बासमती की खेती करने वाले किसानों को किया जा रहा है जागरूक

एपीडा और बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (बीईडीएफ) द्वारा बासमती की खेती करने वाले किसानों को कीटनाशकों और रसायनिक उर्वरकों के सही मात्रा के प्रयोग के बारे में जागरूक किया जा रहा है।

Divendra SinghDivendra Singh   20 July 2021 6:46 AM GMT

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बासमती की खेती करने वाले किसानों को किया जा रहा है जागरूक

देश के एक बड़े क्षेत्रफल में बासमती धान की खेती की जाती है, लेकिन कई बार कीटनाशकों की अधिकता के कारण बासमती के निर्यात में परेशानी होती है, ऐसे में किसानों को बासमती की खेती में सीमित मात्रा में रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बारे में जागरूक किया जा रहा है।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) और बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (बीईडीएफ) बासमती के निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से खेती करने वाले किसानों को जागरूक कर रहा है। इस कड़ी में एपीडा (APEDA) और राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन उत्तर प्रदेश ने बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) के साथ मिलकर 7 राज्यों में 75 किसान जागरूकता कार्यक्रम की शुरूआत की है, पहला जागरूकता कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में किया गया।

बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ रितेश शर्मा बताते हैं, "जागरूकता कार्यक्रम के जरिए किसानों को जानकारी दी गई कि किस तरह से किसान कम से कम रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग करके परंपरागत तरीकों से खेती कर सकते हैं, जिससे बासमती के निर्यात में परेशानी न हो।"

जागरुकता कार्यक्रम के पहले दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 125 से अधिक किसानों ने इस जागरूकता अभियान में भाग लिया। इस अभियान के दौरान किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली बासमती का उत्पादन करने के लिए सही मात्रा में रसायनों और उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह दी गई ताकि उन्हें दुनिया में बासमती चावल की मांग बढ़ाने में मदद मिल सके और उनकी आय में बढ़ोतरी हो सके।


एपीडा ने उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किसानों को प्रमाणित बीजों के साथ-साथ रासायनिक उर्वरक के वैज्ञानिक उपयोग का भी सुझाव दिया है ताकि बासमती चावल का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित किया जा सके जिससे देश से बासमती चावल के निर्यात को और बढ़ावा मिले।

भारत ने 2020-21 में 29,849 करोड़ रुपये (4019 मिलियन अमेरिकी डॉलर) मूल्य का 4.63 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया।

एपीडा मूल्य श्रृंखला में मौजूद विभिन्न हितधारकों के सहयोग से चावल के निर्यात को बढ़ावा देता रहा है। सरकार ने एपीडा के तत्वावधान में चावल निर्यात संवर्धन फोरम (आरईपीएफ) की स्थापना की थी। आरईपीएफ में चावल उद्योग, निर्यातकों, एपीडा के अधिकारियों, वाणिज्य मंत्रालय और पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़ और ओडिशा सहित प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों के कृषि निदेशकों का प्रतिनिधित्व है।

डॉ. रितेश शर्मा आगे कहते हैं, "बासमती की फसल में रोग और कीटों की वजह से किसान रसायन का छिड़काव करते हैं, इनमें ब्लॉस्ट, शीथ ब्लाइट, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट व झंडा रोग व तना छेदक, भूरा फुदाक व पत्ती लपेटक प्रमुख रोग व कीट हैं। किसान दुकान से कीटनाशक या रसायन खरीद लेते हैं, लेकिन कई बार वो नकली होते हैं, इसलिए हमेशा कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही रसायन का छिड़काव करें।"

इस नंबर पर फोन करके ले सकते हैं सलाह

बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन ने किसानों की मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर (8630641798 ) जारी किया है। इस फसल की फोटो भेजकर किसान बासमती धान में लगने वाले रोगों और कीट की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। जब बहुत जरूरी हो तभी कीटनाशकों का इस्तेमाल करें।

बासमती की खेती के लिए सात प्रदेशों को मिला है जीआई टैग

देश के सात प्रदेशों के 95 जिलों को इसका जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग मिला हुआ है। इनमें पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिम उत्तर प्रदेश के 30 और जम्मू-कश्मीर के तीन जिले (जम्मू, कठुआ और सांबा) शामिल हैं।

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