव सोनकुसरे (65) अपने खेत के कपास पर स्प्रे करते हुए कहते हैं।



पिंक बॉलवॅर्म ने पिछले दो वर्षों के दौरान महाराष्ट्र की कपास फसल को नुकसान पहुंचाया है और तीसरी बार भी इस तरह का नुकसान हो सकता है। इस बार केंद्र सरकार ने इस कीड़े की वजह से हुए नुकसान के लिए महाराष्ट्र कपास किसानों के दावों को अभी तक मंजूरी नहीं दी है।

बाबू राव के साथ उनका 30 वर्षीय बेटा राम सोनकुसरे भी खेती में उनका हाथ बंटाता है। कपास की खेती में होते नुकसान पर राम कहते हैं "मैंने बीकॉम तक की पढ़ाई की है। 10 एकड़ में कपास लगाया है। पिछले साल 15 एकड़ में लगाया है। सरकार कहती है कि युवाओं को खेती से जुड़ना चाहिए। क्या फायदा है। पिछले साल जब फसलों में कीड़े लगे थें तब वैज्ञानिक हमारे खेतों में आये थे और बोले कि अगली बार ऐसा नहीं होगा। लेकिन देखिये, बारिश कम हुई और गुलाबी कीड़े फूल ही ख़त्म कर दे रहे हैं। अब इतनी मेहनत के बाद अगर अपनी फसल बचानी है तो कीटनाशकों पर ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। इतने खर्च के बाद आखिरी में हमारे हाथ कुछ नहीं बचेगा। अब हम अगली बार कपास की खेती और कम करेंगे।"

ये पहली बार नहीं हुआ कि पिंक बॉलवर्म कपास किसानों के लिए आफत बनकर आया है। लेकिन इससे जूझते-जूझते अब किसानों का दम जवाब देने लगा है। रही सही कसर कम बारिश ने पूरी कर दी है। महारष्ट्र एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के अनुसार 15 जून से पहले बोई गयी कपास पर पिंक बॉलवर्म का असर ज्यादा है। इसके लिए ज्यादा कीटनाशकों के इस्तेमाल को भी कारण बताया जा रहा है। कम बारिश के कारण के इसका असर बढ़ा है।

लेकिन क्या इसके लिए बस किसानों को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मध्य प्रदेश, छिंदवाड़ा जिले के उन क्षेत्रों में भी कपास की खेती खूब होती है जो नागपुर से सटे हुए। छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 90 किमी पांढुर्णा के कपास सुहास अतकरे (55) कहते हैं "पिछले साल भी जब गुलाबी कीट का बहुत प्रकोप था। नुकसान के बाद कृषि के जानकार खेतो में आये थे उन्होंने कहा कि मैंने कीटनाशक डाला है, इसलिए ऐसा हुआ। लेकिन हम क्या करें, फसल को बर्बाद होते तो नहीं देख सकते। सरकार को चाहिए जब इस बीटी कपास से फायदा नहीं हो रहा तो कम से कम से उसके बीज रेट तो कम कर दे। हम अब दूसरी खेती के बारे में सोच रहे हैं। कब तक कपास के चक्कर में नुकसान झेलते रहेंगे।"



कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अतुल गनात्रा कहते हैं कि मराठवाड़ा और खांदेश क्षेत्रों में बारिश कम हुई। बादल भी छाये रहे। इस कारण पिंक बॉलवर्म का हमला ज्यादा हुआ।

पिछले साल भी महाराष्ट्र के कपास किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इस कारण इस सीजन में किसानों ने सोयाबीन की ज्यादा बुआई की है। महाराष्ट्र में कपास का रकबा तीन फीसदी घटा है जबकि सोयाबीन का चार फीसदी बढ़ा है। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में कपास की बुआई क्षेत्र पिछले वर्ष की तुलना में लगभग चार फीसदी कम हुआ है। इसके लिए इस खेती में बढ़ते घाटे को कारण बताया जा रहा है।

नागपुर से सटे सौंसर की किसान राजेश मोकदम बताते हैं "कपास की खेती में लगाने से बेचने तक खर्चा ही खर्चा है। अब यहाँ 10 किलो तो तुड़ाई का चार्ज है। इससे पहले खाद, और स्प्रे की कीमत है ही। बढ़िया बीज भी खरीदने जाइये तो इसके लिए 1100 से 1200 रुपए की एक थैली मिल रही है। ऐसे में सरकार को कपास का एमएसपी कम से कम 7000 रुपए रखना चाहिए। 5100 या 5200 रुपए में कोई फायदा नहीं होने वाला है।"

सीएआई (कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया) के अनुसार, महाराष्ट्र में कपास वर्ष 2016-17 (अक्टूबर से सितंबर) में कपास की बुआई 37 लाख हेक्टेयर में की गई थी जबकि उत्पादन 89 लाख गांठ था और 2017-18 में रकबा बढक़र 42 लाख हेक्टेयर हो गया जबकि फसल उत्पादन घटकर 82 लाख गांठ रह गया और 2018-19 में शुरुआती संकेतों से पता चला है कि रकबा घटकर 38 लाख हेक्टेयर रह जाएगा जबकि फसल उत्पादन 75 से 80 लाख गांठ के साथ काफी कम रह सकता है। 2017-18 में भारत में कपास का उत्पादन 3.65 करोड़ गांठ रह सकता है जो जनवरी में जारी अनुमान से 3.75 करोड़ गांठ से 10 लाख गांठ कम है।



नागपुर के खापरी के किसान रमेश सोनकुसरे (35) कहते हैं " पहले जब हम देसी बीज लगाते थे तब एक एकड़ में पांच से आठ कुंतल पैदावार होती थी। लेकिन हमें उसमें कम से कम दो स्प्रे करना पड़ता था। उसके बाद बीटी कपास आया। पैदावार बढ़ गयी। एक एकड़ में 14 से 15 कुंतल कपास होने लगा। लेकिन फिर घटकर 12 कुंतल, 10 कुंतल फिर आठ कुंतल तक आ गया। अब तीन से चार बार स्प्रे भी करना पड़ता है। खर्च के हिसाब से हमें दाम भी नहीं मिल रहा। बीज महंगा हो रहा, खाद की कीमतें बढ़ गयी, लेकिन हमारा लाभ नहीं बढ़ रहा।"

इसी साल जनवरी में महाराष्ट्र के 12 लाख किसानों ने कपास कंपनियों की शिकायत सरकार से की थी जिसमें उन्होंने छह हजार करोड़ रुपए मुआवजे की मांग की थी। उस सीजन में बोंडाणी कीड़े की वजह से कपास की फसल बर्बाद हुई थी।



Tags:
  • Cotton farmers
  • Maharashtra
  • attack of pink bollworm
  • pink bollworm
  • cotton farmers rising costs
  • Cotton farmers of Maharashtra
  • why cottone farmers in trouble

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.