कई सौ साल पुराना है आम का यह पेड़, जहां से हुई थी दशहरी आम की शुरुआत
Manvendra Singh | May 24, 2022, 10:47 IST
भारत से पूरी दुनिया में आम की कई किस्में निर्यात की जाती हैं, इनमें से दशहरी आम की किस्म भी है, लेकिन क्या आपको पता है कि दशहरी आम की शुरुआत कहां से हुई?
दशहरी (लखनऊ, उत्तर प्रदेश)। एक नजर में यह गाँव भी भारत के दूसरे गाँवों की तरह ही है, यहां भी कुछ लोग खेती-किसानी से जुड़े हैं तो कुछ लोग नौकरी की तलाश में गाँव छोड़ चुके हैं। लेकिन एक आम का पेड़ इस गाँव को इसे दूसरे गाँवों से अलग बनाता है, अब आपको लगेगा कि आम के पेड़ तो ज्यादातर गाँव में होते हैं तो ये अलग कैसे हुआ? ये है आपके पसंदीदा दशहरी आम का 'मदर ट्री', जहां से दुनिया भर में दशहरी आम पहुंचा है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 15 किमी दूर काकोरी ब्लॉक में है दशहरी गाँव, यहीं पर है लगभग 400 साल पुराना दशहरी मदर ट्री। गाँव में घुसते ही सड़क के दोनों तरफ आम के पेड़ दिखायी देंगे, थोड़ा आगे और बढ़ेंगे तो मिलेगा दशहरी का विशालकाय पेड़।
सुनें दशहरी आम कहानी
Gaon Radio · आपकी पसंदीदा दशहरी आम की कहानी: यहीं से हुई थी दशहरी की शुरूआत || Story of Dasheri Mother Tree दशहरी गाँव के अहमद अली बचपन से इस पेड़ को देखते आ रहे हैं, अपने जीवन के 72 बसंत देख चुके अहमद अली याद करते हुए गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "इस पेड़ की हकीकत कोई नहीं बता पाएगा, क्योंकि हमारे बाप 80 साल के थे तब उनका देहांत हुआ और मेरे दादा जो करीब सौ साल के थे तब उनका देहांत हुआ वो कहते थे कि वो भी अपने बचपन से वो इस पेड़ को देखते हुए चले आ रहे हैं। तो ये कह पाना मुश्किल है कि ये पेड़ कितना पुराना है।"
लखनऊ के मलिहाबाद, काकोरी, माल आम उत्पादन के लिए मशहूर हैं, यहां पर जहां तक नजर दौड़ाएंगे दूर-दूर तक आम के बाग ही नजर आएंगे। जब भी आम की दशहरी किस्म का जिक्र आता है लोगों को मलिहाबाद ही याद आता है, इस बात को लेकर दशहरी गाँव के लोगों में थोड़ी निराशा है तो नाराजगी भी है।
62 वर्षीय चंदू लाल को भी इसी बात की नाराजगी है, चंदू लाल गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "दशहरी आम की शुरुआत यही से हुई, मलिहाबाद वाले आए, खाये और दोस्ती बना के कलम ले गए। पहले जिसको भी आम दिया जाता था उसकी गुठली निकल के दिया जाता था, लेकिन मलिहाबाद वालों ने ऐसी दोस्ती बनाई और कलम बांध ले गए। हमको बहुत दुःख है हमारे यहां की पैदावारी और बना ले गए मलिहाबाद वाले ये गलत बात है।"
"दशहरी आम बेच-बेच कर लोग राजा बन गए, लेकिन हमारा गाँव आज भी वैसा ही है। दिल्ली और कानपुर की सरकारी बस में लोग भर के इस पेड़ को देखने आते हैं, लोग फिल्में बनाने आते हैं, "निराश चंदू लाल ने आगे कहा।
किस्मों
इस पेड़ का संरक्षण समीर जैदी के पास है, जबकि यह पेड़ लखनऊ के नवाब की संपत्ति है, इसलिए इसके फलों को बेचा नहीं जाता है। नसीर अली बताते हैं, "बाकी इस पेड़ का आम नवाब साहब के यहां जाता है, अब मोहम्मद अंसार साहब के यहां, अब तो रहे नहीं तो उनके पोते हैं, इस आम की बिक्री नहीं होती। लोग इस पेड़ को बहुत दूर से देखने आते है इसकी फोटो भी खींचते है पूरी पूरी बस भर के आती हैं।"
उत्तर प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक जिले लखनऊ, अमरोहा, सम्भल, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर हैं। इनमें दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फाजली, मल्लिका, गुलाब खास और आम्रपाली किस्में प्रमुख हैं।
इतने पुराने पेड़ को बचाने की जुगत भी बहुत हुई हैं, 60 साल के नसीर अली उस दौर की बात बताते हैं, "हमारे दादा बताया करते थे, सबसे पहले पूरे पेड़ पर जाल डाल दिया जाता था, जिससे कोई चिड़िया आम न ले जा पाए।"
लेकिन अब इसकी हालत देखकर नसीर अली निराश हैं, वो कहते हैं, "इसकी सुरक्षा का कोई पक्का इंतज़ाम नहीं खाली बोर्ड लगा पड़ा है उधर। बहुत आदमी बाहर से इस पेड़ को देखने आते है, फोटो खींच के ले जाते हैं। विदेश से गोरे-गोरे लोग जब आते हैं। तब खाना पूड़ी ये सब बाटते हैं।"
"ये कुदरती जगह है ये पेड़ लगाया नहीं गया है, ये अपने आप यहां पैदा हुआ। यहां मलिहाबाद के आर्मी की चौकी थी तो इस जगह को लेकर झगड़ा हो गया था तो आम पैर से कुचल के गाड़ दिया गया था। मलिहाबाद और दशहरी गाँव के लोगों में झगड़ा हुआ था, उसके बाद बताया गया की ये पेड़ यहां अपने आप पैदा हो गया था, "नसीर अली आगे बताते हैं।
केंद्रीय उपोष्ण बागवनी संस्थान, लखनऊ के पूर्व निदेशक डॉ शैलेंद्र राजन बताते हैं, "मैं 1975 से में इस पेड़ को देख रहा हूं, उस टाइम की फोटो आप देखेंगे तो ये बहुत विशालकाय था उस समय की फोटो मेरे पिताजी ने खींची थी वो भी हॉर्टिकल्चर के डायरेक्टर रह चुके हैं।"
'मुझे याद है 1975 में ये पेड़ देखा था ऐसा ही था लगभग 1975 से आज कितने साल हो गए और उस समय कहा जाता था पेड़ 150 साल पुराना है तो कह सकते है की यह पेड़ लगभग 200 साल पुराना है, "डॉ शैलेंद्र ने आगे कहा।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक देश है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने 2019-20 फसल वर्ष (जून-जुलाई) के दौरान वार्षिक उत्पादन 20.26 मिलियन टन था जो पूरी दुनिया के कुल उत्पादन का आधा है। आम की लगभग 1,000 किस्में यहां उगाई जाती हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से केवल 30 का ही उपयोग किया जाता है।
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत से आमों का निर्यात 1987-88 में 20,302 टन था जो अब बढ़कर 2019-20 में 46,789.60 टन हो गया।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 15 किमी दूर काकोरी ब्लॉक में है दशहरी गाँव, यहीं पर है लगभग 400 साल पुराना दशहरी मदर ट्री। गाँव में घुसते ही सड़क के दोनों तरफ आम के पेड़ दिखायी देंगे, थोड़ा आगे और बढ़ेंगे तो मिलेगा दशहरी का विशालकाय पेड़।
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Gaon Radio · आपकी पसंदीदा दशहरी आम की कहानी: यहीं से हुई थी दशहरी की शुरूआत || Story of Dasheri Mother Tree दशहरी गाँव के अहमद अली बचपन से इस पेड़ को देखते आ रहे हैं, अपने जीवन के 72 बसंत देख चुके अहमद अली याद करते हुए गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "इस पेड़ की हकीकत कोई नहीं बता पाएगा, क्योंकि हमारे बाप 80 साल के थे तब उनका देहांत हुआ और मेरे दादा जो करीब सौ साल के थे तब उनका देहांत हुआ वो कहते थे कि वो भी अपने बचपन से वो इस पेड़ को देखते हुए चले आ रहे हैं। तो ये कह पाना मुश्किल है कि ये पेड़ कितना पुराना है।"
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लखनऊ के मलिहाबाद, काकोरी, माल आम उत्पादन के लिए मशहूर हैं, यहां पर जहां तक नजर दौड़ाएंगे दूर-दूर तक आम के बाग ही नजर आएंगे। जब भी आम की दशहरी किस्म का जिक्र आता है लोगों को मलिहाबाद ही याद आता है, इस बात को लेकर दशहरी गाँव के लोगों में थोड़ी निराशा है तो नाराजगी भी है।
62 वर्षीय चंदू लाल को भी इसी बात की नाराजगी है, चंदू लाल गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "दशहरी आम की शुरुआत यही से हुई, मलिहाबाद वाले आए, खाये और दोस्ती बना के कलम ले गए। पहले जिसको भी आम दिया जाता था उसकी गुठली निकल के दिया जाता था, लेकिन मलिहाबाद वालों ने ऐसी दोस्ती बनाई और कलम बांध ले गए। हमको बहुत दुःख है हमारे यहां की पैदावारी और बना ले गए मलिहाबाद वाले ये गलत बात है।"
"दशहरी आम बेच-बेच कर लोग राजा बन गए, लेकिन हमारा गाँव आज भी वैसा ही है। दिल्ली और कानपुर की सरकारी बस में लोग भर के इस पेड़ को देखने आते हैं, लोग फिल्में बनाने आते हैं, "निराश चंदू लाल ने आगे कहा।
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किस्मों
इस पेड़ का संरक्षण समीर जैदी के पास है, जबकि यह पेड़ लखनऊ के नवाब की संपत्ति है, इसलिए इसके फलों को बेचा नहीं जाता है। नसीर अली बताते हैं, "बाकी इस पेड़ का आम नवाब साहब के यहां जाता है, अब मोहम्मद अंसार साहब के यहां, अब तो रहे नहीं तो उनके पोते हैं, इस आम की बिक्री नहीं होती। लोग इस पेड़ को बहुत दूर से देखने आते है इसकी फोटो भी खींचते है पूरी पूरी बस भर के आती हैं।"
उत्तर प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक जिले लखनऊ, अमरोहा, सम्भल, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर हैं। इनमें दशहरी, चौसा, लंगड़ा, फाजली, मल्लिका, गुलाब खास और आम्रपाली किस्में प्रमुख हैं।
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इतने पुराने पेड़ को बचाने की जुगत भी बहुत हुई हैं, 60 साल के नसीर अली उस दौर की बात बताते हैं, "हमारे दादा बताया करते थे, सबसे पहले पूरे पेड़ पर जाल डाल दिया जाता था, जिससे कोई चिड़िया आम न ले जा पाए।"
लेकिन अब इसकी हालत देखकर नसीर अली निराश हैं, वो कहते हैं, "इसकी सुरक्षा का कोई पक्का इंतज़ाम नहीं खाली बोर्ड लगा पड़ा है उधर। बहुत आदमी बाहर से इस पेड़ को देखने आते है, फोटो खींच के ले जाते हैं। विदेश से गोरे-गोरे लोग जब आते हैं। तब खाना पूड़ी ये सब बाटते हैं।"
"ये कुदरती जगह है ये पेड़ लगाया नहीं गया है, ये अपने आप यहां पैदा हुआ। यहां मलिहाबाद के आर्मी की चौकी थी तो इस जगह को लेकर झगड़ा हो गया था तो आम पैर से कुचल के गाड़ दिया गया था। मलिहाबाद और दशहरी गाँव के लोगों में झगड़ा हुआ था, उसके बाद बताया गया की ये पेड़ यहां अपने आप पैदा हो गया था, "नसीर अली आगे बताते हैं।
केंद्रीय उपोष्ण बागवनी संस्थान, लखनऊ के पूर्व निदेशक डॉ शैलेंद्र राजन बताते हैं, "मैं 1975 से में इस पेड़ को देख रहा हूं, उस टाइम की फोटो आप देखेंगे तो ये बहुत विशालकाय था उस समय की फोटो मेरे पिताजी ने खींची थी वो भी हॉर्टिकल्चर के डायरेक्टर रह चुके हैं।"
'मुझे याद है 1975 में ये पेड़ देखा था ऐसा ही था लगभग 1975 से आज कितने साल हो गए और उस समय कहा जाता था पेड़ 150 साल पुराना है तो कह सकते है की यह पेड़ लगभग 200 साल पुराना है, "डॉ शैलेंद्र ने आगे कहा।
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भारत दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक देश है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने 2019-20 फसल वर्ष (जून-जुलाई) के दौरान वार्षिक उत्पादन 20.26 मिलियन टन था जो पूरी दुनिया के कुल उत्पादन का आधा है। आम की लगभग 1,000 किस्में यहां उगाई जाती हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से केवल 30 का ही उपयोग किया जाता है।
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत से आमों का निर्यात 1987-88 में 20,302 टन था जो अब बढ़कर 2019-20 में 46,789.60 टन हो गया।