धान, मक्का और मूंग की बुवाई में तेज़ी, लेकिन कपास और तिलहन फसलों का घटा रकबा
Gaon Connection | Jul 29, 2025, 18:49 IST
25 जुलाई 2025 तक देशभर में खरीफ फसलों की बुवाई 829.64 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हो चुकी है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 31.73 लाख हेक्टेयर अधिक है। धान, मक्का और मूंग की बुवाई में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सोयाबीन, उड़द और कपास जैसी फसलों के रकबे में गिरावट देखी गई है।
कृषि और किसान कल्याण विभाग ने खरीफ फसलों की बुवाई से संबंधित आंकड़े जारी किए हैं। इस वर्ष अब तक देशभर में खरीफ फसलों की बुआई 829.64 लाख हेक्टेयर में की जा चुकी है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 31.73 लाख हेक्टेयर अधिक है। यह आंकड़ा देश की खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय को लेकर सकारात्मक संकेत देता है।
धान की बुवाई में सबसे अधिक वृद्धि
खरीफ फसलों में सबसे अधिक बुवाई धान की हुई है। 2025 तक धान का रकबा 245.13 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है, जो 2024 की तुलना में 28.97 लाख हेक्टेयर अधिक है। भारत में धान की खेती खरीफ सीजन में अहम भूमिका निभाती है, और इस वृद्धि से उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की संभावना है।
दालों की खेती में मामूली सुधार
दालों के कुल रकबे में 3.11 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, प्रमुख दालों में मिश्रित तस्वीर देखने को मिली है:
मूंग की बुआई में 4.24 लाख हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई, जो कि दालों में सबसे ज्यादा है।
वहीं तूर (अरहर) की खेती में 3.10 लाख हेक्टेयर और उड़द में 1.20 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है।
मोथ बीन जैसी कम उगाई जाने वाली फसल में भी 3.08 लाख हेक्टेयर का सकारात्मक बदलाव देखा गया।
यह दर्शाता है कि किसान तेजी से अल्पावधि में तैयार होने वाली और कम पानी मांगने वाली दालों की ओर रुख कर रहे हैं।
मोटे अनाज की वापसी
मोटे अनाज, जिन्हें अब “श्री अन्न” के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, की बुआई में भी कुल 5.75 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। इनमें से मक्का की खेती में सबसे अधिक 6.66 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई, जबकि रागी और अन्य मिलेट्स की बुआई में थोड़ी गिरावट देखी गई। यह भारत सरकार की मिलेट मिशन नीति और जलवायु परिवर्तन के प्रति टिकाऊ खेती की दिशा में उठाया गया कदम है।
तिलहन फसलों में मामूली गिरावट
तिलहन फसलों के अंतर्गत कुल रकबा 3.83 लाख हेक्टेयर कम हुआ है। विशेष रूप से सोयाबीन की खेती में 4.68 लाख हेक्टेयर की गिरावट चिंता का विषय है, हालांकि मूंगफली, तिल, और अरंडी के क्षेत्रफल में हल्की वृद्धि दर्ज की गई है। विशेषज्ञ इसे मानसून की अस्थिरता और मूल्य अस्थिरता से जोड़ते हैं।
नकदी फसलें: गन्ना और कपास
गन्ने की बुआई में 0.29 लाख हेक्टेयर की वृद्धि देखी गई है, जो भारत के प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में किसानों के गन्ने की ओर रुझान को दर्शाती है।
वहीं कपास के रकबे में 2.37 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज हुई है। जलवायु जोखिम, फसल बीमा की चुनौतियाँ और पिछले वर्षों में कीटनाशक समस्याएँ इसके कारण हो सकती हैं।
जूट और मेस्टा में मामूली कमी
जूट और मेस्टा की खेती में 0.18 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। पूर्वी भारत में इसकी खेती होती है, और हाल के वर्षों में रेशेदार फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव किसानों की रूचि को प्रभावित कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती का असर
विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के कारण भी कुछ बदलाव दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में किसान अब कम इनपुट लागत वाली पारंपरिक और जैविक विधियों को अपनाने लगे हैं। इसका असर यह हुआ है कि किसान उन फसलों की ओर बढ़े हैं जो कम सिंचाई में भी अच्छी उपज देती हैं — जैसे मूंग, मक्का, और मोटे अनाज।
प्रधानमंत्री प्राकृतिक खेती मिशन के तहत किसानों को जैविक खाद, गो आधारित जीवामृत और कीट नियंत्रण उपायों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे फसल की लागत घटने और मुनाफा बढ़ने की संभावना बनी है।
धान की बुवाई में सबसे अधिक वृद्धि
खरीफ फसलों में सबसे अधिक बुवाई धान की हुई है। 2025 तक धान का रकबा 245.13 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है, जो 2024 की तुलना में 28.97 लाख हेक्टेयर अधिक है। भारत में धान की खेती खरीफ सीजन में अहम भूमिका निभाती है, और इस वृद्धि से उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की संभावना है।
दालों की खेती में मामूली सुधार
दालों के कुल रकबे में 3.11 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, प्रमुख दालों में मिश्रित तस्वीर देखने को मिली है:
मूंग की बुआई में 4.24 लाख हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई, जो कि दालों में सबसे ज्यादा है।
वहीं तूर (अरहर) की खेती में 3.10 लाख हेक्टेयर और उड़द में 1.20 लाख हेक्टेयर की गिरावट आई है।
मोथ बीन जैसी कम उगाई जाने वाली फसल में भी 3.08 लाख हेक्टेयर का सकारात्मक बदलाव देखा गया।
यह दर्शाता है कि किसान तेजी से अल्पावधि में तैयार होने वाली और कम पानी मांगने वाली दालों की ओर रुख कर रहे हैं।
मोटे अनाज की वापसी
मोटे अनाज, जिन्हें अब “श्री अन्न” के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, की बुआई में भी कुल 5.75 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। इनमें से मक्का की खेती में सबसे अधिक 6.66 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई, जबकि रागी और अन्य मिलेट्स की बुआई में थोड़ी गिरावट देखी गई। यह भारत सरकार की मिलेट मिशन नीति और जलवायु परिवर्तन के प्रति टिकाऊ खेती की दिशा में उठाया गया कदम है।
तिलहन फसलों में मामूली गिरावट
तिलहन फसलों के अंतर्गत कुल रकबा 3.83 लाख हेक्टेयर कम हुआ है। विशेष रूप से सोयाबीन की खेती में 4.68 लाख हेक्टेयर की गिरावट चिंता का विषय है, हालांकि मूंगफली, तिल, और अरंडी के क्षेत्रफल में हल्की वृद्धि दर्ज की गई है। विशेषज्ञ इसे मानसून की अस्थिरता और मूल्य अस्थिरता से जोड़ते हैं।
नकदी फसलें: गन्ना और कपास
गन्ने की बुआई में 0.29 लाख हेक्टेयर की वृद्धि देखी गई है, जो भारत के प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में किसानों के गन्ने की ओर रुझान को दर्शाती है।
वहीं कपास के रकबे में 2.37 लाख हेक्टेयर की कमी दर्ज हुई है। जलवायु जोखिम, फसल बीमा की चुनौतियाँ और पिछले वर्षों में कीटनाशक समस्याएँ इसके कारण हो सकती हैं।
जूट और मेस्टा में मामूली कमी
जूट और मेस्टा की खेती में 0.18 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। पूर्वी भारत में इसकी खेती होती है, और हाल के वर्षों में रेशेदार फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव किसानों की रूचि को प्रभावित कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती का असर
विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के कारण भी कुछ बदलाव दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में किसान अब कम इनपुट लागत वाली पारंपरिक और जैविक विधियों को अपनाने लगे हैं। इसका असर यह हुआ है कि किसान उन फसलों की ओर बढ़े हैं जो कम सिंचाई में भी अच्छी उपज देती हैं — जैसे मूंग, मक्का, और मोटे अनाज।
प्रधानमंत्री प्राकृतिक खेती मिशन के तहत किसानों को जैविक खाद, गो आधारित जीवामृत और कीट नियंत्रण उपायों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे फसल की लागत घटने और मुनाफा बढ़ने की संभावना बनी है।