क्या बढ़ती महंगाई पर बढ़ा गन्ने का दाम किसानों के लिए वाकई राहत लेकर आया है?

Manvendra Singh | Oct 31, 2025, 17:08 IST
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने गन्ना किसानों के लिए एक बड़ी राहत की घोषणा की है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने गन्ना किसानों के लिए एक बड़ी राहत की घोषणा की है। सरकार ने 2025–26 पेराई सत्र के लिए गन्ने का समर्थन मूल्य यानी की SAP तीस रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दिया है। अगेती किस्म के लिए नई दर अब 400 रुपये प्रति क्विंटल और सामान्य किस्म के लिए 390 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई है। इस फैसले से प्रदेश के करीब 46 लाख गन्ना किसानों को फायदा पहुंचने की उम्मीद है और राज्य सरकार के अनुसार इस फैसले से किसानों की कुल आमदनी में करीब 3000 करोड़ की बढ़ोतरी देखी जाएगी। यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब कृषि इनपुट, ख़ासकर डीज़ल, खाद और मज़दूरी की लागत लगातार बढ़ रही है। किसानों के लिए ये बढ़ी हुई दरें राहत के संकेत तो दे रही हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बढ़ती महंगाई में यह 30 रुपये की बढ़ोतरी काफ़ी है? चलिए इसे थोड़ा आंकड़ों से समझते हैं।



उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (IISR) लखनऊ के अनुसार, प्रदेश में 22 लाख हेक्टेयर में हर साल 1000 लाख मीट्रिक टन से अधिक गन्ने की पैदावार होती है। वहीं, राज्य में 120 से अधिक चीनी मिलें चल रही हैं, जो हर साल लगभग ₹46,000 करोड़ का गन्ना खरीदती हैं। पश्चिमी यूपी के मुज़फ्फरनगर, बागपत, सहारनपुर, लखीमपुर और बरेली जैसे जिलों में गन्ना खेती सिर्फ जीविका नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी है। किसान बीते साल से ही कीमतों में बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे, लेकिन बीते साल कीमतों में कोई इज़ाफ़ा नहीं हुआ। अब बढ़ी हुई यह कीमत किसानों को बेहद कम लग रही है, और उनके मुताबिक यह कीमत करीब 450 से 500 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए थी।



गन्ना किसान दिलजिंदर सहोता गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “देखिए, बढ़ोतरी हुई इस फैसले का हम स्वागत करते हैं, लेकिन ये बहुत पहले हो जानी चाहिए थी क्योंकि इस महंगाई में लगभग 370 रुपये तो हमारी लागत आ जाती है। हमें उम्मीद थी कि जब फैसला इतनी देर में आया है तो रेट कम से कम 450 रुपये प्रति क्विंटल मिलना चाहिए था, क्योंकि आप देख ही रहे हैं, डीज़ल महंगा हो गया है, लेबर महंगी हो गई है।”



वहीं लखीमपुर के गन्ना किसान के. के. सिंह ने गाँव कनेक्शन से बताया, “जब से गन्ने की 238 किस्म चली गई है, पैदावार वैसे ही बहुत कम हो गई है और नई किस्में उतनी उपज नहीं दे पा रही हैं। ऐसे में सरकार को बहुत पहले ही दरों में बढ़ोतरी कर देनी चाहिए थी। किसानों के लिए तो 500 रुपये भी कम हैं क्योंकि लागत बढ़ गई है और पैदावार भी कम हो गई है, लेकिन 400 रुपये से उतना फायदा नहीं है।”



महंगाई बनाम गन्ना मूल्य



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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच सालों में गन्ने की कीमत 325 रुपये से आज की कीमत 400 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंची है यानी लगभग 23% की वृद्धि। वहीं अगर इसी अवधि की खुदरा महंगाई दर यानी CPI देखी जाए तो करीब 30% की वृद्धि देखने को मिली है। (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक रिपोर्ट, सांख्यिकी मंत्रालय, भारत सरकार – अगस्त 2025)



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वहीं डीज़ल 2019 में 72 रुपये लीटर था, आज 95 रुपये प्रति लीटर हो चुका है। फर्टिलाइज़र एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI), 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, यूरिया और DAP खाद के दामों में 70% से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। और अगर ग्रामीण मज़दूरी की बात की जाए तो श्रम मंत्रालय – ग्रामीण वेतन सूचकांक, 2025 के हिसाब से ग्रामीण मज़दूरी दर में 35–40% का उछाल आया है।



कागज़ बनाम खेत



भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की “कास्ट ऑफ कल्टीवेशन” रिपोर्ट (2024) के अनुसार, गन्ने की औसत लागत प्रति हेक्टेयर ₹2.2 से ₹2.4 लाख के बीच है। एक हेक्टेयर में औसतन 750–800 क्विंटल गन्ना पैदा होता है। नई दर के हिसाब से किसानों की कुल आमदनी करीब ₹3–3.2 लाख बनती है। मतलब यह कि किसान को प्रति हेक्टेयर केवल ₹60,000–₹70,000 की बचत होती है, वह भी तब, जब मौसम और मिल भुगतान दोनों ठीक रहें।



त्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान के पूर्व निदेशक, ज्योत्सेंद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन से बताया, “सरकार फसल की दरों को तय करने के लिए कुछ फ़ॉर्मूलों का इस्तेमाल करती है। बढ़ोतरी बहुत रैशनल तरीके से की जाती है ताकि बाज़ार में भी महंगाई न बढ़े, यानी कि चीनी मिलों पर भार न पड़े और साथ ही किसानों को भी लाभ मिल सके।”



वह आगे कहते हैं, “हर साल गन्ने की खेती का रकबा बढ़ रहा है इसका मतलब है कि किसानों को कहीं न कहीं यह फसल बाकी फसलों के मुकाबले ज़्यादा लाभदायक दिख रही है। गन्ने की खेती में भुगतान से ज़्यादा सही समय पर भुगतान किसानों के लिए ज़्यादा फायदेमंद साबित होगी। किसानों को यह भी ध्यान देना होगा कि कैसे वे लागत को कम कर ज़्यादा उपज ले पाएं।अपने घर में अच्छा बीज तैयार करना, सही बीज का चयन करना जैसे कई उपाय हैं।



गन्ने के बढ़ें हुए दाम और चीनी मील



गन्ने का दाम बढ़ने से चीनी उद्योग पर भी सीधा असर पड़ता है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के मुताबिक, हर ₹10 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी से मिलों की लागत लगभग ₹650 करोड़ बढ़ जाती है। इस हिसाब से ₹30 की बढ़ोतरी से उद्योग पर करीब ₹1,950–₹2,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। हालांकि, केंद्र सरकार की इथेनॉल मिश्रण नीति (E20) मिलों के लिए राहत लेकर आई है। वर्तमान में देश 12% मिश्रण स्तर पर है और 2027 तक 20% का लक्ष्य रखा गया है। यूपी में इथेनॉल उत्पादन तेज़ी से बढ़ा है और कई मिलें अब इथेनॉल को “प्रॉफिट सेंटर” के रूप में देख रही हैं।



वहीं भुगतान में देरी किसानों की पुरानी पीड़ा अभी भी बनी हुई है। यूपी गन्ना विभाग की भुगतान स्थिति रिपोर्ट (सितंबर 2025) बताती है कि 2024–25 पेराई सत्र में राज्य की मिलों पर किसानों का करीब ₹8,000 करोड़ बकाया था। सरकार ने 90% भुगतान निपटाने का दावा किया है, लेकिन कई जिलों में 3–4 महीने की देरी अभी भी आम है।



सरकार का यह फैसला गन्ना किसानों के लिए एक मददगार कदम है, लेकिन इसका पूरा लाभ किसानों तक पहुँचे, इसके लिए सरकार को कई पैमानों पर काम करने की ज़रूरत है। ताकि किसान भाई कम लागत लगाकर ज़्यादा फसल पैदा कर सकें, और उसका भुगतान भी सही समय पर हो। साथ ही, चीनी मिलों और किसानों के बीच तालमेल और बेहतर हो, ताकि किसान भाई और चीनी मिलें, दोनों ही मुनाफ़े का लाभ उठा सकें।







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