लवणीय भूमि में अच्छी उपज देंगी कद्दू की किस्में, हर मौसम में कर सकते हैं खेती
Divendra Singh | Nov 06, 2018, 10:17 IST
इन किस्मों को 15 अलग-अलग तरीकों से संकरित करके उनकी हाइब्रिड किस्मों को खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में उगाया गया और फिर कद्दू से जुड़े 14 प्रमुख लक्षणों का परीक्षण किया गया।
लखनऊ। कद्दू की खेती के लिए अभी तक दोमट और बलुई दोमट मिट्टी ही सही मानी जाती है, वैज्ञानिकों ने कद्दू की ऐसी किस्में विकसित की है, जिसे हर मौसम और लवणीय भूमि में भी उगाया जा सकता है। ये किस्में दूसरे किस्मों के मुकाबले ज्यादा उपज भी देंगी।
कद्दू की फसल का निरीक्षण करते हुए डॉ जी.सी. यादव। कद्दू भारत की लोकप्रिय सब्जियों में से एक है। आनुवांशिक आधार पर किए गए एक ताजा अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उच्च गुणवत्ता वाले कद्दू के कई संकरित संयोजनों को उपयुक्त पाया है। यह अध्ययन फैजाबाद स्थित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
नरेंद्र उपकार, एनडीपीके-120, नरेंद्र अग्रिम, एनडीपीके-39-2, काशी हरित और एनडीपीके-11-3 समेत अलग-अलग आनुवांशिक गुणों वाली कद्दू की छह किस्मों को इस अध्ययन में शामिल किया गया था। इन किस्मों को 15 अलग-अलग तरीकों से संकरित करके उनकी हाइब्रिड किस्मों को खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में उगाया गया और फिर कद्दू से जुड़े 14 प्रमुख लक्षणों का परीक्षण किया गया। वैज्ञानिकों ने नर और मादा फूलों के खिलने के समय से लेकर फलों के आकार, रंग, संख्या और भार संबंधी गुणों की जांच की है। इसके अलावा, कद्दू के जैव-रासायनिक गुणों, जैसे- शर्करा, एस्कार्बिक अम्ल और बीटा-केरोटिन की मात्राओं का तुलनात्मक आकलन भी किया गया है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जी.सी. यादव बताते हैं, "पादप संकरण से फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जर्मप्लाज्म के मूल्यांकन, बेहतर जनक पौधों और उच्च गुणवत्ता के जीन्स वाले विभिन्न दाता पौधों की पहचान जरूरी होती है। आमतौर पर कद्दू की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, जिसका पीएच 6-7 होता है। इस अध्ययन से प्राप्त 15 हाइब्रिड किस्मों से भविष्य में कद्दू की ऐसी किस्में तैयार की जा सकती हैं, जो आठ से अधिक पीएच वाली लवणीय मिट्टी में भी उगायी जा सकेंगी।"
शोधकर्ताओं में शामिल विमलेश कुमार के अनुसार,"संकरण से विकसित कद्दू के इन पौधों का बेहतर उत्पादन के लिए व्यावसायिक संकर किस्मों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। संकरण द्वारा लवणीय भूमि में भी कद्दू की उपज में सुधार की संभावना है।" किसी फसल की दो भिन्न गुणोंवाली अलग-अलग किस्मों के मध्य कृत्रिम पादप प्रजनन के जरिये कोई नयी किस्म विकसित करने को पादप-संकरण कहते हैं। इस तरह विकसित नयी एवं उन्नत फसल किस्मों को संकर या हाइब्रिड कहते हैं।
वनस्पति विज्ञान में कद्दू कुकरबिटेसी परिवार का सदस्य है। यह विशेष रूप से विटामिन-ए, पोटैशियम और एन्टी-ऑक्सीडेंट का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। इसके पत्ते, तने, फल का रस और फूल औषधीय रूप से काफी गुणकारी होते हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कद्दू उत्पादक देश है। शोधकर्ताओं के अनुसार, आनुवंशिक परिवर्तनशीलता और संकरण के अनुमानित लाभ का आकलन करके सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में व्यावसायिक खेती के लिए कद्दू की फसल में सुधार करने की दिशा में यह अध्ययन उपयोगी हो सकता है।
कद्दू की फसल का निरीक्षण करते हुए डॉ जी.सी. यादव। कद्दू भारत की लोकप्रिय सब्जियों में से एक है। आनुवांशिक आधार पर किए गए एक ताजा अध्ययन में वैज्ञानिकों ने उच्च गुणवत्ता वाले कद्दू के कई संकरित संयोजनों को उपयुक्त पाया है। यह अध्ययन फैजाबाद स्थित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।
नरेंद्र उपकार, एनडीपीके-120, नरेंद्र अग्रिम, एनडीपीके-39-2, काशी हरित और एनडीपीके-11-3 समेत अलग-अलग आनुवांशिक गुणों वाली कद्दू की छह किस्मों को इस अध्ययन में शामिल किया गया था। इन किस्मों को 15 अलग-अलग तरीकों से संकरित करके उनकी हाइब्रिड किस्मों को खरीफ, रबी और गर्मी के मौसम में उगाया गया और फिर कद्दू से जुड़े 14 प्रमुख लक्षणों का परीक्षण किया गया। वैज्ञानिकों ने नर और मादा फूलों के खिलने के समय से लेकर फलों के आकार, रंग, संख्या और भार संबंधी गुणों की जांच की है। इसके अलावा, कद्दू के जैव-रासायनिक गुणों, जैसे- शर्करा, एस्कार्बिक अम्ल और बीटा-केरोटिन की मात्राओं का तुलनात्मक आकलन भी किया गया है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जी.सी. यादव बताते हैं, "पादप संकरण से फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जर्मप्लाज्म के मूल्यांकन, बेहतर जनक पौधों और उच्च गुणवत्ता के जीन्स वाले विभिन्न दाता पौधों की पहचान जरूरी होती है। आमतौर पर कद्दू की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, जिसका पीएच 6-7 होता है। इस अध्ययन से प्राप्त 15 हाइब्रिड किस्मों से भविष्य में कद्दू की ऐसी किस्में तैयार की जा सकती हैं, जो आठ से अधिक पीएच वाली लवणीय मिट्टी में भी उगायी जा सकेंगी।"
शोधकर्ताओं में शामिल विमलेश कुमार के अनुसार,"संकरण से विकसित कद्दू के इन पौधों का बेहतर उत्पादन के लिए व्यावसायिक संकर किस्मों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। संकरण द्वारा लवणीय भूमि में भी कद्दू की उपज में सुधार की संभावना है।" किसी फसल की दो भिन्न गुणोंवाली अलग-अलग किस्मों के मध्य कृत्रिम पादप प्रजनन के जरिये कोई नयी किस्म विकसित करने को पादप-संकरण कहते हैं। इस तरह विकसित नयी एवं उन्नत फसल किस्मों को संकर या हाइब्रिड कहते हैं।
वनस्पति विज्ञान में कद्दू कुकरबिटेसी परिवार का सदस्य है। यह विशेष रूप से विटामिन-ए, पोटैशियम और एन्टी-ऑक्सीडेंट का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। इसके पत्ते, तने, फल का रस और फूल औषधीय रूप से काफी गुणकारी होते हैं। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कद्दू उत्पादक देश है। शोधकर्ताओं के अनुसार, आनुवंशिक परिवर्तनशीलता और संकरण के अनुमानित लाभ का आकलन करके सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में व्यावसायिक खेती के लिए कद्दू की फसल में सुधार करने की दिशा में यह अध्ययन उपयोगी हो सकता है।