इनकी बाग में हैं आम की 352 से अधिक किस्में, जहाँ साल भर मिलेंगे फल
Divendra Singh | Jul 29, 2025, 17:00 IST
लखनऊ की इस बाग 352 से अधिक किस्मों के आम उगाते हैं एस.सी. शुक्ला, जिन्हें लोग ‘मैंगो मैन’ कहते हैं। आम उनके लिए सिर्फ फल नहीं, बल्कि संस्कृति, विज्ञान और भावनाओं का संगम हैं। हर साल उनकी आम प्रदर्शनी बिना किसी टिकट के लोगों को स्वाद, विरासत और विविधता का अनुभव देती है। जानिए उनके इस जुनून की कहानी।
लखनऊ की एक गली में एक ऐसा बग़ीचा है, जहाँ हर पेड़ पर कोई अनोखा नाम लिखा है—'अरुणिमा', 'सिंदूर', 'शुक्ला पसंद', 'नाज़ुक पसंद', 'पितांबर', 'गुलाब ख़ास'। ये कोई आम आम के पेड़ नहीं हैं। ये उन यादों, प्रयोगों और जुनून की निशानी हैं, जो पिछले कई दशकों से एक शख्स अपने जीवन में संजोते आ रहा है। ये बग़ीचा है एस.सी. शुक्ला का, जिन्हें लो 'मैंगो मैन' भी कहते हैं।
एस.सी. शुक्ला का आमों से रिश्ता सिर्फ स्वाद या कारोबार तक सीमित नहीं है। उनके लिए आम एक कला है, विज्ञान है और जीवन दर्शन भी। वे हर आम में एक पहचान, एक भावनात्मक जुड़ाव और एक प्रयोग की संभावना देखते हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने छोटे से बग़ीचे में 352 से अधिक किस्मों के आम तैयार किए हैं, हर एक का अपना नाम, रंग, स्वाद और कहानी।
अपने इस आम प्रेम के बारे में वो गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जिस गाँव में पैदा हुआ, वहाँ पर कुछ पेड़ थे, देसी किस्म के। एक बार बॉम्बे जाने का मौका मिला तो वहाँ पर देखा कि पर पीस के हिसाब से अल्फांसो आम बिक रहा था। मैंने उसे लिया लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा कि इतना महँगा आम मैंने खाया है, लेकिन कुछ टेस्ट नहीं आया। इससे तो कई गुना अच्छे अपने यहाँ के ट्रेडिशनल आम हैं। अब ट्रेडिशनल के साथ समस्या है कि हार्वेस्टिंग की सुविधाएँ नहीं हैं। यहाँ के किसान तितर -बितर है, बिचौलियों के ऊपर निर्भर हैं।"
वो आगे कहते हैं, "हमारे यहाँ आम एक साल आएगा, दूसरे साल नहीं आएगा, इसलिए 15 बरस पहले इसकी शुरुआत की थी, यहाँ पर हर एक पेड़ आपको अलग किस्म का मिलेगा। यही नहीं पूरे संसार में कोई ऐसा देश नहीं होगा, जहाँ की आम की प्रजातियाँ मैं न लेकर आया हूँ।"
एससी शुक्ला अपने खाली समय में पेड़-पौधों से जुड़ाव रखते थे। पर जब उन्होंने आम की ग्राफ्टिंग तकनीक को समझा, तो उन्हें इस फल की अपार संभावनाओं का अंदाज़ा हुआ। उन्होंने घर के आंगन में ही आम के पौधों पर प्रयोग शुरू किया। उन्होंने न सिर्फ अलग-अलग किस्मों को एक ही पेड़ पर उगाने की कोशिश की, बल्कि कई नई किस्में खुद तैयार की।
वो आगे कहते हैं, "जापान, फ्लोरिडा, अमेरिका, अफ्रीका, मॉरीशस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका जैसे हर एक देश के आम आपको मिल जाएँगे। 27 किस्में तो ऐसी हैं, जिनमें साल के बारह महीने फल लगते हैं। कुछ ऐसी हैं जो साल में दो-तीन बार फल देती हैं।"
एससी शुक्ला ने सिर्फ बग़ीचा ही नहीं उगाया, उन्होंने एक परंपरा खड़ी की है। हर साल अपने घर पर आमों की प्रदर्शनी लगाते हैं। यह प्रदर्शनी कोई व्यवसायिक आयोजन नहीं है, यह लोगों को आमों के प्रति प्रेम और जानकारी देने का एक व्यक्तिगत प्रयास है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं, किसान, आम प्रेमी, शोधकर्ता, बच्चे, पत्रकार और आमजन। वे न सिर्फ 350 से ज्यादा किस्मों के आमों को देखते हैं, बल्कि खुद एससी शुक्ला से उनकी कहानियां भी सुनते हैं। आम के स्वाद से लेकर उसकी खुशबू, रंग और बनावट तक हर पहलू पर बात होती है।
इस प्रदर्शनी की सबसे बड़ी खूबी है उसका मानवीय स्पर्श। यहां किसी चीज़ का टिकट नहीं है, कोई VIP नहीं है, और कोई भव्य मंच नहीं। सब कुछ साधारण है, सादगी से भरा हुआ। खुद लोगों को आमों की जानकारी देते हैं, बच्चों को आम के नाम याद करवाते हैं और अगर किसी को बग़ीचे की मिट्टी में दिलचस्पी हो, तो वह भी दिखाते हैं।
एससी शुक्ला मानते हैं कि आम सिर्फ फल नहीं है, यह हमारी संस्कृति, जलवायु और मिट्टी की पहचान है। वे कहते हैं, "अगर आम के स्वाद में फर्क आ रहा है, तो इसका मतलब है कि हमारी ज़मीन कुछ कह रही है। हमें उसे सुनना होगा।" यही सोच उन्हें पर्यावरण और पारंपरिक खेती के संरक्षण की दिशा में भी प्रेरित करती है।
वो आगे कहते हैं, "लोग इस बगीचे को ऑक्सीजन हब भी कहते हैं, जोकि करीब छह एकड़ में फैला है, बाहर से आने वाले लोगों के लिए ये एक हॉर्टी टूरिज्म का अच्छा ठिकाना है।
उनके बेटे और पोते भी अब इस परंपरा में रुचि लेने लगे हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी सफलता है कि उनका जुनून एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जा रहा है।
आज जब बाजार में एक जैसे दिखने वाले, रसायनों से पके हुए आमों की भरमार है, उनके जैसे किसान हमें याद दिलाते हैं कि असली स्वाद किस चीज़ में होता है। यह सिर्फ आमों की विविधता की कहानी नहीं, बल्कि उस आत्मीय जुड़ाव की भी कहानी है जो इंसान को प्रकृति से जोड़ता है।
एस.सी. शुक्ला का आमों से रिश्ता सिर्फ स्वाद या कारोबार तक सीमित नहीं है। उनके लिए आम एक कला है, विज्ञान है और जीवन दर्शन भी। वे हर आम में एक पहचान, एक भावनात्मक जुड़ाव और एक प्रयोग की संभावना देखते हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपने छोटे से बग़ीचे में 352 से अधिक किस्मों के आम तैयार किए हैं, हर एक का अपना नाम, रंग, स्वाद और कहानी।
अपने इस आम प्रेम के बारे में वो गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जिस गाँव में पैदा हुआ, वहाँ पर कुछ पेड़ थे, देसी किस्म के। एक बार बॉम्बे जाने का मौका मिला तो वहाँ पर देखा कि पर पीस के हिसाब से अल्फांसो आम बिक रहा था। मैंने उसे लिया लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा कि इतना महँगा आम मैंने खाया है, लेकिन कुछ टेस्ट नहीं आया। इससे तो कई गुना अच्छे अपने यहाँ के ट्रेडिशनल आम हैं। अब ट्रेडिशनल के साथ समस्या है कि हार्वेस्टिंग की सुविधाएँ नहीं हैं। यहाँ के किसान तितर -बितर है, बिचौलियों के ऊपर निर्भर हैं।"
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एससी शुक्ला अपने खाली समय में पेड़-पौधों से जुड़ाव रखते थे। पर जब उन्होंने आम की ग्राफ्टिंग तकनीक को समझा, तो उन्हें इस फल की अपार संभावनाओं का अंदाज़ा हुआ। उन्होंने घर के आंगन में ही आम के पौधों पर प्रयोग शुरू किया। उन्होंने न सिर्फ अलग-अलग किस्मों को एक ही पेड़ पर उगाने की कोशिश की, बल्कि कई नई किस्में खुद तैयार की।
वो आगे कहते हैं, "जापान, फ्लोरिडा, अमेरिका, अफ्रीका, मॉरीशस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका जैसे हर एक देश के आम आपको मिल जाएँगे। 27 किस्में तो ऐसी हैं, जिनमें साल के बारह महीने फल लगते हैं। कुछ ऐसी हैं जो साल में दो-तीन बार फल देती हैं।"
एक खास बात यह है कि आमों को सिर्फ नाम नहीं देते, उनमें भावनाएं भी भरते हैं। इनमें तीन से पाँच ग्राम की मोती दाना किस्म से लेकर पाँच किलो तक के आम हैं।
एससी शुक्ला ने सिर्फ बग़ीचा ही नहीं उगाया, उन्होंने एक परंपरा खड़ी की है। हर साल अपने घर पर आमों की प्रदर्शनी लगाते हैं। यह प्रदर्शनी कोई व्यवसायिक आयोजन नहीं है, यह लोगों को आमों के प्रति प्रेम और जानकारी देने का एक व्यक्तिगत प्रयास है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं, किसान, आम प्रेमी, शोधकर्ता, बच्चे, पत्रकार और आमजन। वे न सिर्फ 350 से ज्यादा किस्मों के आमों को देखते हैं, बल्कि खुद एससी शुक्ला से उनकी कहानियां भी सुनते हैं। आम के स्वाद से लेकर उसकी खुशबू, रंग और बनावट तक हर पहलू पर बात होती है।
इस प्रदर्शनी की सबसे बड़ी खूबी है उसका मानवीय स्पर्श। यहां किसी चीज़ का टिकट नहीं है, कोई VIP नहीं है, और कोई भव्य मंच नहीं। सब कुछ साधारण है, सादगी से भरा हुआ। खुद लोगों को आमों की जानकारी देते हैं, बच्चों को आम के नाम याद करवाते हैं और अगर किसी को बग़ीचे की मिट्टी में दिलचस्पी हो, तो वह भी दिखाते हैं।
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वो आगे कहते हैं, "लोग इस बगीचे को ऑक्सीजन हब भी कहते हैं, जोकि करीब छह एकड़ में फैला है, बाहर से आने वाले लोगों के लिए ये एक हॉर्टी टूरिज्म का अच्छा ठिकाना है।
उनके बेटे और पोते भी अब इस परंपरा में रुचि लेने लगे हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी सफलता है कि उनका जुनून एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जा रहा है।
आज जब बाजार में एक जैसे दिखने वाले, रसायनों से पके हुए आमों की भरमार है, उनके जैसे किसान हमें याद दिलाते हैं कि असली स्वाद किस चीज़ में होता है। यह सिर्फ आमों की विविधता की कहानी नहीं, बल्कि उस आत्मीय जुड़ाव की भी कहानी है जो इंसान को प्रकृति से जोड़ता है।