नार्थ-ईस्ट के किसानों को तकनीकी के सहारे नुकसान से बचा रहा है सीएमईआरआई
गाँव कनेक्शन | Aug 06, 2021, 08:00 IST
सीएसआईआर-सीएमईआरआई ने कई सारी ऐसी तकनीकी विकसित की है, जिससे पुर्वोत्तर भारत के किसानों को कम से कम नुकसान उठाना पड़े।
फसल के कटाई के बाद अगर किसान ने ध्यान नहीं तो कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है। किसानों की मदद के लिए सीएसआईआर-सीएमईआरआई कई ऐसी तकनीकी विकसित की जो पूर्वोत्तर भारत के बड़े काम के साबित हो रहे हैं।
सीएसआईआर-सीएमईआरआई, दुर्गापुर के निदेशक प्रो. हरीश हिरानी ने एमएसएमई-डीआई, दीमापुर की ओर से आयोजित एक वर्चुअल कार्यक्रम में सीएमईआरआई द्वारा विकसित फसल कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों के बारे में चर्चा की। इस कार्यक्रम में कई गैर-सरकारी संगठनों, राष्ट्रीय टूल रूम एवं प्रशिक्षण केंद्र, दीमापुर के प्रतिनिधियों और क्षेत्र के उद्यमियों ने भाग लिया।
वर्चुअल कार्यक्रम में सीएसआईआर-सीएमईआरआई के निदेशक प्रो. हरीश हिरानी ने बताया कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में खेती और कृषि के संदर्भ में भौगोलिक तौर पर जबरदस्त फायदे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में नकदी फसलों की बहुतायत है। इन राज्यों में तुंग जैसी आकर्षक फसल की संभावना भी छिपी हुई है। चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए तुंग का तेल चीन से आयात किया जाता है। इसके अलावा, भारत सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के समग्र विकास के लिए धन का एक बड़ा हिस्सा आवंटित करती है और कृषि इनमें से एक प्राथमिक क्षेत्र है।
अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी की कमी के कारण लगभग 45 प्रतिशत उत्पादन की बर्बादी होती है। फसल तैयार करने की उपयुक्त प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता के कारण, तुंग (जो विषाक्त प्रकृति का है) जैसी निर्यात की संभावना वाली फसलों का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है। कृषि यंत्रीकरण प्रौद्योगिकियों में नवीनतम प्रगति के साथ किसानों को लैस करने के लिए क्षेत्र में कौशल संबंधी पहलों की बहुत कमी है।
हाल के वर्षों में,सीएमईआरआई ने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को अपने प्राथमिक प्रौद्योगिकी उद्देश्यों में शामिल किया है।
अदरक प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी में 500 किलोग्राम प्रति घंटा क्षमता एवं स्वचालित क्षमता, स्लाइसिंग यूनिट सहित रोटरी ड्रम वॉशर और 50 किलोग्राम प्रति बैच की क्षमता वाला कैबिनेट ड्रायर और 85-90 प्रतिशत नमी कम करने की क्षमता के साथ 4-5 घंटे का बैच-टाइम शामिल है। एक अन्य सेमी-ऑटोमेटेड अदरक प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी वाशिंग यूनिट से लेकर स्लाइसर यूनिट तक प्रक्रिया के ऑटोमेशन की सुविधा प्रदान करती है। कम्युनिटी डेवलपमेंट एंड रिफ्लैक्शन (सीडीएआर) नामक एक गैर-सरकारी संगठन के सहयोग से सेंटर फॉर पोस्ट-हार्वेस्ट प्रोसेसिंग, तुयरियल, मिजोरम में इस प्रौद्योगिकी को स्थापित किया गया है।
सीडीएआर के प्रतिनिधियों ने बताया है कि इस प्रौद्योगिकी के स्थापित होने से क्षेत्र की हजारों महिलाओं को साल भर आय सृजन के रास्ते प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाया है। सीएसआईआर-एनईआईएसटी-बीएलआईटी के सहयोग से अरुणाचल प्रदेश के नाहरलागुन में ऐसी एक अन्य सुविधा स्थापित की गई है। अरुणाचल प्रदेश के जिरो में ऐसी ही एक सुविधा स्थापित करने की योजना भी प्रगति पर है। किसान समुदाय की जानकारी और प्रशिक्षण के लिए सीएसआईआर-सीएमईआरआई में एक पूर्ण और पूरी तरह से सिंक्रनाइज़ अदरक/हल्दी प्रसंस्करण की शीर्ष सुविधा उपलब्ध है। इस प्रौद्योगिकी को राज्य के विभिन्न मंत्रालयों और अनेक मीडिया कवरेज से कई प्रशंसा मिली है।
सीएमईआरआई ने बायो-मास फ्यूल फिश ड्रायर विकसित किया है और हाइब्रिडाइज्ड फिश ड्रायर (यानी सोलर पावर्ड/बायो-मास फ्यूल) ने उत्पाद के शेल्फ-लाइफ में सुधार के मामले में क्षेत्र के मछुआरों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। सीएसआईआर-सीएमईआरआई ने बाइंडरों के साथ या बिना बाइंडरों के बायो-मास से ब्रिकेट बनाने की प्रौद्योगिकी भी विकसित की है। ब्रिकेट्स को सॉ-डस्ट, सूखी पत्तियों और बायो-गैस स्लरी से तैयार किया जा सकता है। ब्रिकेट्स का उच्च कैलोरी मान होता है और इसका उपयोग धुआँ-मुक्त जैव-मास चुल्हा के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है। धुआँ रहित बायो-मास चूल्हा गैर-प्रदूषणकारी है। गेस्ट हाउस किचन में स्थापित सामुदायिक स्तर की सौर समर्थित उन्नत बायो-मास कुकिंग प्रणाली ने पारंपरिक कुकिंग सिस्टम की 15 प्रतिशत दक्षता की तुलना में 28 प्रतिशत की दक्षता दर्शायी है।
सीएमईआरआई ने शीत भंडारण प्रणाली के तीन प्रकार भी विकसित किए हैं। इनमें से एक वैरिएंट सोलर-पावर्ड वैरिएंट है,जिसमें इंसुलेशन लेयर के रूप में बायो-मास भी शामिल है। यह प्रौद्योगिकी के लिए प्लॉयमर लागत को काफी हद तक कम करने में मदद कर सकता है।सीएसआईआर-सीएमईआरआई एक वाहन आधारित शीत भंडारण प्रणाली की अवधारणा पर भी विचार कर रहा है, जो ताजा कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है और साथ ही इसकी शेल्फ लाइफ में सुधार कर सकता है।
सीएसआईआर-सीएमईआरआई, दुर्गापुर के निदेशक प्रो. हरीश हिरानी ने एमएसएमई-डीआई, दीमापुर की ओर से आयोजित एक वर्चुअल कार्यक्रम में सीएमईआरआई द्वारा विकसित फसल कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों के बारे में चर्चा की। इस कार्यक्रम में कई गैर-सरकारी संगठनों, राष्ट्रीय टूल रूम एवं प्रशिक्षण केंद्र, दीमापुर के प्रतिनिधियों और क्षेत्र के उद्यमियों ने भाग लिया।
वर्चुअल कार्यक्रम में सीएसआईआर-सीएमईआरआई के निदेशक प्रो. हरीश हिरानी ने बताया कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में खेती और कृषि के संदर्भ में भौगोलिक तौर पर जबरदस्त फायदे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में नकदी फसलों की बहुतायत है। इन राज्यों में तुंग जैसी आकर्षक फसल की संभावना भी छिपी हुई है। चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए तुंग का तेल चीन से आयात किया जाता है। इसके अलावा, भारत सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के समग्र विकास के लिए धन का एक बड़ा हिस्सा आवंटित करती है और कृषि इनमें से एक प्राथमिक क्षेत्र है।
हाल के वर्षों में,सीएमईआरआई ने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को अपने प्राथमिक प्रौद्योगिकी उद्देश्यों में शामिल किया है।
अदरक की खेती करने वाले किसानों के लिए ड्रायर
सीडीएआर के प्रतिनिधियों ने बताया है कि इस प्रौद्योगिकी के स्थापित होने से क्षेत्र की हजारों महिलाओं को साल भर आय सृजन के रास्ते प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाया है। सीएसआईआर-एनईआईएसटी-बीएलआईटी के सहयोग से अरुणाचल प्रदेश के नाहरलागुन में ऐसी एक अन्य सुविधा स्थापित की गई है। अरुणाचल प्रदेश के जिरो में ऐसी ही एक सुविधा स्थापित करने की योजना भी प्रगति पर है। किसान समुदाय की जानकारी और प्रशिक्षण के लिए सीएसआईआर-सीएमईआरआई में एक पूर्ण और पूरी तरह से सिंक्रनाइज़ अदरक/हल्दी प्रसंस्करण की शीर्ष सुविधा उपलब्ध है। इस प्रौद्योगिकी को राज्य के विभिन्न मंत्रालयों और अनेक मीडिया कवरेज से कई प्रशंसा मिली है।