ICMR की चेतावनी: किसानों में मानसिक बीमारी बढ़ा रहा कीटनाशक
Manvendra Singh | Nov 22, 2025, 18:41 IST
ICMR की नई रिपोर्ट चेतावनी देती है कि भारत में लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहने वाले किसानों में मानसिक बीमारियों का खतरा लगभग तीन गुना बढ़ जाता है। पश्चिम बंगाल में किए गए अध्ययन में याददाश्त कमजोर होने से लेकर डिप्रेशन और मूवमेंट डिसऑर्डर तक गंभीर प्रभाव सामने आए हैं।
भारत में खेती सिर्फ आजीविका नहीं, देश की आत्मा है। खेतों में मेहनत करने वाले किसान हर मौसम, हर संकट के बीच हमारी थाली भरते हैं। लेकिन अब एक नई चिंता उभरकर सामने आई है, ऐसी चिंता, जो सिर्फ शरीर नहीं, किसानों के दिमाग, याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य को भी चुपचाप निगल रही है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की नई रिपोर्ट बताती है कि कीटनाशकों के लंबे संपर्क में रहने वाले किसानों में मानसिक और स्नायु-तंत्र से जुड़ी बीमारियाँ तीन गुना ज्यादा पाई जा रही हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, यह चेतावनी है कि खेती का यह मौन खतरा अब गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है।
भारत में कीटनाशकों की खपत और एक चौंकाने वाली तस्वीर
कृषि मंत्रालय के अनुसार, साल 2022–23 में भारत में 53,630 मीट्रिक टन से अधिक कीटनाशक का उपयोग हुआ।
तमिलनाडु के नमक्कल ज़िले में हुए एक सर्वे में 412 किसानों में:
98.5% किसान कीटनाशक उपयोग करते हैं
उनमें से 72.4% बिना PPE के छिड़काव करते हैं
68% को पता ही नहीं कि कीटनाशक कितना नुकसान कर सकता है
और 94.5% ने स्वास्थ्य समस्याएँ झेली हैं- चक्कर, उल्टी, सिरदर्द, सांस में जलन, आँखों में जलन, त्वचा में खुजली… जिस रसायन को किसान फसल बचाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वही धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य पर हमला कर रहा है।
ICMR की स्टडी: मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर
ICMR ने पश्चिम बंगाल के पुरबा बर्धमान ज़िले के गल्सी-II ब्लॉक में एक बड़ा अध्ययन किया।
इस रिसर्च का उद्देश्य था यह समझना कि:
लंबे समय तक कीटनाशक के संपर्क
लगातार छिड़काव और ग्रामीण मजदूरों की कमजोर सुरक्षा कैसे संज्ञानात्मक क्षति (cognitive impairment), अवसाद (depression) और मूवमेंट डिसऑर्डर (movement disorders) जैसी समस्याएँ पैदा करते हैं।
कौन शामिल थे?
50 साल या उससे अधिक उम्र के वे ग्रामीण मजदूर जो पाँच साल से लगातार किसान के रूप में काम कर रहे थे।
स्टडी में क्या निकला?
808 लोगों की जांच में:
शरीर कैसे संकेत देता है?
स्टडी में जो किसान रोज़ 8 घंटे या अधिक खेत में रहते थे, उनके शरीर में PON1 एंज़ाइम बहुत बढ़ा हुआ मिला। यह एंज़ाइम बताता है कि “शरीर जहर के लगातार संपर्क से खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है।” लेकिन यह लड़ाई हमेशा टिक नहीं पाती।
अध्ययन क्यों बेहद महत्वपूर्ण है?
ICMR की यह रिपोर्ट साफ़ बताती है कि अब भी चेत जाएँ, तो नुकसान कम किया जा सकता है।
किसान ऐसे करें अपनी सुरक्षा: सस्ते और कारगर तरीके
ICAR और कृषि मंत्रालय की स्पष्ट सलाह है कि कीटनाशक छिड़कते समय PPE किट पहनना अनिवार्य होना चाहिए।
PPE में क्या-क्या शामिल होता है?
छिड़काव के समय ध्यान रखें:
अगर गलती से जहर शरीर में चला जाए?
हमारे किसान अपने खेत और फसलों के लिए हर दिन जोखिम उठाते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की यह चेतावनी बताती है कि अब समय आ गया है कि किसानों की सुरक्षा को उतनी ही गंभीरता से लें जितनी उनकी मेहनत को।
कीटनाशकों से पैदा हो रहा यह “मौन मानसिक संकट” भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे और कृषि प्रणाली दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर सामने आया है।
अगर अभी कदम न उठाए गए तो आने वाले वर्षों में यह समस्या कहीं अधिक डरावनी हो सकती है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की नई रिपोर्ट बताती है कि कीटनाशकों के लंबे संपर्क में रहने वाले किसानों में मानसिक और स्नायु-तंत्र से जुड़ी बीमारियाँ तीन गुना ज्यादा पाई जा रही हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, यह चेतावनी है कि खेती का यह मौन खतरा अब गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है।
भारत में कीटनाशकों की खपत और एक चौंकाने वाली तस्वीर
कृषि मंत्रालय के अनुसार, साल 2022–23 में भारत में 53,630 मीट्रिक टन से अधिक कीटनाशक का उपयोग हुआ।
तमिलनाडु के नमक्कल ज़िले में हुए एक सर्वे में 412 किसानों में:
98.5% किसान कीटनाशक उपयोग करते हैं
उनमें से 72.4% बिना PPE के छिड़काव करते हैं
68% को पता ही नहीं कि कीटनाशक कितना नुकसान कर सकता है
और 94.5% ने स्वास्थ्य समस्याएँ झेली हैं- चक्कर, उल्टी, सिरदर्द, सांस में जलन, आँखों में जलन, त्वचा में खुजली… जिस रसायन को किसान फसल बचाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वही धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य पर हमला कर रहा है।
Pesticide exposure associated with mild cognitive impairment & depression among agricultural workers Case control study in rural India (1)
ICMR की स्टडी: मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर
ICMR ने पश्चिम बंगाल के पुरबा बर्धमान ज़िले के गल्सी-II ब्लॉक में एक बड़ा अध्ययन किया।
इस रिसर्च का उद्देश्य था यह समझना कि:
लंबे समय तक कीटनाशक के संपर्क
लगातार छिड़काव और ग्रामीण मजदूरों की कमजोर सुरक्षा कैसे संज्ञानात्मक क्षति (cognitive impairment), अवसाद (depression) और मूवमेंट डिसऑर्डर (movement disorders) जैसी समस्याएँ पैदा करते हैं।
कौन शामिल थे?
50 साल या उससे अधिक उम्र के वे ग्रामीण मजदूर जो पाँच साल से लगातार किसान के रूप में काम कर रहे थे।
स्टडी में क्या निकला?
808 लोगों की जांच में:
- 22.3% में मानसिक स्वास्थ्य और दिमागी विकार पाए गए
- जिन किसानों का रसायनों से ज्यादा संपर्क था, उनमें बीमारियाँ 3 गुना अधिक थीं
- 18.9% में सोचने-समझने की क्षमता कम हो चुकी थी
- 8.3% में अवसाद पाया गया
- 1.5% में मूवमेंट डिसऑर्डर (कंपकंपी, चलने में दिक्कत) पाए गए
- सबसे चिंताजनक बात: जो किसान 30 साल से कीटनाशक छिड़क रहे थे, या सप्ताह में एक बार स्प्रे करते थे, उनमें खतरा और ज्यादा पाया गया।
शरीर कैसे संकेत देता है?
स्टडी में जो किसान रोज़ 8 घंटे या अधिक खेत में रहते थे, उनके शरीर में PON1 एंज़ाइम बहुत बढ़ा हुआ मिला। यह एंज़ाइम बताता है कि “शरीर जहर के लगातार संपर्क से खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है।” लेकिन यह लड़ाई हमेशा टिक नहीं पाती।
अध्ययन क्यों बेहद महत्वपूर्ण है?
- भारत में: 54.6% से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं
- यहां कृषि में उपयोग होने वाले कुल रसायनों में 76% कीटनाशक होते हैं, जबकि दुनिया में औसत 44% है
- ग्रामीण किसान PPE बेहद कम पहनते हैं
- कई किसान छिड़काव के दौरान खाना खा लेते हैं या तंबाकू/बीड़ी पी लेते हैं—जो जहर को शरीर में और तेजी से पहुँचाता है
- 69% किसान परिवारों की आय बेहद कम है—वे नियमित स्वास्थ्य जांच नहीं करा पाते
- यानी नुकसान कई बार बहुत देर होने तक दिखाई ही नहीं देता।
ICMR की यह रिपोर्ट साफ़ बताती है कि अब भी चेत जाएँ, तो नुकसान कम किया जा सकता है।
किसान ऐसे करें अपनी सुरक्षा: सस्ते और कारगर तरीके
ICAR और कृषि मंत्रालय की स्पष्ट सलाह है कि कीटनाशक छिड़कते समय PPE किट पहनना अनिवार्य होना चाहिए।
PPE में क्या-क्या शामिल होता है?
- रबर के दस्ताने
- नाक-मुँह को ढकने वाला मास्क
- फुल-स्लीव मोटे कपड़े या एप्रन
- आँखों के लिए गॉगल
- बंद जूते या गमबूट
- ये सब मिलकर कीटनाशक के शरीर में प्रवेश की संभावना 70–90% तक कम कर सकते हैं।
छिड़काव के समय ध्यान रखें:
- हवा हमेशा पीछे की तरफ रहे
- तेज़ हवा या बारिश में छिड़काव कभी न करें
- छिड़काव के दौरान खाना-पीना, बीड़ी-सिगरेट न लें
- बदन या कपड़े पर कीटनाशक गिर जाए तो तुरंत साबुन और साफ पानी से धोएँ
- खाली बोतलें दोबारा इस्तेमाल न करें, उन्हें नष्ट करने के लिए पंचायत/कृषि विभाग को दें
अगर गलती से जहर शरीर में चला जाए?
- उल्टी मत कराएँ
- प्रभावित जगह को तुरंत पानी से धोएँ
- सीधा PHC या ज़हर नियंत्रण केंद्र जाएँ
- और कीटनाशक की बोतल/लेबल साथ ले जाएँ ताकि डॉक्टर सही इलाज कर सके
- किसानों की रक्षा ही देश की रक्षा है
हमारे किसान अपने खेत और फसलों के लिए हर दिन जोखिम उठाते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की यह चेतावनी बताती है कि अब समय आ गया है कि किसानों की सुरक्षा को उतनी ही गंभीरता से लें जितनी उनकी मेहनत को।
कीटनाशकों से पैदा हो रहा यह “मौन मानसिक संकट” भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे और कृषि प्रणाली दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर सामने आया है।
अगर अभी कदम न उठाए गए तो आने वाले वर्षों में यह समस्या कहीं अधिक डरावनी हो सकती है।