ऊसर जमीन पर किसान आंवला और बेल लगाकर कमाएं लाभ

Ajay Mishra | Mar 23, 2018, 12:34 IST

कन्नौज। उत्तर प्रदेश में सैकड़ों एकड़ क्षेत्रफल ऐसा है जो ऊसर होने की वजह से खाली पड़ा रहता है। बंजर पड़ी जमीन पर किसान आंवला और बेल लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 180 किमी दूर कन्नौज के विकास खंड जलालाबाद अनौगी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र पर किसानों के लिए एक संगोष्ठी की गयी, जिसमें प्रधान वैज्ञानिक डॉ देवेंद्र पांडेय ने बताया, ‘‘यहां किसानों के पास ऊसर जमीन ज्यादा है, अगर किसान इन जमीनों पर बेल (बेलुआ) और आंवला लगाए तो उनकी खाली पड़ी जमीन उपयोग में आ जाएगी। इसके अलावा इन पौधों से जमीन में पोषक तत्वों की पूर्ति होगी, इससे कुछ समय बाद ऊसर जमीन के उपजाऊ होने की भी सम्भावना रहती है।’’

डॉ पांडेय आगे बताते हैं, ‘‘कन्नौज, फर्रूखाबाद और आगरा जैसे जिलों में आलू की खेती इसलिए अधिक होती है क्योंकि किसान पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि किसान खेती में नवाचार करें। जिससे उनके खेत में फसल चक्र भी बना रहेगा और बेकार पड़ी जमीन का सही उपयोग भी हो जाएगा।’’



फलदार पौधों के बारे में बताते डाॅ एके सिंह कृषि विज्ञान केंद्र पर लखनऊ से आए प्रधान वैज्ञानिक (बागवानी) डॉ एके सिंह बताते हैं, ‘‘बहुत से फल और पेड़ ऐसे हैं जो पोषक और औषधि के हिसाब से अच्छे होते हैं। आम, जामुन चिरौंजी, करौंदा, कैथा, बरहल, लसोरा, बेल, खिरनी, इमली, शरीफा, शहतूत, महुआ और करमबोला जैसी बागवानी की शुरुआत किसान कर सकते हैं जिसमें मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा होता है। इनके बीज भी फायदेमंद होते हैं।’’

डॉ सिंह आगे बताते हैं, ‘‘चार ग्राम से 24 ग्राम तक का जामुन गुजरात और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में होता है। संस्थान में 50 प्रजातियां ऐसी हैं जो बहुत ही अच्छी हैं। अधिकतर पेड़ों में फल आने पर 50 फीसदी फल गिर जाते हैं। किसान सही से तुड़ाई करें और पेड़ और फल ज्यादा न बढ़ने दें।’’



बागवानी का प्रशिक्षण लेते किसान गोष्ठी में आए एक किसान विनय अवस्थी (48 वर्ष) ने कहा, ‘‘हमारे यहां बहुत जमीन खाली पड़ी रहती है। आज मीटिंग से पता चला कि हम खाली जमीन का कैसे उपयोग करें जिससे हमे लाभ मिल सके। अगर समय-समय पर हमे ऐसे ही ट्रेनिंग मिलती रही तो हमारी खाली पड़ी जमीन का सही उपयोग हो पायेगा और वातावरण भी थीक रहेगा।’’

कन्नौज के अब्दुलपुर सकरी से आए अर्जुन सिंह यादव (38 वर्ष) बताते हैं, ‘‘हमको बागवानी के बारे में जानकारी अच्छी लगी। चेचक के रोग में ट्राइकोडर्मा डाला जाता है यह भी नहीं पता था। प्रषिशण से काफी कुछ सीखने को मिला है।’’



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