जल्द किसानों को मिलेंगे गेहूं की रतुआ प्रतिरोधी किस्म 'पूसा यशस्वी' के बीज
Divendra Singh | Sep 05, 2019, 13:12 IST
जल्द ही किसानों को गेहूं की सबसे पौष्टिक गेहूं किस्म 'पूसा यशस्वी' का बीज मिलेगा, इस किस्म में दूसरी किस्मों के मुकाबले इस प्रोटीन की मात्रा अधिक है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने बीज उत्पादक कम्पनियों को लाइसेंस जारी किया।
कम्पनियों को रबी फसल के दौरान गेहूं की इस नवीनतम किस्म का प्रजनक बीज उपलब्ध कराया जाएगा। किसानों को अगले वर्ष से सीमित मात्रा में इसका बीज उपलब्ध कराया जाएगा। एचडी 3226 किस्म को हाल में जारी किया गया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने बीज उत्पादक कम्पनियों को लाइसेंस जारी किया।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें गेहूं की अब तक उपलब्ध सभी किस्मों से ज्यादा प्रोटीन और ग्लूटीन है। प्रोटीन की मात्रा इसमें ज्यादा है, इसमें प्रोटीन की मात्रा 11-12 प्रतिशत होती है, आमतौर पर गेहूं में प्रोटीन की मात्रा आठ प्रतिशत तक होती है। इस गेहूं से रोटी और ब्रेड तैयार किया जा सकेगा। भारतीय गेहूं में कम प्रोटीन के कारण इसका निर्यात नहीं होता था जो समस्या अब समाप्त हो जायेगी।
आठ साल में इसको विकसित किया गया है। इसकी पैदावार 70 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है, जिसकी औसत पैदावार 60-62 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है। इस गेहूं की भरपूर पैदावार लेने के लिए इसे अक्टूबर के अंत या नवम्बर के पहले सप्ताह में लगाना जरूरी है। इसकी फसल 142 दिन में तैयार हो जाती है। यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र तथा जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए उपयुक्त है। जीरो ट्रिलेज पद्धति के लिए भी यह गेहूं उपयुक्त है।
आईसीएआर के आनुवंशिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ एके सिंह बताते हैं, "ये नई वैरायटी एचडी 3226 (पूसा यशस्वी) पिछले साल रिलीज हुई है, ये नार्थ वेस्टर्न प्लेन जोन के लिए विकसित की गई है, ये जो उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र है। इसमें पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ हिस्से, हिमाचल प्रदेश जैसे प्रदेशों में खेती के लिए इसकी संस्तुति की गई है।
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डॉ एके सिंह आगे कहते हैं, "इसमें रतुआ (Rust) की जो बीमारी है ये किस्म उसकी प्रतिरोधी है, खासकर के पीला रतुआ (Yellow Rust), भूरा रतुआ (Brown Rust) और काला रतुआ (Black Rust) का खतरा इसमें कम रहता है।
आठ साल में इसको विकसित किया गया है। इसकी पैदावार 70 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है, जिसकी औसत पैदावार 60-62 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है। इस गेहूं की भरपूर पैदावार लेने के लिए इसे अक्टूबर के अंत या नवम्बर के पहले सप्ताह में लगाना जरूरी है। इसकी फसल 142 दिन में तैयार हो जाती है। यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र तथा जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए उपयुक्त है। जीरो ट्रिलेज पद्धति के लिए भी यह गेहूं उपयुक्त है।