खरीफ 2025: धान, मोटे अनाज और दालों की बुवाई में रिकॉर्ड बढ़ोतरी, तिलहन और कपास की रफ्तार धीमी
Divendra Singh | Aug 05, 2025, 18:28 IST
मॉनसून की अच्छी शुरुआत असर खरीफ 2025 की बुवाई में साफ नज़र आ रहा है। इस साल खरीफ फसलों की बुवाई में बीते वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। जहां धान, मोटे अनाज और मूंग जैसी फसलों में अच्छी प्रगति हुई है, वहीं सोयाबीन, मूंगफली और कपास जैसी फसलों में कुछ क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है। इस बदलाव का सीधा संबंध मानसून की वितरण-पैटर्न, बीजों की उपलब्धता और क्षेत्रीय खेती की प्राथमिकताओं से जुड़ा है।
खरीफ 2025: बुवाई के क्षेत्र में 17.6% की बढ़ोत्तरी
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी साप्ताहिक क्षेत्र कवरेज रिपोर्ट (1 अगस्त 2025 तक) के अनुसार, देश भर में खरीफ फसलों की बुवाई 1096.65 लाख हेक्टेयर तक पहुँच चुकी है, जो पिछले वर्ष 932.93 लाख हेक्टेयर थी। यानी इस साल अब तक लगभग 44.96 लाख हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है।
धान: 25% से अधिक वृद्धि
भारत में खरीफ का प्रमुख खाद्यान्न धान है। इस वर्ष 403.09 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई हो चुकी है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 319.40 लाख हेक्टेयर था। यानी इस साल 83.69 लाख हेक्टेयर अधिक क्षेत्र में धान की खेती की गई है।
इस वृद्धि का कारण:
मानसून की समय पर और अच्छी वर्षा
उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे राज्यों में रोपाई की तेज़ी
सीधी बुवाई (DSR) पद्धति को बढ़ावा
दालों में मिलाजुला प्रदर्शन
कुल दालों का रकबा इस साल 129.61 लाख हेक्टेयर रहा है, जबकि पिछले साल 101.22 लाख हेक्टेयर था। यानि कुल मिलाकर बुवाई में बढ़त है। हालाँकि कुछ प्रमुख दालों में गिरावट भी देखी गई:
तुर दाल: -2.74 लाख हेक्टेयर
उड़द: -0.46 लाख हेक्टेयर
मूंग: +1.06 लाख हेक्टेयर
मोथ बीन: +1.80 लाख हेक्टेयर
अन्य दालें: वृद्धि
यह क्षेत्रीय मानसून की असमानता और बीज की उपलब्धता से जुड़ा हो सकता है।
मोटे अनाज: मक्का बना बढ़त का सूत्रधार
मोटे अनाजों की कुल बुवाई 180.71 लाख हेक्टेयर तक पहुँची है, जो पिछले वर्ष से 8.14 लाख हेक्टेयर अधिक है। इसमें सबसे अधिक योगदान मक्का (78.95 लाख हे.) का है, जिसमें 9.63 लाख हेक्टेयर की वृद्धि देखी गई है।
हालाँकि:
ज्वार, बाजरा और रागी में थोड़ी गिरावट देखी गई है।
सरकार द्वारा पोषण अभियान के तहत मोटे अनाजों को ‘श्री अन्न’ के रूप में बढ़ावा देना जारी है।
तिलहन फसलें: सोयाबीन और मूंगफली में गिरावट
कुल तिलहन क्षेत्र 2024-25 के मुकाबले 7.11 लाख हेक्टेयर कम होकर 194.63 लाख हेक्टेयर रहा है।
सोयाबीन: -4.91 लाख हेक्टेयर
मूंगफली: -1.88 लाख हेक्टेयर
तिल, सूरजमुखी, नाइजरसीड: गिरावट
अरंडी के बीज: +0.50 लाख हेक्टेयर
तिलहन में गिरावट का एक कारण मानसून की देरी और बीजों की कीमत में अस्थिरता हो सकता है।
गन्ना, कपास और जूट: क्षेत्रीय विविधता के संकेत
गन्ना: इस साल 52.51 लाख हेक्टेयर में बोया गया, जो पिछले वर्ष के मुकाबले थोड़ा कम है।
कपास: बुवाई में -2.56 लाख हेक्टेयर की कमी, मुख्यतः महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात में।
जूट और मेस्टा: स्थिर स्थिति, लगभग 6.60 लाख हेक्टेयर।
आंकड़ों का सारांश
क्या कहता है मौसम?
IMD के अनुसार अगस्त 2025 में बारिश सामान्य रहने की संभावना है। इससे फसलों की स्थिति और बेहतर हो सकती है। विशेषकर धान और मक्का जैसी जल-आधारित फसलों को इससे सीधा लाभ मिल सकता है।
उत्पादन में आशा, कुछ फसलों में चिंता
खरीफ 2025 की शुरुआत सकारात्मक रही है। धान, दालें और मक्का जैसी फसलों में उत्साहजनक वृद्धि है, जो खाद्य सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है। हालाँकि, तिलहन और कपास में गिरावट चिंताजनक हो सकती है, जिस पर सरकार को हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
खरीफ 2025: बुवाई के क्षेत्र में 17.6% की बढ़ोत्तरी
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी साप्ताहिक क्षेत्र कवरेज रिपोर्ट (1 अगस्त 2025 तक) के अनुसार, देश भर में खरीफ फसलों की बुवाई 1096.65 लाख हेक्टेयर तक पहुँच चुकी है, जो पिछले वर्ष 932.93 लाख हेक्टेयर थी। यानी इस साल अब तक लगभग 44.96 लाख हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है।
धान: 25% से अधिक वृद्धि
भारत में खरीफ का प्रमुख खाद्यान्न धान है। इस वर्ष 403.09 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई हो चुकी है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 319.40 लाख हेक्टेयर था। यानी इस साल 83.69 लाख हेक्टेयर अधिक क्षेत्र में धान की खेती की गई है।
इस वृद्धि का कारण:
मानसून की समय पर और अच्छी वर्षा
उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे राज्यों में रोपाई की तेज़ी
सीधी बुवाई (DSR) पद्धति को बढ़ावा
दालों में मिलाजुला प्रदर्शन
कुल दालों का रकबा इस साल 129.61 लाख हेक्टेयर रहा है, जबकि पिछले साल 101.22 लाख हेक्टेयर था। यानि कुल मिलाकर बुवाई में बढ़त है। हालाँकि कुछ प्रमुख दालों में गिरावट भी देखी गई:
तुर दाल: -2.74 लाख हेक्टेयर
उड़द: -0.46 लाख हेक्टेयर
मूंग: +1.06 लाख हेक्टेयर
मोथ बीन: +1.80 लाख हेक्टेयर
अन्य दालें: वृद्धि
यह क्षेत्रीय मानसून की असमानता और बीज की उपलब्धता से जुड़ा हो सकता है।
मोटे अनाज: मक्का बना बढ़त का सूत्रधार
मोटे अनाजों की कुल बुवाई 180.71 लाख हेक्टेयर तक पहुँची है, जो पिछले वर्ष से 8.14 लाख हेक्टेयर अधिक है। इसमें सबसे अधिक योगदान मक्का (78.95 लाख हे.) का है, जिसमें 9.63 लाख हेक्टेयर की वृद्धि देखी गई है।
हालाँकि:
ज्वार, बाजरा और रागी में थोड़ी गिरावट देखी गई है।
सरकार द्वारा पोषण अभियान के तहत मोटे अनाजों को ‘श्री अन्न’ के रूप में बढ़ावा देना जारी है।
तिलहन फसलें: सोयाबीन और मूंगफली में गिरावट
कुल तिलहन क्षेत्र 2024-25 के मुकाबले 7.11 लाख हेक्टेयर कम होकर 194.63 लाख हेक्टेयर रहा है।
सोयाबीन: -4.91 लाख हेक्टेयर
मूंगफली: -1.88 लाख हेक्टेयर
तिल, सूरजमुखी, नाइजरसीड: गिरावट
अरंडी के बीज: +0.50 लाख हेक्टेयर
तिलहन में गिरावट का एक कारण मानसून की देरी और बीजों की कीमत में अस्थिरता हो सकता है।
गन्ना, कपास और जूट: क्षेत्रीय विविधता के संकेत
गन्ना: इस साल 52.51 लाख हेक्टेयर में बोया गया, जो पिछले वर्ष के मुकाबले थोड़ा कम है।
कपास: बुवाई में -2.56 लाख हेक्टेयर की कमी, मुख्यतः महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात में।
जूट और मेस्टा: स्थिर स्थिति, लगभग 6.60 लाख हेक्टेयर।
आंकड़ों का सारांश
| फसल वर्ग | क्षेत्रफल (लाख हे.) | 2025-26 | 2024-25 | वृद्धि / गिरावट |
| धान | 403.09 | 319.40 | 273.72 | +44.96 |
| कुल दालें | 129.61 | 101.22 | 101.54 | -0.32 |
| मोटे अनाज | 180.71 | 172.57 | 164.76 | 7.81 |
| तिलहन | 194.63 | 171.03 | 178.14 | -7.11 |
| गन्ना | 52.51 | 57.31 | 55.68 | 1.64 |
| कपास | 129.50 | 105.87 | 108.43 | -2.56 |
| कुल योग | 1096.65 | 932.93 | 887.97 | +44.96 |
IMD के अनुसार अगस्त 2025 में बारिश सामान्य रहने की संभावना है। इससे फसलों की स्थिति और बेहतर हो सकती है। विशेषकर धान और मक्का जैसी जल-आधारित फसलों को इससे सीधा लाभ मिल सकता है।
उत्पादन में आशा, कुछ फसलों में चिंता
खरीफ 2025 की शुरुआत सकारात्मक रही है। धान, दालें और मक्का जैसी फसलों में उत्साहजनक वृद्धि है, जो खाद्य सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है। हालाँकि, तिलहन और कपास में गिरावट चिंताजनक हो सकती है, जिस पर सरकार को हस्तक्षेप की आवश्यकता है।