दाल संकट का समाधान: अरहर की इस नई किस्म से बढ़ेगा उत्पादन, घटेगा आयात

Gaon Connection | Jul 22, 2025, 14:56 IST
ICRISAT ने विकसित की ‘आईसीपीवी 25444’ - दुनिया की पहली अरहर किस्म जो 45 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी सह सकती है। मात्र 125 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म अब खरीफ के साथ-साथ गर्मियों में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकेगी। इससे भारत को दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने और आयात पर निर्भरता घटाने में मदद मिलेगी
ICRISAT World’s First Extreme Heat-Tolerant Pigeonpea Developed via Speed Breeding
अभी तक किसानों को अरहर की खेती के लिए बारिश का इंतज़ार करना पड़ता था, क्योंकि ज़्यादातर किस्में खरीफ के मौसम में ही बोई जाती हैं, लेकिन अरहर की इस नई किस्म की खेती गर्मियों में की जा सकती है।

हैदराबाद स्थित अंतरराष्ट्रीय अर्धशुष्क कृषि अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के वैज्ञानिकों ने एक अनोखी अरहर किस्म विकसित की है जो 45 डिग्री सेल्सियस तक की भीषण गर्मी को सहन करने में सक्षम है। ‘आईसीपीवी 25444’ नाम की यह किस्म स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से तैयार की गई है और मात्र 125 दिनों में परिपक्व हो जाती है। यह किस्म अपने आप में दुनिया की पहली है, जो गर्मियों के चरम तापमान में भी बेहतर उपज दे सकती है।

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भारत में अरहर की खेती अब तक खरीफ यानी बारिश के मौसम तक सीमित थी, क्योंकि यह फसल तापमान और दिन की लंबाई के प्रति संवेदनशील मानी जाती थी। लेकिन इस नई किस्म ने इन सीमाओं को तोड़ दिया है। कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में इस किस्म का सफल परीक्षण किया गया, जहाँ प्रति हेक्टेयर लगभग दो टन तक उपज दर्ज की गई है।

इससे यह साबित हुआ कि अब अरहर की खेती न केवल मानसून में, बल्कि गर्मी के चरम मौसम में भी संभव हो सकेगी। इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि किसानों को फसल विविधता और अतिरिक्त आय का भी अवसर मिलेगा।

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यह उपलब्धि 2024 में आईसीआरआईसैट द्वारा विकसित विश्व की पहली अरहर स्पीड ब्रीडिंग प्रणाली की बदौलत संभव हो सकी। इस प्रणाली के तहत एक साल में अरहर की चार पीढ़ियाँ उगाई जा सकती हैं, जिससे किसी भी किस्म के विकास में लगने वाला समय 15 वर्षों से घटकर केवल 5 वर्ष रह गया है। वैज्ञानिकों ने 2,250 वर्ग फीट क्षेत्र में 18,000 पौधे एक साथ उगाए, जिससे बीज उत्पादन को कई गुना तक बढ़ाया जा सका। बीज चयन की प्रक्रिया में 'सीड चिपिंग' जैसे नवीनतम जीनोमिक उपकरणों का उपयोग किया गया, जिससे अधिक सटीक और तेज़ सुधार संभव हुआ।

ICRISAT के Accelerated Crop Improvement कार्यक्रम निदेशक डॉ. सीन मेयस के अनुसार:

हम 13,000 अरहर जीनबैंक नमूनों पर आधारित एक वैश्विक जीन विविधता पैनल तैयार कर रहे हैं, जिससे एशिया, अफ्रीका, ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए किस्मों का विकास किया जा सके।
अफ्रीका में अरहर को हरी सब्ज़ी के रूप में भी खाया जाता है, और वहां भी यह किस्म उच्च गर्मी झेलने की क्षमता के चलते उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

भारत हर साल लगभग 35 लाख टन अरहर का उत्पादन करता है, जबकि देश की मांग 50 लाख टन के आसपास है। यह 15 लाख टन की कमी हर साल लगभग 800 मिलियन डॉलर के आयात की वजह बनती है। इस नई किस्म के जरिए इस अंतर को कम किया जा सकता है।

एक तरफ खरीफ सीजन में 50 लाख हेक्टेयर में ऊपज बढ़ाई जा सकती है, वहीं रबी और गर्मी के मौसम में सिंचित क्षेत्रों तथा धान की कटाई के बाद खाली पड़ी भूमि का उपयोग करके अरहर की खेती का दायरा बढ़ाया जा सकता है।

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आईसीपीवी 25444 विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए वरदान बन सकती है, जहाँ धान, मक्का या सब्ज़ियों की पारंपरिक दोहरी फसलों के कारण दूसरी फसल की उपज असंतुलित रहती है। ऐसे क्षेत्रों में यह किस्म 1.5 से 2 टन प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार दे सकती है, जिससे किसानों को प्रति हेक्टेयर ₹20,000 तक की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। यदि रिमोट सेंसिंग, जीआईएस, बेहतर बीज वितरण और उन्नत खेती तकनीकों के साथ इसे लागू किया जाए तो आने वाले वर्षों में इस किस्म को 10 लाख हेक्टेयर तक विस्तार दिया जा सकता है।

आईसीआरआईसैट अब पूरे विश्व के लिए अरहर की उन्नत किस्में विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहा है। संस्था ने 13,000 जर्मप्लाज्म सैंपलों की एक वैश्विक विविधता पैनल तैयार करने की योजना बनाई है, जिसे स्पीड ब्रीडिंग प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाएगा।

इससे भारत के अलावा एशिया, अफ्रीका, ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को भी नई जलवायु-सहनशील अरहर किस्में उपलब्ध कराई जा सकेंगी। अफ्रीका में तो अरहर को हरी सब्ज़ी के रूप में खाया जाता है, वहाँ भी यह किस्म लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

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कर्नाटक के बागलकोट जिले में दो किसानों हनुमंथा मिर्जी और बसवराज घांटी ने गर्मी के मौसम में इस किस्म की खेती करके अच्छे नतीजे हासिल किए हैं। बिना किसी रोग और कीट के यह फसल तैयार हुई और उच्च घनत्व में लगाए जाने पर भी इसका विकास संतोषजनक रहा। इससे यह साबित होता है कि यह किस्म गर्मी में भी भरोसेमंद उत्पादन दे सकती है।

आईसीपीवी 25444 केवल एक किस्म नहीं, बल्कि भारत के कृषि भविष्य की एक नई दिशा है। यह जलवायु परिवर्तन की चुनौती से लड़ने में सक्षम है और किसानों को हर मौसम में उत्पादन का अवसर देती है। आईसीआरआईसैट की यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर दालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक मील का पत्थर बन सकती है।

इस लेख को ICRISAT की वेबसाइट पर अंग्रेजी में पढ़ सकते हैं।

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