अब छत पर होगी स्मार्ट खेती, पानी भी बचेगा और पैदावार भी बढ़ेगी
Gaon Connection | Dec 15, 2025, 15:15 IST
तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और घटती कृषि भूमि के बीच छत पर खेती एक टिकाऊ विकल्प बनकर उभरी है। नए शोध में सेंसर फ्यूजन और फ़ज़ी लॉजिक आधारित स्वचालित सिंचाई प्रणाली ने न सिर्फ पानी की बचत की, बल्कि पारंपरिक तरीकों की तुलना में 50% तक अधिक उपज भी दर्ज की।
तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और लगातार सिमटती कृषि भूमि के बीच, छत पर खेती यानी टेरेस फार्मिंग शहरी क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण और टिकाऊ विकल्प के रूप में उभर रही है। यह न केवल खाली पड़ी छतों का उपयोग संभव बनाती है, बल्कि शहरों में ताज़ी सब्ज़ियों और फसलों की स्थानीय आपूर्ति भी सुनिश्चित करती है। लेकिन पारंपरिक छत पर खेती की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी मैन्युअल सिंचाई प्रणाली है, जिसमें पानी का उपयोग अक्सर असंतुलित होता है और सूक्ष्म-जलवायु (माइक्रोक्लाइमेट) स्थिर नहीं रह पाती। यही अस्थिरता लंबे समय में फसल की उत्पादकता को प्रभावित करती है।
इन चुनौतियों का समाधान तलाशते हुए कोमाथी जे., श्रीरंगराजालु एन. और कुमारसन जी. के हालिया अध्ययन में एक स्मार्ट और स्वचालित प्रणाली प्रस्तुत की गई है, जो सेंसर फ्यूजन और फ़ज़ी लॉजिक कंट्रोलर (FLC) पर आधारित है। इस प्रणाली का उद्देश्य छत पर खेती के लिए एक ऐसा नियंत्रित वातावरण तैयार करना है, जिसमें सिंचाई और जलवायु दोनों का प्रबंधन आसान सटीक ढंग से हो सके।
इस तकनीक की खासियत यह है कि इसमें तापमान-आर्द्रता, मिट्टी की नमी और जल प्रवाह जैसे कई सेंसर एक साथ काम करते हैं। ये सेंसर वास्तविक समय में डेटा एकत्र करते हैं, जिसे फ़ज़ी लॉजिक कंट्रोलर विश्लेषित करता है और उसी आधार पर ड्रिप-सिंचाई तथा छत के खुलने-बंद होने का निर्णय लेता है। इस अध्ययन में पॉलीकार्बोनेट से बनी एक समायोज्य छत का उपयोग किया गया है, जो तापमान और नमी के अनुसार अपने कोण को बदल सकती है।
फ़ज़ी लॉजिक कंट्रोलर में तापमान, आर्द्रता और मिट्टी की नमी को इनपुट पैरामीटर के रूप में लिया गया है, जबकि छत का कोण और पानी के पंप का ऑन-टाइम आउटपुट के रूप में नियंत्रित किया जाता है। इन सभी मानों को ‘वेरी लो’, ‘लो’, ‘मीडियम’ और ‘हाई’ जैसे भाषाई स्तरों में परिभाषित किया गया है। कुल 20 फ़ज़ी IF-THEN नियम तैयार किए गए हैं, जो भिंडी (ओकरा) की जैविक आवश्यकताओं और कृषि विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित हैं।
उदाहरण के तौर पर, भिंडी की फसल 24 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सबसे बेहतर बढ़ती है, जबकि 40 डिग्री से अधिक तापमान पर फूल झड़ने और उपज घटने का खतरा रहता है। इसी को ध्यान में रखते हुए, यदि तापमान या आर्द्रता अधिक हो तो सिस्टम छत को अधिक बंद रखता है, ताकि नमी और गर्मी नियंत्रित रहे। वहीं, ठंडे या शुष्क मौसम में छत को अधिक खुला रखा जाता है, जिससे प्राकृतिक वेंटिलेशन और गर्मी मिल सके। मिट्टी की नमी के अनुसार पानी के पंप की अवधि भी स्वतः घटाई-बढ़ाई जाती है, ताकि जल-भराव या पानी की कमी दोनों से बचा जा सके।
इस प्रणाली की प्रभावशीलता को परखने के लिए 12 सप्ताह तक भिंडी की खेती पर प्रयोग किया गया। एक ओर पारंपरिक मैन्युअल सिंचाई वाली छत पर खेती की गई, जबकि दूसरी ओर फ़ज़ी-नियंत्रित स्मार्ट प्रणाली का उपयोग किया गया। दोनों सेटअप में मिट्टी, बीज, कंटेनर और जल स्रोत समान रखे गए। परिणाम चौंकाने वाले रहे।
फ़ज़ी-नियंत्रित प्रणाली से प्रति वर्ग मीटर लगभग 8.8 किलोग्राम उपज मिली, जबकि पारंपरिक पद्धति से यह केवल 5.85 किलोग्राम रही। यानी लगभग 50 प्रतिशत अधिक उत्पादन। इसके साथ ही, पानी की खपत भी करीब 7.7 प्रतिशत कम हो गई। पारंपरिक प्रणाली में जहाँ 350 लीटर प्रति वर्ग मीटर पानी लगा, वहीं स्मार्ट प्रणाली में यह घटकर 323 लीटर रह गया।
इस शोध का महत्व सिर्फ़ अधिक उपज या पानी की बचत तक सीमित नहीं है। यह दिखाता है कि कैसे सेंसर डेटा और फ़ज़ी लॉजिक का संयोजन शहरी खेती को अधिक बुद्धिमान, संसाधन-कुशल और श्रम-मुक्त बना सकता है। मैन्युअल निगरानी की ज़रूरत कम होती है और किसान या शहरी बाग़बान को हर समय छत पर मौजूद रहने की मजबूरी नहीं रहती।
भविष्य में इस प्रणाली को और उन्नत किया जा सकता है। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को जोड़कर फ़ज़ी नियमों और सदस्यता कार्यों को स्वतः अनुकूलित किया जा सकता है। वहीं, IoT-आधारित वायरलेस सेंसर और क्लाउड एनालिटिक्स के माध्यम से दूर बैठे ही निगरानी और निर्णय लेना संभव होगा। हालाँकि यह अध्ययन भिंडी की फसल पर केंद्रित था, लेकिन इसी ढांचे को दूसरी सब्ज़ियों और फसलों की ज़रूरतों के अनुसार आसानी से ढाला जा सकता है।
कुल मिलाकर, यह शोध स्मार्ट टेरेस फार्मिंग के लिए एक मज़बूत तकनीकी आधार प्रस्तुत करता है और दिखाता है कि कैसे सीमित शहरी स्थानों में भी टिकाऊ, जल-कुशल और जलवायु-लचीली खेती की जा सकती है।
इन चुनौतियों का समाधान तलाशते हुए कोमाथी जे., श्रीरंगराजालु एन. और कुमारसन जी. के हालिया अध्ययन में एक स्मार्ट और स्वचालित प्रणाली प्रस्तुत की गई है, जो सेंसर फ्यूजन और फ़ज़ी लॉजिक कंट्रोलर (FLC) पर आधारित है। इस प्रणाली का उद्देश्य छत पर खेती के लिए एक ऐसा नियंत्रित वातावरण तैयार करना है, जिसमें सिंचाई और जलवायु दोनों का प्रबंधन आसान सटीक ढंग से हो सके।
इस तकनीक की खासियत यह है कि इसमें तापमान-आर्द्रता, मिट्टी की नमी और जल प्रवाह जैसे कई सेंसर एक साथ काम करते हैं। ये सेंसर वास्तविक समय में डेटा एकत्र करते हैं, जिसे फ़ज़ी लॉजिक कंट्रोलर विश्लेषित करता है और उसी आधार पर ड्रिप-सिंचाई तथा छत के खुलने-बंद होने का निर्णय लेता है। इस अध्ययन में पॉलीकार्बोनेट से बनी एक समायोज्य छत का उपयोग किया गया है, जो तापमान और नमी के अनुसार अपने कोण को बदल सकती है।
फ़ज़ी लॉजिक कंट्रोलर में तापमान, आर्द्रता और मिट्टी की नमी को इनपुट पैरामीटर के रूप में लिया गया है, जबकि छत का कोण और पानी के पंप का ऑन-टाइम आउटपुट के रूप में नियंत्रित किया जाता है। इन सभी मानों को ‘वेरी लो’, ‘लो’, ‘मीडियम’ और ‘हाई’ जैसे भाषाई स्तरों में परिभाषित किया गया है। कुल 20 फ़ज़ी IF-THEN नियम तैयार किए गए हैं, जो भिंडी (ओकरा) की जैविक आवश्यकताओं और कृषि विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित हैं।
इस प्रणाली की प्रभावशीलता को परखने के लिए 12 सप्ताह तक भिंडी की खेती पर प्रयोग किया गया।
उदाहरण के तौर पर, भिंडी की फसल 24 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सबसे बेहतर बढ़ती है, जबकि 40 डिग्री से अधिक तापमान पर फूल झड़ने और उपज घटने का खतरा रहता है। इसी को ध्यान में रखते हुए, यदि तापमान या आर्द्रता अधिक हो तो सिस्टम छत को अधिक बंद रखता है, ताकि नमी और गर्मी नियंत्रित रहे। वहीं, ठंडे या शुष्क मौसम में छत को अधिक खुला रखा जाता है, जिससे प्राकृतिक वेंटिलेशन और गर्मी मिल सके। मिट्टी की नमी के अनुसार पानी के पंप की अवधि भी स्वतः घटाई-बढ़ाई जाती है, ताकि जल-भराव या पानी की कमी दोनों से बचा जा सके।
इस प्रणाली की प्रभावशीलता को परखने के लिए 12 सप्ताह तक भिंडी की खेती पर प्रयोग किया गया। एक ओर पारंपरिक मैन्युअल सिंचाई वाली छत पर खेती की गई, जबकि दूसरी ओर फ़ज़ी-नियंत्रित स्मार्ट प्रणाली का उपयोग किया गया। दोनों सेटअप में मिट्टी, बीज, कंटेनर और जल स्रोत समान रखे गए। परिणाम चौंकाने वाले रहे।
फ़ज़ी-नियंत्रित प्रणाली से प्रति वर्ग मीटर लगभग 8.8 किलोग्राम उपज मिली, जबकि पारंपरिक पद्धति से यह केवल 5.85 किलोग्राम रही। यानी लगभग 50 प्रतिशत अधिक उत्पादन। इसके साथ ही, पानी की खपत भी करीब 7.7 प्रतिशत कम हो गई। पारंपरिक प्रणाली में जहाँ 350 लीटर प्रति वर्ग मीटर पानी लगा, वहीं स्मार्ट प्रणाली में यह घटकर 323 लीटर रह गया।
इस शोध का महत्व सिर्फ़ अधिक उपज या पानी की बचत तक सीमित नहीं है। यह दिखाता है कि कैसे सेंसर डेटा और फ़ज़ी लॉजिक का संयोजन शहरी खेती को अधिक बुद्धिमान, संसाधन-कुशल और श्रम-मुक्त बना सकता है। मैन्युअल निगरानी की ज़रूरत कम होती है और किसान या शहरी बाग़बान को हर समय छत पर मौजूद रहने की मजबूरी नहीं रहती।
भविष्य में इस प्रणाली को और उन्नत किया जा सकता है। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को जोड़कर फ़ज़ी नियमों और सदस्यता कार्यों को स्वतः अनुकूलित किया जा सकता है। वहीं, IoT-आधारित वायरलेस सेंसर और क्लाउड एनालिटिक्स के माध्यम से दूर बैठे ही निगरानी और निर्णय लेना संभव होगा। हालाँकि यह अध्ययन भिंडी की फसल पर केंद्रित था, लेकिन इसी ढांचे को दूसरी सब्ज़ियों और फसलों की ज़रूरतों के अनुसार आसानी से ढाला जा सकता है।
कुल मिलाकर, यह शोध स्मार्ट टेरेस फार्मिंग के लिए एक मज़बूत तकनीकी आधार प्रस्तुत करता है और दिखाता है कि कैसे सीमित शहरी स्थानों में भी टिकाऊ, जल-कुशल और जलवायु-लचीली खेती की जा सकती है।