सिर्फ सब्ज़ी नहीं, एक आंदोलन: परवल खेती से झारखंड के किसानों को नई राह
Gaon Connection | Jul 24, 2025, 16:39 IST
सचिन झा खेती की राह पकड़ी और परवल खेती को झारखंड में नई पहचान दिलाई। आज वह सिर्फ सफल किसान नहीं, बल्कि युवाओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं।
जब ज़्यादातर युवा कॉर्पोरेट की नौकरी और शहर की ज़िंदगी के सपने देखते हैं, तब सचिन झा ने उसे छोड़ खेती को चुना। झारखंड के रांची में रहने वाले सचिन पहले दूरदर्शन के 'कृषि दर्शन' कार्यक्रम से जुड़े पत्रकार थे। खेती-किसानी पर रिपोर्टिंग करते-करते उन्हें न सिर्फ इस क्षेत्र की समस्याएं दिखीं, बल्कि इसमें छुपा भविष्य भी नजर आया।
रांची स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) - पूर्वी क्षेत्र अनुसंधान परिसर के अंतर्गत फार्मिंग सिस्टम्स रिसर्च सेंटर फॉर हिल एंड प्लेटू रीजन (FSRCHPR) में बार-बार जाने से सचिन की दिलचस्पी वैज्ञानिक खेती में बढ़ती गई। यहीं उन्होंने परवल की बेहतर किस्में देखीं और तय कर लिया कि यही उनका भविष्य होगा।
परवल – जो बन गया पहचान
परवल, जिसे वैज्ञानिक भाषा में Trichosanthes dioica कहते हैं, पूर्वी भारत में बहुत पसंद किया जाता है। इसकी लंबी फल देने वाली अवधि (फरवरी से अक्टूबर) और बाजार में भारी मांग इसे एक लाभकारी फसल बनाती है। यह फाइबर, विटामिन्स और एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है और स्वास्थ्यवर्धक होने के कारण रसोई का अहम हिस्सा है।
सचिन ने इस फसल में संभावनाएं देखीं और 2021 में रांची के ओरमांझी ब्लॉक के आनंदी गांव में 25 एकड़ जमीन लीज पर ली।
विज्ञान से सफल हुआ सपना
ICAR-FSRCHPR की मदद से उन्होंने संस्थान की विकसित की गई परवल की उन्नत किस्मों – स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण सुरूचि और स्वर्ण रेखा – की खेती शुरू की। इन किस्मों की खासियत है – सॉफ्ट बीज, मुलायम गूदा और 25-30 टन प्रति हेक्टेयर तक की ऊँची उपज।
सचिन ने 10,000 पौधों का मदर ब्लॉक तैयार किया, जिसमें खड़ी बेलों की प्रणाली (वर्टिकल ट्रेलिस सिस्टम) का इस्तेमाल किया गया। पहले ही साल 18 टन उत्पादन हुआ और औसतन ₹40 प्रति किलो के भाव से ₹7.5 लाख की आय हुई।
दूसरा साल, दोगुनी कामयाबी
दूसरे साल उन्होंने नेट हाउस लगाकर परवल की कलम से नई पौध तैयार करने की तकनीक अपनाई। उन्होंने करीब 50,000 पौधे तैयार किए, जिनमें से 42,000 पौधे झारखंड, बिहार और ओडिशा के किसानों को ₹15 प्रति पौधा के भाव से बेचे, जिससे उन्हें अतिरिक्त ₹6.3 लाख की आमदनी हुई। शेष पौधों से उन्होंने दो एकड़ में और विस्तार किया।
इसके अलावा वे वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में खीरा, लौकी और अन्य कद्दू वर्गीय फसलों की भी खेती कर रहे हैं।
पत्रकार से किसान और अब ‘ब्रांड एंबेसडर’
आज सचिन झा को झारखंड सरकार के कृषि विभाग ने 11 जिलों में परवल खेती के प्रदर्शन (डेमो) प्रोजेक्ट का प्रतिनिधि बनाया है। वे प्रति जिले 20 डेमो प्लॉट में किसानों को प्रशिक्षित करेंगे। उनका मॉडल न सिर्फ लाभकारी है, बल्कि प्रेरणादायक भी।
परवल खेती: अब झारखंड की नई पहचान
झारखंड पारंपरिक रूप से धान और दलहन फसलों का राज्य माना जाता है, लेकिन सचिन जैसे युवा किसानों ने दिखा दिया है कि यहां परवल जैसी नकद फसलें भी व्यवसायिक स्तर पर सफल हो सकती हैं। उनकी पहल से राज्य में कई अन्य युवा भी खेती में लौट रहे हैं।
प्रेरणा सिर्फ खेतों में नहीं, सोच में भी बदलाव
सचिन की कहानी बताती है कि बदलाव सिर्फ नीतियों से नहीं होता, व्यक्तिगत पहल से भी बड़ा बदलाव संभव है। कैमरा छोड़ खेती करना एक साहसी फैसला था, लेकिन आज वे खुद साबित कर चुके हैं कि कृषि सिर्फ परंपरा नहीं, आधुनिक उद्यम भी है।
रांची स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) - पूर्वी क्षेत्र अनुसंधान परिसर के अंतर्गत फार्मिंग सिस्टम्स रिसर्च सेंटर फॉर हिल एंड प्लेटू रीजन (FSRCHPR) में बार-बार जाने से सचिन की दिलचस्पी वैज्ञानिक खेती में बढ़ती गई। यहीं उन्होंने परवल की बेहतर किस्में देखीं और तय कर लिया कि यही उनका भविष्य होगा।
परवल – जो बन गया पहचान
परवल, जिसे वैज्ञानिक भाषा में Trichosanthes dioica कहते हैं, पूर्वी भारत में बहुत पसंद किया जाता है। इसकी लंबी फल देने वाली अवधि (फरवरी से अक्टूबर) और बाजार में भारी मांग इसे एक लाभकारी फसल बनाती है। यह फाइबर, विटामिन्स और एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है और स्वास्थ्यवर्धक होने के कारण रसोई का अहम हिस्सा है।
सचिन ने इस फसल में संभावनाएं देखीं और 2021 में रांची के ओरमांझी ब्लॉक के आनंदी गांव में 25 एकड़ जमीन लीज पर ली।
विज्ञान से सफल हुआ सपना
ICAR-FSRCHPR की मदद से उन्होंने संस्थान की विकसित की गई परवल की उन्नत किस्मों – स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण सुरूचि और स्वर्ण रेखा – की खेती शुरू की। इन किस्मों की खासियत है – सॉफ्ट बीज, मुलायम गूदा और 25-30 टन प्रति हेक्टेयर तक की ऊँची उपज।
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दूसरा साल, दोगुनी कामयाबी
दूसरे साल उन्होंने नेट हाउस लगाकर परवल की कलम से नई पौध तैयार करने की तकनीक अपनाई। उन्होंने करीब 50,000 पौधे तैयार किए, जिनमें से 42,000 पौधे झारखंड, बिहार और ओडिशा के किसानों को ₹15 प्रति पौधा के भाव से बेचे, जिससे उन्हें अतिरिक्त ₹6.3 लाख की आमदनी हुई। शेष पौधों से उन्होंने दो एकड़ में और विस्तार किया।
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पत्रकार से किसान और अब ‘ब्रांड एंबेसडर’
आज सचिन झा को झारखंड सरकार के कृषि विभाग ने 11 जिलों में परवल खेती के प्रदर्शन (डेमो) प्रोजेक्ट का प्रतिनिधि बनाया है। वे प्रति जिले 20 डेमो प्लॉट में किसानों को प्रशिक्षित करेंगे। उनका मॉडल न सिर्फ लाभकारी है, बल्कि प्रेरणादायक भी।
सचिन झा कहते हैं – "अगर खेती को वैज्ञानिक तरीके से किया जाए और मार्केटिंग सही हो, तो यह सबसे बेहतर व्यवसाय है।" उनका लक्ष्य है – किसानों को आत्मनिर्भर बनाना, उन्हें तकनीक से जोड़ना और गांव में ही रोज़गार पैदा करना।
झारखंड पारंपरिक रूप से धान और दलहन फसलों का राज्य माना जाता है, लेकिन सचिन जैसे युवा किसानों ने दिखा दिया है कि यहां परवल जैसी नकद फसलें भी व्यवसायिक स्तर पर सफल हो सकती हैं। उनकी पहल से राज्य में कई अन्य युवा भी खेती में लौट रहे हैं।
प्रेरणा सिर्फ खेतों में नहीं, सोच में भी बदलाव
सचिन की कहानी बताती है कि बदलाव सिर्फ नीतियों से नहीं होता, व्यक्तिगत पहल से भी बड़ा बदलाव संभव है। कैमरा छोड़ खेती करना एक साहसी फैसला था, लेकिन आज वे खुद साबित कर चुके हैं कि कृषि सिर्फ परंपरा नहीं, आधुनिक उद्यम भी है।