बेमौसम बारिश से बचाएगी मूंगफली की नई जीनोमिक खोज
Gaon Connection | Dec 16, 2025, 12:12 IST
बेमौसम बारिश से मूंगफली की फसल को होने वाले भारी नुकसान से अब राहत मिल सकती है। ICRISAT की नई जीनोमिक खोज ने ऐसी किस्मों का रास्ता खोला है, जो कटाई से पहले अंकुरण को रोक सकती हैं।
बेमौसम बारिश आज मूंगफली किसानों के लिए सबसे बड़ा संकट बनती जा रही है। खासकर जब फसल पकने के बाद कटाई से ठीक पहले बारिश हो जाए, तो मूंगफली के दाने खेत में ही अंकुरित होने लगते हैं। इस समस्या को प्री-हार्वेस्ट स्प्राउटिंग (Pre-Harvest Sprouting – PHS) कहा जाता है। इसका सीधा असर उपज, गुणवत्ता और किसानों की आमदनी पर पड़ता है।
दुनिया में मूंगफली उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा देने वाली स्पैनिश किस्में इस खतरे के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील मानी जाती हैं। सामान्य हालात में इससे 10–20 प्रतिशत तक नुकसान होता है, जबकि गंभीर परिस्थितियों में यह नुकसान 50 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।
इसी चुनौती का समाधान लेकर आया है अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) और उसके साझेदारों का एक महत्वपूर्ण जीनोमिक अध्ययन। इस शोध में वैज्ञानिकों ने मूंगफली की ऐसी किस्मों और जीनों की पहचान की है, जिनमें फ्रेश सीड डॉर्मेंसी (Fresh Seed Dormancy – FSD) पाई जाती है।
फ्रेश सीड डॉर्मेंसी को आसान शब्दों में “प्राकृतिक इंतज़ार” कहा जा सकता है, एक ऐसी जैविक व्यवस्था, जिसमें बीज अनुकूल परिस्थितियाँ होने के बावजूद कुछ समय तक अंकुरित नहीं होते। यही गुण मूंगफली के दानों को कटाई से पहले अंकुरित होने से बचाता है और किसानों को सुरक्षित कटाई के लिए जरूरी समय देता है।
ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इस खोज को जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों के लिए एक बड़ा सहारा बताया। उनके अनुसार, “बदलते मौसम और अनिश्चित वर्षा के बीच फ्रेश सीड डॉर्मेंसी से जुड़े जीनोमिक ज्ञान से लाखों छोटे किसानों को सुरक्षा मिल सकती है।”
उन्होंने दुनियाभर के मूंगफली प्रजनकों से आग्रह किया कि वे इन निष्कर्षों का उपयोग करके अधिक जलवायु-लचीली और सुरक्षित किस्में विकसित करें।
आमतौर पर मूंगफली की फसल 90 से 120 दिनों में पक जाती है। किसान कटाई और सुखाने के लिए एक छोटे से सूखे मौसम पर निर्भर रहते हैं। लेकिन इसी दौरान अगर बारिश हो जाए, तो पूरी फसल खतरे में पड़ जाती है।
इस जोखिम को समझते हुए वैज्ञानिकों ने ICRISAT जीनबैंक में संरक्षित 184 मूंगफली जीनोटाइप्स का दो मौसमों तक मूल्यांकन किया। अध्ययन में पाया गया कि कुछ किस्में 30 दिनों से अधिक समय तक बिना अंकुरित हुए सुरक्षित रहीं, जबकि कुछ किस्मों में एक सप्ताह के भीतर ही अंकुरण शुरू हो गया।
शोधकर्ताओं ने 10 से 21 दिनों की डॉर्मेंसी वाली किस्मों को सबसे उपयुक्त माना, क्योंकि यह अवधि एक ओर अंकुरण से सुरक्षा देती है और दूसरी ओर अगली बुवाई में देरी भी नहीं करती।
इसके बाद चयनित किस्मों के जीनोमिक विश्लेषण से 9 प्रमुख जीनों की पहचान की गई, जो फ्रेश सीड डॉर्मेंसी और प्री-हार्वेस्ट स्प्राउटिंग प्रतिरोध से जुड़े हैं। ये जीन भविष्य में जीनोमिक-असिस्टेड ब्रीडिंग (GAB) के जरिए बेहतर किस्में विकसित करने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
ICRISAT के उप-महानिदेशक (अनुसंधान एवं नवाचार) डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड के अनुसार, “मूंगफली अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की एक आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण फसल है और वैश्विक खाद्य तेल उत्पादन की रीढ़ भी। बीज डॉर्मेंसी का सही संतुलन न केवल छोटे किसानों को लाभ देगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर गुणवत्ता और उत्पादन बनाए रखने में भी मदद करेगा।”
वैश्विक स्तर पर मूंगफली (Groundnut) एक पोषण-समृद्ध दलहनी फसल है, जो प्रोटीन, असंतृप्त वसा और आवश्यक विटामिनों का प्रमुख स्रोत है। FAO के अनुसार, 2023 में दुनिया भर में 32.7 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में मूंगफली की खेती हुई और कुल उत्पादन 54 मिलियन टन से अधिक रहा।
बीजों में डॉर्मेंसी का नियंत्रण हार्मोनल और जीनोमिक प्रक्रियाओं से होता है। जहाँ एब्सिसिक एसिड (ABA) डॉर्मेंसी को बनाए रखता है, वहीं जिबरेलिक एसिड (GA) अंकुरण को बढ़ावा देता है। आधुनिक प्रजनन में इन जैविक तंत्रों की समझ बेहद जरूरी हो गई है।
इस अध्ययन में उपयोग की गई Genome-Wide Association Study (GWAS) तकनीक ने यह साबित किया है कि जटिल कृषि गुणों के पीछे छिपे जीनों की पहचान के लिए यह एक प्रभावी तरीका है। इससे वैज्ञानिक पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक सटीक और टिकाऊ समाधान विकसित कर पा रहे हैं।
ICRISAT के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. मनीष पांडे के अनुसार, “यह अवधारणा सिर्फ मूंगफली तक सीमित नहीं है। बढ़ती जलवायु अनिश्चितता के दौर में फ्रेश सीड डॉर्मेंसी कई फसलों के लिए अहम गुण बन सकता है और जीनोमिक स्तर पर समाधान सबसे किफायती और टिकाऊ रास्ता है।”
इस शोध से 2-3 सप्ताह की बीज डॉर्मेंसी वाली मूंगफली किस्मों के विकास का रास्ता साफ होता है, जिससे किसानों को सुरक्षित कटाई का “बफर समय” मिल सकेगा और बेमौसम बारिश से होने वाले भारी नुकसान से बचाव होगा।
ICRISAT पहले ही मूंगफली में गर्मी सहनशीलता, रोग प्रतिरोध और प्रोसेसिंग गुणवत्ता जैसे गुणों पर महत्वपूर्ण काम कर चुका है। संस्थान का प्रजनन कार्यक्रम लगातार वैश्विक जर्मप्लाज्म से उपयोगी लक्षणों की पहचान कर उन्हें नई किस्मों में शामिल कर रहा है।
यह जीनोमिक खोज न केवल किसानों की आमदनी बचाने की क्षमता रखती है, बल्कि जलवायु-लचीली कृषि की दिशा में भारत और दुनिया के लिए एक मजबूत कदम भी साबित हो सकती है।
दुनिया में मूंगफली उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा देने वाली स्पैनिश किस्में इस खतरे के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील मानी जाती हैं। सामान्य हालात में इससे 10–20 प्रतिशत तक नुकसान होता है, जबकि गंभीर परिस्थितियों में यह नुकसान 50 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।
ICRISAT की बड़ी जीनोमिक सफलता
फ्रेश सीड डॉर्मेंसी को आसान शब्दों में “प्राकृतिक इंतज़ार” कहा जा सकता है, एक ऐसी जैविक व्यवस्था, जिसमें बीज अनुकूल परिस्थितियाँ होने के बावजूद कुछ समय तक अंकुरित नहीं होते। यही गुण मूंगफली के दानों को कटाई से पहले अंकुरित होने से बचाता है और किसानों को सुरक्षित कटाई के लिए जरूरी समय देता है।
यह जीनोमिक खोज न केवल किसानों की आमदनी बचाने की क्षमता रखती है, बल्कि जलवायु-लचीली कृषि की दिशा में भारत और दुनिया के लिए एक मजबूत कदम भी साबित हो सकती है।
ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इस खोज को जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों के लिए एक बड़ा सहारा बताया। उनके अनुसार, “बदलते मौसम और अनिश्चित वर्षा के बीच फ्रेश सीड डॉर्मेंसी से जुड़े जीनोमिक ज्ञान से लाखों छोटे किसानों को सुरक्षा मिल सकती है।”
उन्होंने दुनियाभर के मूंगफली प्रजनकों से आग्रह किया कि वे इन निष्कर्षों का उपयोग करके अधिक जलवायु-लचीली और सुरक्षित किस्में विकसित करें।
कैसे हुआ अध्ययन?
इस जोखिम को समझते हुए वैज्ञानिकों ने ICRISAT जीनबैंक में संरक्षित 184 मूंगफली जीनोटाइप्स का दो मौसमों तक मूल्यांकन किया। अध्ययन में पाया गया कि कुछ किस्में 30 दिनों से अधिक समय तक बिना अंकुरित हुए सुरक्षित रहीं, जबकि कुछ किस्मों में एक सप्ताह के भीतर ही अंकुरण शुरू हो गया।
शोधकर्ताओं ने 10 से 21 दिनों की डॉर्मेंसी वाली किस्मों को सबसे उपयुक्त माना, क्योंकि यह अवधि एक ओर अंकुरण से सुरक्षा देती है और दूसरी ओर अगली बुवाई में देरी भी नहीं करती।
9 अहम जीनों की पहचान
अध्ययन में पाया गया कि कुछ किस्में 30 दिनों से अधिक समय तक बिना अंकुरित हुए सुरक्षित रहीं, जबकि कुछ किस्मों में एक सप्ताह के भीतर ही अंकुरण शुरू हो गया।
ICRISAT के उप-महानिदेशक (अनुसंधान एवं नवाचार) डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड के अनुसार, “मूंगफली अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की एक आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण फसल है और वैश्विक खाद्य तेल उत्पादन की रीढ़ भी। बीज डॉर्मेंसी का सही संतुलन न केवल छोटे किसानों को लाभ देगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर गुणवत्ता और उत्पादन बनाए रखने में भी मदद करेगा।”
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और जीनोमिक विज्ञान
बीजों में डॉर्मेंसी का नियंत्रण हार्मोनल और जीनोमिक प्रक्रियाओं से होता है। जहाँ एब्सिसिक एसिड (ABA) डॉर्मेंसी को बनाए रखता है, वहीं जिबरेलिक एसिड (GA) अंकुरण को बढ़ावा देता है। आधुनिक प्रजनन में इन जैविक तंत्रों की समझ बेहद जरूरी हो गई है।
इस अध्ययन में उपयोग की गई Genome-Wide Association Study (GWAS) तकनीक ने यह साबित किया है कि जटिल कृषि गुणों के पीछे छिपे जीनों की पहचान के लिए यह एक प्रभावी तरीका है। इससे वैज्ञानिक पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक सटीक और टिकाऊ समाधान विकसित कर पा रहे हैं।
किसानों के लिए क्या मायने रखता है यह शोध?
इस शोध से 2-3 सप्ताह की बीज डॉर्मेंसी वाली मूंगफली किस्मों के विकास का रास्ता साफ होता है, जिससे किसानों को सुरक्षित कटाई का “बफर समय” मिल सकेगा और बेमौसम बारिश से होने वाले भारी नुकसान से बचाव होगा।
ICRISAT पहले ही मूंगफली में गर्मी सहनशीलता, रोग प्रतिरोध और प्रोसेसिंग गुणवत्ता जैसे गुणों पर महत्वपूर्ण काम कर चुका है। संस्थान का प्रजनन कार्यक्रम लगातार वैश्विक जर्मप्लाज्म से उपयोगी लक्षणों की पहचान कर उन्हें नई किस्मों में शामिल कर रहा है।
यह जीनोमिक खोज न केवल किसानों की आमदनी बचाने की क्षमता रखती है, बल्कि जलवायु-लचीली कृषि की दिशा में भारत और दुनिया के लिए एक मजबूत कदम भी साबित हो सकती है।