धान की खेती के बाद की चुनौतियां: खरपतवार नियंत्रण से लेकर खाद प्रबंधन तक

Manvendra Singh | Aug 05, 2025, 15:59 IST
धान की रोपाई के बाद असली खेती शुरू होती है- जब खरपतवार, पोषण प्रबंधन, पानी की मात्रा और नकली खाद जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि किसान इस चरण में जागरूक रहें तो उत्पादन भी बढ़ता है और लागत भी घटती है।
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उत्तर भारत में मॉनसून की दस्तक के साथ ही धान की रोपाई का काम लगभग पूरा हो चुका है। लखनऊ के कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर अखिलेश दुबे बताते हैं कि इस समय उत्तर प्रदेश के 90% से अधिक किसान रोपाई या सीधी बुवाई कर चुके हैं। लेकिन रोपाई के बाद की सबसे अहम चुनौती है खरपतवार नियंत्रण और पौधों के लिए संतुलित पोषण प्रबंधन।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025-26 में भारत में लगभग 45.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की रोपाई की गई है। वर्ष 2023-24 में देश का कुल चावल उत्पादन 13.5 करोड़ टन रहा, जिसमें उत्तर प्रदेश का योगदान लगभग 1.5 करोड़ टन रहा। धान की खेती देश के 12 करोड़ किसानों की आजीविका का आधार है, लेकिन इसमें जल, उर्वरक और श्रम की भारी खपत होती है।

सीधी बुवाई बनाम पारंपरिक रोपाई

हाल के वर्षों में सीधी बुवाई (DSR - Direct Seeded Rice) का चलन बढ़ा है क्योंकि इसमें 30-35% तक पानी की बचत होती है और श्रम लागत में भी कमी आती है। लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी हैं, जिनमें खरपतवार बढ़ जाना सबसे बड़ी चुनौती है। डॉ. अखिलेश दुबे बताते हैं, “सीधी बुवाई करने वाले किसानों को 20-25 दिन के भीतर खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी है। इसके लिए वे बिस्पायरीब सोडियम 100 ग्राम और पायरोजो सल्फ्यूरान 50-60 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे चौड़े पत्तों और संकरी पत्तियों वाले दोनों प्रकार के खरपतवार नियंत्रित होते हैं।
खाद प्रबंधन है फसल की सेहत की राज़

धान की फसल को बेहतर उपज देने के लिए उचित समय पर और उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग जरूरी है। रोपाई या बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली टॉप ड्रेसिंग की जाती है। डॉ. दुबे के अनुसार, “प्रति एकड़ 40 से 50 किलो यूरिया और 10 किलो 33% जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट डालना चाहिए। जिंक की कमी से पौधे पीले पड़ जाते हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है। लेकिन बाजार में नकली जिंक सल्फेट भी मिलते हैं, इसलिए किसानों को प्रमाणित स्रोत से ही खाद खरीदनी चाहिए।” खाद का छिड़काव दो या तीन बार में अलग-अलग दिशाओं से किया जाए ताकि खेत में समान वितरण हो सके। इससे पौधे अधिकतम पोषक तत्व अवशोषित कर पाते हैं।

घुलनशील उर्वरकों का विकल्प: नैनो डीएपी और नैनो यूरिया

रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने हाल ही में नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को बढ़ावा दिया है। ये कम मात्रा में अधिक असरदार होते हैं और जलवायु अनुकूल खेती की ओर एक कदम माने जाते हैं। डॉ. दुबे बताते हैं, “यदि फसल 35-40 दिन की हो चुकी है और उसमें अच्छी कैनोपी (छाया फैलाव) बन चुकी है, तो 500 ग्राम नैनो यूरिया और 500 ग्राम नैनो डीएपी को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इससे पौधे सीधे पत्तियों के माध्यम से पोषक तत्व अवशोषित कर लेते हैं।”

लेकिन अगर फसल छोटी है या पौधों की छाया पर्याप्त नहीं बनी है, तो नैनो खाद का असर कम हो जाता है।

जल प्रबंधन से बढ़ेगा खाद का असर

धान की खेती में पानी की एक एहम भूमिका है, लेकिन खाद डालते समय पानी का सही स्तर होना जरूरी है। खेत में अगर बहुत अधिक पानी है, तो पहले उसका निकास कर देना चाहिए ताकि खाद सीधे जड़ों तक पहुंचे। राष्ट्रीय जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, धान की परंपरागत खेती में प्रति किलो चावल उत्पादन में औसतन 3000 से 5000 लीटर पानी लगता है। ऐसे में जल प्रबंधन न केवल खाद के असर के लिए बल्कि जल संरक्षण के लिए भी ज़रूरी है।

समस्याएं और समाधान

खरपतवार- बिस्पायरीब सोडियम + पायरोजो सल्फ्यूरान का छिड़काव
जिंक की कमी- 10 किलो जिंक सल्फेट (33%) टॉप ड्रेसिंग में मिलाएं
नकली उर्वरक- प्रमाणित विक्रेताओं से खरीदारी करें
नैनो खाद का समय- 35-40 दिन की अवस्था में जब अच्छी कैनोपी बन जाए तब छिड़काव
अधिक पानी- खाद डालने से पहले पानी का निकास करें

सरकार की योजनाएं भी जान लीजिये

कृषि मंत्रालय द्वारा किसानों को उर्वरक सब्सिडी, बीज वितरण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए सहयोग दिया जा रहा है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को हर वर्ष ₹6,000 की सीधी सहायता दी जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी धान की सीधी बुवाई को बढ़ावा देने के लिए ₹1,500 प्रति एकड़ तक की प्रोत्साहन राशि की घोषणा की है।

धान की खेती केवल रोपाई या बुवाई तक सीमित नहीं है। यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक चरण—खरपतवार नियंत्रण, पोषण प्रबंधन, जल प्रबंधन—अहम भूमिका निभाता है। यदि किसान वैज्ञानिक सलाह और आधुनिक तकनीकों को अपनाएं, तो वे उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ लागत में भी कटौती कर सकते हैं। डॉ. दुबे का संदेश स्पष्ट है - "खेत में मेहनत के साथ समझदारी भी जरूरी है। विज्ञान और परंपरा का संतुलन ही किसान की असली ताकत है।"

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