इस तकनीक से एक साथ करें पराली प्रबंधन और गेहूं की बुवाई, समय और लागत दोनों में आएगी कमी

Divendra Singh | Nov 10, 2022, 07:19 IST
इस तकनीक से गेहूं की बुवाई और धान की कटाई एक ही समय की जाती है, जिससे लागत में कमी आएगी ही किसानों का समय भी बचेगा।
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धान की कटाई के साथ ही पराली की जलाने की समस्या भी सामने आने लगती है, पराली के प्रबंधन के लिए बहुत सारे तरीके अपनाए जा रहे हैं, लेकिन फिर इस समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं हो पा रहा है। ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह मशीन कारगार साबित हो सकती है, जिससे धान की कटाई और गेहूं की बुवाई साथ-साथ की जा सकती है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा पराली प्रबंधन और गेहूं की बुवाई का एक नया कम लागत वाला, पर्यावरण के अनुकूल तरीका पेश किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार इस विधि से पराली प्रबंधन और गेहूं की बुवाई की लागत कम हो जाएगी।

इस तकनीक को 'Surface seeding of wheat' यानी गेहूं की सतही बुवाई कहा जाता है, जिसमें धान की कटाई और गेहूं की बुवाई एक ही समय में की जाती है। पीएयू इस तकनीक को किसानों तक ले जा रहा है और कहा है कि इस विधि का प्रयोग किया जाए तो पराली जलाने से रोका जा सकता है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर के कृषि वैज्ञानिक डॉ माखन सिंह भुल्लर इसके बारे में विस्तार से बताते हैं, "इस विधि से धान की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा।" वो आगे कहते हैं, "विश्वविद्यालय ने कुछ साल पहले बुवाई का यंत्र डिजाइन किया था, जिसे कंबाइन हार्वेस्टर में लगाया जाता है, इससे धान की कटाई होती है और अटैचमेंट में गेहूं और बीज होता है।"

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इस विधि में बुवाई के लिए 1 एकड़ में 45 किलो उपचारित गेहूं के बीज और 65 किलो डीएपी का उपयोग किया जाता है। दूसरी विधि के साथ, यदि सीडिंग अटैचमेंट के साथ संयोजन उपलब्ध नहीं है, तो धान की कटाई के बाद बीज और उर्वरक को मैन्युअल रूप से प्रसारित किया जाता है, इसके बाद कटर-कम-स्प्रेडर और सिंचाई का एकल संचालन होता है।

डॉ भुल्लर ने आगे कहा, "इस नई तकनीक से अवशेष प्रबंधन से कई फायदें हैं, क्योंकि इसमें 650 रुपए प्रति एकड़ की लागत आती है, एक तो धान की कटाई हो जाती है और गेहूं की बुवाई भी हो जाती है।"

विशेषज्ञों के अनुसार इस विधि से बुवाई करने पर तीन से चार गुना तक लागत कम हो जाती है। क्यों धान की कटाई के समय खेत में पर्याप्त नमी रहती है, इसलिए अलग से सिंचाई भी नहीं करनी पड़ती और धान का भूसा मल्चिंग का काम करता है। साथ ही इससे खरपतवार भी नहीं उगते हैं।

किसानों के खेतों और विश्वविद्यालय के खेतों में पिछले दो वर्षों से परीक्षण किए जा रहे थे और अच्छे परिणाम मिलने के बाद इस तकनीक को पीएयू अधिकारियों ने इस सीजन में मंजूरी दे दी थी।

इस विधि के फायदे

1) धान की भूसी प्रबंधन और गेहूं की बुवाई के लिए इसकी लागत 650 रुपये प्रति एकड़ है, जो पारंपरिक तरीकों से तीन से चार गुना कम है।

2) यह धान बनाती है। अवशेष प्रबंधन और गेहूं की बुवाई बहुत आसान हो जाती है।

3) इसमें अवशेष प्रबंधन के लिए महंगी मशीनों और उच्च एचपी ट्रैक्टर की जरूरत नहीं होती है।

4) यह इन-सीटू धान अवशेष प्रबंधन को प्रोत्साहित करता है जो पर्यावरण के अनुकूल है और मिट्टी के स्वास्थ्य का निर्माण करता है।

5) यह पूर्ण मल्चिंग प्रदान करता है जो फसल को अंतिम गर्मी के तनाव से बचाते हैं।

6) यह खरपतवार के उपयोग को कम करता है, क्योंकि गीली घास वाले खेत में खरपतवार का प्रकोप कम होता है।

7) यह धान की पराली को जलने से रोकेगा।

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