मसूर की फसल को कीट और रोगों से कैसे बचाएं, जानें कुछ देसी और वैज्ञानिक उपाय

Astha Singh | Jan 06, 2018, 17:12 IST

मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिसकी खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में मसूर की खेती की उत्पादकता में ठहराव आ गया था, इसके अलावा यह फसल तैयार होने में भी 130 से लेकर 140 दिन लेती है। इसमें कीट लगने का खतरा भी बढ़ा रहता है। मसूर की फसल में लगने वाले लगभग सभी कीट वही होते हैं ,जो रबी दलहन फसलों में लगते हैं। इसमें से मुख्य रूप से कटवर्म, एफिड और मटर का फलीछेदक कीट अधिक हानि पहुंचाते हैं।

प्रमुख रोग

  • मसूर में मुख्य रुप से उकठा तथा गेरुआ रोगों का प्रकोप रहता है।

रोग प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका

केवीके अंबेडकरनगर के कृषि वैज्ञानिक डॉ रवि प्रकाश मौर्या ने बताया कि," उकठा रोग की उग्रता को कम करने के लिये थायरम 3 ग्राम या 1.5 ग्राम थायरम / 1.5 ग्राम कार्बान्डाइजम का मिश्रण प्रति किलों बीज को उपचारित करके बोयें। उकठा निरोधक जाति जैसे जे.एल.-3 आदि बोयें। कभी-कभी गेरुआ रोग का भी प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिये डायथेन एम 45, 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिये। गेरुआ प्रभावित क्षेत्रों में एल. 4076 आदि गेरुआ निरोधक जातियां बोयें।"

प्रमुख कीट

  • मसूर में माहू, थ्रिप्स तथा फली छेदक इल्ली कीटों का प्रकोप होता है।

कीट प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका

डॉ मौर्या ने बताया कि, "माहू एवं थ्रिप्स के नियंत्रण के लिये मोनोक्रोप्टोफास एक मि.ली. मेटासिस्टाक्स 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। फल छेदक इल्ली के लिये इन्डोसल्फास व 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या क्यूनालफास एक मि.ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर छिड़काव करने से कीट नियंत्रित हो जाते हैं। खेत में छिड़काव एक समान होना चाहिये।"

कीटों और रोगों से फसल को बचाने के देसी तरीके

डॉ मौर्या बताते हैं कि कुछ देसी तरीकों से भी किसान मसूर की फसल को कीटों और रोगों से बचा सकते हैं ।

  • 5 लीटर देशी गाय का मट्ठा लेकर उसमें 15 चने के बराबर हींग पीसकर घोल दें , इस घोल को बीजों पर डालकर भिगो दें तथा 2 घंटे तक रखा रहने दें उसके बाद बोवाई करें ।यह घोल 1 एकड़ में लगे बीजों के लिए पर्याप्त है।
  • 5 देशी गाय के गौमूत्र में बीज भिगोकर उनकी बोवाई करें , ओगरा और दीमक से पौधा सुरक्षित रहेगा। इन कीटों को आर्थिक क्षतिस्तर से नीचे रखने के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद एजैडिरैक्टीन (नीम तेल) 0.03 प्रतिशत 2.5-3.0 मि0ली0 प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।


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