टमाटर के पौधे क्यों मुरझा जाते हैं? जानिए असली कारण और आसान समाधान
Dr SK Singh | Nov 06, 2025, 18:34 IST
टमाटर के पौधों का अचानक मुरझा जाना किसानों के लिए एक आम लेकिन गंभीर समस्या है। यह केवल पानी की कमी नहीं, बल्कि कई बार मिट्टी जनित फफूंद, जीवाणु, कीट या मौसम के उतार-चढ़ाव का परिणाम होता है। सही पहचान, संतुलित सिंचाई, जैविक उपायों और प्रतिरोधक किस्मों के चयन से इस समस्या पर आसानी से काबू पाया जा सकता है।
टमाटर की खेती करने वाले किसानों और बागवानी प्रेमियों के लिए सबसे परेशान करने वाली समस्या है - पौधों का अचानक मुरझा जाना। यह मुरझाना केवल पानी की कमी की वजह से नहीं होता, बल्कि कई बार यह किसी गहरे रोग, कीट संक्रमण या पर्यावरणीय दबाव का संकेत होता है। सही कारण पहचानना और समय पर कदम उठाना ही फसल को बचाने की कुंजी है।
क्यों मुरझाते हैं टमाटर के पौधे?
टमाटर के पौधों के मुरझाने के पीछे दो तरह के कारण हो सकते हैं - जैविक (यानी रोग और कीट) और अजैविक (यानी पर्यावरण या प्रबंधन से जुड़ी गड़बड़ियाँ)।
सबसे पहले बात करें रोगों की। फ्यूजेरियम विल्ट और वर्टिसिलियम विल्ट दो ऐसी फफूंदजनित बीमारियाँ हैं जो पौधों की जल वाहिकाएँ (xylem) बंद कर देती हैं। इनके असर से पौधे की पत्तियाँ, खासकर नीचे की तरफ़, पहले पीली पड़ती हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा मुरझाने लगता है। तने को काटने पर उसका अंदरूनी भाग भूरा दिखता है - यह एक पक्का संकेत है कि पौधा इन रोगों से संक्रमित है।
एक और गंभीर बीमारी है बैक्टीरियल विल्ट, जो जीवाणु संक्रमण से होती है। इसमें पौधा अचानक पूरा मुरझा जाता है, मानो पानी की भारी कमी हो। अगर तने को हल्का दबाएँ तो सफेद चिपचिपा पदार्थ निकलता है — जो जीवाणु स्राव होता है।
कई बार रूट नेमाटोड जैसे सूक्ष्म कीट पौधों की जड़ों में गाँठें बना देते हैं। इन गाँठों के कारण जड़ें पानी और पोषक तत्व नहीं ले पातीं, जिससे पौधा कमजोर होकर मुरझाने लगता है।
हर बार दोष पानी का नहीं होता
कभी-कभी मुरझाने के पीछे कारण होते हैं - मानव जनित गलतियाँ।
बहुत ज़्यादा सिंचाई करने पर मिट्टी में पानी भर जाता है और जड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिलती, जिससे वे सड़ जाती हैं (रूट रॉट)। वहीं, बहुत कम पानी देने से पौधा सूखने लगता है।
इसी तरह, अचानक तापमान बढ़ने या लू चलने से पौधा बहुत तेज़ी से नमी खो देता है और मुरझाने लगता है। अत्यधिक ठंड भी उसकी वृद्धि रोक सकती है।
मिट्टी की खराब बनावट भी बड़ी वजह है - अगर मिट्टी बहुत सख्त है या उसमें pH असंतुलन है, तो पौधे की जड़ें सही तरह से फैल नहीं पातीं। नाइट्रोजन या पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों की कमी से भी पौधे पीले और कमजोर दिखते हैं।
कभी-कभी कीटनाशकों या उर्वरकों का गलत या ज़्यादा उपयोग भी पौधों की जड़ों को जला देता है - इसे “केमिकल बर्न” कहा जाता है।
पहचान ही बचाव की पहली सीढ़ी
मुरझाने का सही कारण समझने के लिए कुछ आसान जाँचें की जा सकती हैं।
देखिए - क्या सिर्फ़ एक शाखा मुरझा रही है या पूरा पौधा? क्या यह समस्या दिन के सबसे गर्म वक्त में दिखती है और शाम को कम हो जाती है? मिट्टी में उँगली डालकर उसकी नमी महसूस करें। जड़ों को खोदकर देखें — क्या वे स्वस्थ और सफेद हैं या काली और सड़ी हुई? तना काटने पर अंदर का रंग भूरा है या नहीं? ये सारे छोटे-छोटे निरीक्षण बड़े काम के होते हैं।
सही प्रबंधन से मिलेगी राहत
जैसे ही कारण पता चल जाए, उसके अनुसार कदम उठाना जरूरी है। सबसे पहले निवारक उपायों पर ध्यान दें।
रोग-प्रतिरोधक किस्में चुनें, जैसे ‘VFN’ कोड वाली हाइब्रिड किस्में।
एक ही खेत या गमले में लगातार टमाटर, मिर्च, बैंगन या आलू न लगाएँ — कम से कम 3–4 साल का फसल चक्र रखें।
मिट्टी की अच्छी तरह जुताई करें, धूप लगने दें और जल निकासी का ध्यान रखें।
रोपण से पहले केवल स्वस्थ पौधे ही चुनें।
जैविक उपायों में ट्राइकोडर्मा विरिडी या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस जैसे सूक्ष्मजीव मिट्टी में डालना बहुत उपयोगी है — ये फफूंद और जीवाणु रोगों को दबाते हैं। नेमाटोड नियंत्रण के लिए नीम की खली का उपयोग भी असरदार है। अगर पौधा बैक्टीरियल विल्ट से बुरी तरह ग्रस्त हो, तो उसे उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि बीमारी न फैले।
रासायनिक नियंत्रण को अंतिम विकल्प मानना चाहिए। अगर रोग बहुत बढ़ जाए तो विशेषज्ञ की सलाह पर कार्बेंडाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे फफूंदनाशक का उपयोग किया जा सकता है।
सिंचाई प्रबंधन पर भी खास ध्यान दें। न तो मिट्टी सूखी रहने दें, न पानी भरा रहे। ड्रिप इरिगेशन सबसे बेहतर तरीका है, खासकर गर्मियों में। याद रखें — पत्तियों पर सीधे पानी न डालें, इससे फफूंदी रोगों का खतरा बढ़ता है।
क्यों मुरझाते हैं टमाटर के पौधे?
टमाटर के पौधों के मुरझाने के पीछे दो तरह के कारण हो सकते हैं - जैविक (यानी रोग और कीट) और अजैविक (यानी पर्यावरण या प्रबंधन से जुड़ी गड़बड़ियाँ)।
सबसे पहले बात करें रोगों की। फ्यूजेरियम विल्ट और वर्टिसिलियम विल्ट दो ऐसी फफूंदजनित बीमारियाँ हैं जो पौधों की जल वाहिकाएँ (xylem) बंद कर देती हैं। इनके असर से पौधे की पत्तियाँ, खासकर नीचे की तरफ़, पहले पीली पड़ती हैं और धीरे-धीरे पूरा पौधा मुरझाने लगता है। तने को काटने पर उसका अंदरूनी भाग भूरा दिखता है - यह एक पक्का संकेत है कि पौधा इन रोगों से संक्रमित है।
एक और गंभीर बीमारी है बैक्टीरियल विल्ट, जो जीवाणु संक्रमण से होती है। इसमें पौधा अचानक पूरा मुरझा जाता है, मानो पानी की भारी कमी हो। अगर तने को हल्का दबाएँ तो सफेद चिपचिपा पदार्थ निकलता है — जो जीवाणु स्राव होता है।
कई बार रूट नेमाटोड जैसे सूक्ष्म कीट पौधों की जड़ों में गाँठें बना देते हैं। इन गाँठों के कारण जड़ें पानी और पोषक तत्व नहीं ले पातीं, जिससे पौधा कमजोर होकर मुरझाने लगता है।
हर बार दोष पानी का नहीं होता
कभी-कभी मुरझाने के पीछे कारण होते हैं - मानव जनित गलतियाँ।
बहुत ज़्यादा सिंचाई करने पर मिट्टी में पानी भर जाता है और जड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिलती, जिससे वे सड़ जाती हैं (रूट रॉट)। वहीं, बहुत कम पानी देने से पौधा सूखने लगता है।
इसी तरह, अचानक तापमान बढ़ने या लू चलने से पौधा बहुत तेज़ी से नमी खो देता है और मुरझाने लगता है। अत्यधिक ठंड भी उसकी वृद्धि रोक सकती है।
मिट्टी की खराब बनावट भी बड़ी वजह है - अगर मिट्टी बहुत सख्त है या उसमें pH असंतुलन है, तो पौधे की जड़ें सही तरह से फैल नहीं पातीं। नाइट्रोजन या पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों की कमी से भी पौधे पीले और कमजोर दिखते हैं।
कभी-कभी कीटनाशकों या उर्वरकों का गलत या ज़्यादा उपयोग भी पौधों की जड़ों को जला देता है - इसे “केमिकल बर्न” कहा जाता है।
पहचान ही बचाव की पहली सीढ़ी
मुरझाने का सही कारण समझने के लिए कुछ आसान जाँचें की जा सकती हैं।
देखिए - क्या सिर्फ़ एक शाखा मुरझा रही है या पूरा पौधा? क्या यह समस्या दिन के सबसे गर्म वक्त में दिखती है और शाम को कम हो जाती है? मिट्टी में उँगली डालकर उसकी नमी महसूस करें। जड़ों को खोदकर देखें — क्या वे स्वस्थ और सफेद हैं या काली और सड़ी हुई? तना काटने पर अंदर का रंग भूरा है या नहीं? ये सारे छोटे-छोटे निरीक्षण बड़े काम के होते हैं।
सही प्रबंधन से मिलेगी राहत
जैसे ही कारण पता चल जाए, उसके अनुसार कदम उठाना जरूरी है। सबसे पहले निवारक उपायों पर ध्यान दें।
रोग-प्रतिरोधक किस्में चुनें, जैसे ‘VFN’ कोड वाली हाइब्रिड किस्में।
एक ही खेत या गमले में लगातार टमाटर, मिर्च, बैंगन या आलू न लगाएँ — कम से कम 3–4 साल का फसल चक्र रखें।
मिट्टी की अच्छी तरह जुताई करें, धूप लगने दें और जल निकासी का ध्यान रखें।
रोपण से पहले केवल स्वस्थ पौधे ही चुनें।
जैविक उपायों में ट्राइकोडर्मा विरिडी या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस जैसे सूक्ष्मजीव मिट्टी में डालना बहुत उपयोगी है — ये फफूंद और जीवाणु रोगों को दबाते हैं। नेमाटोड नियंत्रण के लिए नीम की खली का उपयोग भी असरदार है। अगर पौधा बैक्टीरियल विल्ट से बुरी तरह ग्रस्त हो, तो उसे उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि बीमारी न फैले।
रासायनिक नियंत्रण को अंतिम विकल्प मानना चाहिए। अगर रोग बहुत बढ़ जाए तो विशेषज्ञ की सलाह पर कार्बेंडाजिम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे फफूंदनाशक का उपयोग किया जा सकता है।
सिंचाई प्रबंधन पर भी खास ध्यान दें। न तो मिट्टी सूखी रहने दें, न पानी भरा रहे। ड्रिप इरिगेशन सबसे बेहतर तरीका है, खासकर गर्मियों में। याद रखें — पत्तियों पर सीधे पानी न डालें, इससे फफूंदी रोगों का खतरा बढ़ता है।