उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़रूरी है मित्र कीटों को पहचानना, बस ये सलाह मान लीजिए

Gaon Connection | Mar 29, 2024, 09:18 IST
खेती की बढ़ती लागत से परेशान हैं तो आपको सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखना है; इसके बाद आपकी लागत तो कम होगी ही, कमाई भी दोगुनी से तीन गुनी हो सकती है।
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खेती में सबसे अधिक लागत बीज, खाद और उसके बाद कीटनाशकों पर खर्च होता है; लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि आप कुछ आसान तरीके अपना कर न सिर्फ अपनी लागत कम कर सकते हैं; बल्कि ज़्यादा मुनाफा भी कमा सकते हैं, तो शायद आपको यकीन न हो।

लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र-2 कटिया, सीतापुर के प्रभारी और प्रधान वैज्ञानिक डॉ दया शंकर श्रीवास्तव एक ऐसी ही तरकीब बता रहे हैं।

डॉ दया शंकर श्रीवास्तव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "कृषि पारिस्थितिक तंत्र में मित्र जीवों का बड़ा योगदान है। जहाँ शत्रु कीट किसानों को परेशान कर रहे हैं; वहीं दूसरी ओर मित्र कीटों की संख्या लगातार घटती जा रही है। ये बात हम जानते हैं कि जिस परिवेश में हम रह रहे हैं, वहाँ अगर मित्र नहीं होंगे तो निश्चित तौर पर दुश्मन हमारा बहुत नुकसान कर देंगे। कृषि में भी यही बात लागू होती है। आज खेती की दुनिया में अगर हम देखते हैं तो मित्र कीटों की संख्या तेज़ी से कम हो रही है।"

वो आगे कहते हैं, "कहीं-कहीं ऐसा देखा जाता है की दस शत्रु और एक भी मित्र नहीं हैं, जबकि ये कहा जाता है कि अगर पेस्ट डिफेंडर अनुपात यानी शत्रु और मित्र का अनुपात 2 : 1 है यानी दो शत्रु और एक मित्र है तो आपको किसी भी तरह से कीटनाशक या रसायन की ज़रुरत नहीं है; क्योंकि वो मित्र आपके शत्रु से लड़ने के लिए सक्षम हैं।"

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"ये भी हमे समझना होगा कि जब हम एक तरफ से हरित क्रांति के बाद कृषि का उत्पादन बढ़ाने में लगे तो हमने बहुत सारे रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग किया; बहुत सारी एकल कृषि पद्धति को भी विकसित किया, फूलों की खेती लगभग न के बराबर होती जा रही है, "उन्होंने आगे कहा।

आज किसानों के सामने बड़ी चिंता है कि उत्पादन कम हो रहा है, साथ ही साथ मिट्टी और पर्यावरण का जो असंतुलन एक तरह से देखा जाए वो बहुत बिगड़ता जा रहा है। कृषि की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अगर हम बात करें तो हमें पर्यावरण को संजोकर रखना है। उत्पादन बढ़ाना एक चिंता का विषय तो है ही लेकिन उत्पादन के साथ- साथ हमे अपने पर्यावरण तंत्र को सुदृढ़ करना और उसे संरक्षित करना एक बहुत बड़ी चुनौती है।

कृषि में जो असंतुलन हुआ है निश्चित तौर पर आने वाले समय में हमे आस पास तितलियाँ, भौरे, मधुमक्खियाँ या और भी मित्र जीव हैं; ये सब दिखाई ही न दें और अगर ये चले गए तो कृषि का क्या होगा। ये जो असंतुलन जो हमने पैदा किया है उसका दुष्परिणाम हमको देखने को मिलेंगे।

वो आगे कहते हैं, "मैं सभी से कहूंगा की अपने खेत खलियानों में शत्रु और मित्र कीट का अनुपात की इस कड़ी को बनाए रखने के लिए फूलों की खेती को बढ़ावा देना होगा। आज फूलों की खेती कुछ ही चुनिंदा ब्लॉक या ज़िलों में सिमट के रह गयी है; जबकि फूलों की खेती में बहुत सारा लाभ और मुनाफा भी है।"

"फूलों की खेती से जहां एक तरफ हमारा पर्यावरण तंत्र मजबूत होता है, अच्छी आमदनी भी होती है और साथ ही साथ हमें खुशियाँ भी मिलती हैं। बहुत तरीके के फूल हैं जिनको लगा करके हम अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं और पारिस्थितिक तंत्र को भी मजबूत कर सकते हैं। किसानों को अपनी मेड़ के किनारे फूलों के पौधे लगाने चाहिए, "उन्होंने आगे कहा।

कौन से पौधे कैसे लगाए और कब?

अगर आप कोई भी फसल लगाने जा रहे हैं और आप कीड़े और बिमारियों से परेशान हैं तो इससे निपटने के लिए एक बहुत अच्छी व्यवस्था है, जिसको कहते हैं इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग। इसमें करना क्या है - जो भी फसलें हम लगा रहे हैं; उन फसलों के किनारे-किनारे हम एक महीने पहले, ज्वार, बाजरा या मक्का की फसल लगा देंगे ताकि हमारे पास एक बाऊंडरी बन जाये।

इन बाउंड्री से बाहर से जो शत्रु कीट हैं वो वही रुक जाएँगे और इनके किनारे किनारे हम सूरजमुखी के फूल या धनिया, गाजर इस तरह के फूल वाले पौधे हम लगा सकते हैं। इससे जो मित्र कीट हैं वो आपके खेतों में आएँगे। आप मित्रों को आमंत्रित कर रहें है जितना आपके पास मित्र होंगे उतने दुश्मन आपके पास कम होंगे।

ज़रूरी है मित्र और शत्रु कीटों का सही अनुपात

इसको ऐसे समझ सकतें हैं कि अगर आपके गाँव में भी आपके सौ मित्र हैं और एक दुश्मन हैं तो आपको चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं। ठीक उसी प्रकार से खेत में भी यदि आपके मित्रों की संख्या ज़्यादा है; तो आपको किसी भी कीट से भयभीत होने की ज़रुरत नहीं।

आज लेकिन यह देखा जाता है मित्र कीट न के बराबर हैं; जिसकी वजह से दुश्मन कीट हमारी फसल को नुकसान देते हैं। इसके नियंत्रण के लिए ये रासायनिक विधियाँ अब कारगर नहीं रही हैं। क्योंकि उन्होंने एक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है। ऐसी परिस्तिथियों से बचने के लिए हमें फिर वो व्यवस्था लागू करनी पड़ेगी; जिसके लिए ज़्यादा खर्चा करने की ज़रुरत भी नहीं, बस किसान भाइयों को खेतों के किनारे-किनारे फूलों के पौधों को लगाए जैसे ग्लेडियोलस, गेंदा और रजनीगंधा जैसे फूल लगाएँ।

फूलों की इकोनॉमिक्स समझनी होगी

गेंदा का फूल हर जगह हर मौसम में और हर सीजन में बिकता है। शादी, समाहरोह, बारात हर फंक्शन में इसकी माँग होती है और आज भी पश्चिम बंगाल से बहुत ज़्यादा फूल हमारे यहाँ आता है; लेकिन उत्तर प्रदेश में भी बहुत ज़्यादा सम्भावनाएँ हैं।

हर समय इसका बाजार रहता है और गेंदे में भी बहुत तरीकें की प्रजातियाँ हैं; जैसे कुछ तेल वाली प्रजातियाँ हैं, तो कुछ फूलों वाली प्रजातियाँ है। इनको भी आप किनारे-किनारे लगा सकते हैं। रजनीगंधा और ग्लेडियोलस आपके लिए बहुत अच्छा ऑप्शन हो सकता है; क्योंकि शादी और पार्टियों में इन फूलों का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल होता है।

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इन फूलों को लगाने का फायदा ये होगा की ये फूल वर्षों तक आपकी आय के साधन बन जाएँगे। पहली बात तो इनकी स्टिक से आपको बहुत अच्छा दाम मिलेगा।

अगर चार से पाँच रूपए में आपकी स्टिक बिक जाती है और आपके पास एक लाख पौधे हैं तो चार से पाँच लाख रूपए तो आपको मिल सकते हैं। इन एक लाख पौधों को लगाने के लिए आपको ज़्यादा धन भी लगाने की ज़रुरत नहीं है। शुरू में एक लाख बल्ब आप लगा सकतें हैं और इन बल्बों को बढ़ाकर उन्हें लगा सकते हैं। कुछ दिन बाद आपके पास बहुत ज़्यादा संख्या में पौधे हो जाएँगे और स्टिक भी आपके पास बहुत ज़्यादा संख्या में होंगी तो आपको एक बाजार स्टिक का मिलेगा और दूसरा आप पौधे का व्यापार करके भी आप अच्छा पैसा कमा सकतें हैं।

दूसरा फायदा इससे ये होगा कि जब फूल किसी भी खेती में नहीं हैं और आपके खेत में फूल है तो सारे मित्र कीट आपके खेतों में आ जाएँगे और यही से एक नई कड़ी की शुरुआत होगी। जहाँ आपके खेतों में मित्र कीटों की संख्या बढ़ जाएगी और शत्रु कीट ख़त्म हो जाएँगे।

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