बारिश से फसल बर्बाद होने और तुलसी तेल की गिरती कीमतों से लागत भी नहीं निकाल पा रहे किसान

पिछले कई साल से मेंथा की फसल से नुकसान उठा रहे किसानों को तुलसी तेल के बढ़िया रेट से कुछ उम्मीद जगी थी, लेकिन इस बार तुलसी का रेट भी कम हो गया और बारिश से फसल भी बर्बाद दो गई।

Virendra SinghVirendra Singh   14 Oct 2021 2:07 PM GMT

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बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। राम सुचित वर्मा को समझ में नहीं आ रहा कि अब वो खेत में लगी तुलसी की फसल का क्या करें, मजदूर लगाकर तुलसी की फसल कटवाएं या फिर खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलवा दें। क्योंकि आगे दूसरी फसल भी लगानी है।

40 साल के किसान राम सुचित वर्मा उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के सूरतगंज के रहने वाले हैं, बाराबंकी जिला मेंथा की खेती के लिए मशहूर है, लेकिन पिछले कई साल से मेंथा किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसीलिए रामसुचित ने इस बार तुलसी की खेती की भी शुरुआत की, क्योंकि कई लोगों ने उनसे कहा कि वो तुलसी के तेल का रेट अच्छा है, इसकी खेती करो।

वर्मा ने पांच बीघा में तुलसी की फसल लगायी, शुरू में तो सब अच्छा था, लेकिन सितंबर के आखिर में हुई बारिश ने सब बर्बाद कर दिया और मार्केट में तुलसी का रेट भी गिर गया।

किसान राम सुचित वर्मा

बारिश के पानी से बर्बाद हुए तुलसी के खेत में बैठे राम सुचित गांव कनेक्शन से अपनी परेशानी साझा करते हुए कहते हैं, "पहले मैं मेंथा की खेती ज्यादा करता था, लेकिन मेंथा में हर बार नुकसान होता था, तब लोगों ने कहा कि मेंथा चला गया तो चला गया, तुलसी की खेती करो इसका 2600 रुपए किलो रेट है, मैंने पांच बीघा तुलसा (तुलसी) लगा दिया, लेकिन इस बार इसका रेट भी 2600 से सीधे 400 रुपए में आ गया, अब बताओ मजदूरी 400-500 रुपए हो गई, इतने में क्या होगा।"

रामसुचित के के तीन बच्चे, एक बेटा और दो बेटियां हैं, वो आगे कहते हैं, "मेरे तीन बच्चे हैं, एक बेटा दो बेटियां हैं, सरकारी में भेज नहीं सकते हैं, वहां मास्टर ही नहीं आते हैं, अब मेरे ऊपर कर्जा है, कहां से भरेंगे, क्या बेचे जिससे कर्जा भरे, कहो तो जहर खाकर मर जाएं।"

सितंबर के महीने में हुई बारिश से दूसरी फसलों के साथ ही तुलसी की फसल भी बर्बाद हुई थी। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार सितंबर महीने में बाराबंकी जिले में 207.4 मिलीमीटर बारिश के मुकाबले 304.3 मिलीमीटर अधिक बारिश हुई।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार सितंबर महीने में बाराबंकी जिले में 207.4 मिलीमीटर बारिश के मुकाबले 304.3 मिलीमीटर अधिक बारिश हुई।

दूसरा इस बार तुलसी के तेल की कीमतें भी तेजी से नीचे गिर गईं हैं, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। तुलसी के तेल की अच्छी कीमतों के चलते किसानों ने तुलसी की खेती का रकबा भी बढ़ाया था। लेकिन बारिश और कम कीमतों ने किसानों को परेशान कर दिया है।

सूरतगंज के किसान पप्पू वर्मा की भी यही परेशानी है, 38 साल के पप्पू वर्मा कहते हैं, "जब इसका भाव 2600 रुपए किलो था, तब मैंने इसे लगाया, इस समय तुलसी पूरी बर्बाद हो गई, खेतों में पानी भी भर गया है।"

वो आगे कहते हैं, "तेल का रेट 500 से 600 रुपए किलो हो गया है, इसको कटवाने में मजदूर की दिहाड़ी 400 से 500 रुपए लग जाती है, एक बीघा में 2-3 किलो तेल निकलता है, अब इसकी पेराई करें कि खेत में ट्रैक्टर चला दें। पहले मेंथा में नुकसान हुआ और अब तुलसी में भी यही हो रहा है।"

सूरतगंज के किसान पप्पू वर्मा

पिछले एक साल में बाराबंकी में तुलसी की खेती का रकबा भी बढ़ा था, इस बारे में जिला उद्यान अधिकारी, बाराबंकी महेश कुमार श्रीवास्तव समझाते हुए कहते हैं, "मेंथा जायद की फसल और तुलसी खरीफ की फसल है, मार्च से जुलाई तक मेंथा लगाते हैं, क्योंकि ज्यादातर खेत खाली होते हैं, तो किसान ज्यादातर मेंथा ही लगाते हैं। जबकि तुलसी खरीफ की फसल है, इस समय दूसरी फसलें भी खेत में होती हैं, फिर भी बाराबंकी में लगभग 1000 हेक्टेयर में तुलसी की खेती होती है, इस बार 4-5% तुलसी का और एरिया भी बढ़ा है।"

तेल की कम कीमतों के बारे में वो कहते हैं, "मांग और आपूर्ति पर किसी भी उत्पाद का रेट निर्भर करता है, अगर मांग ज्यादा है और आपूर्ति कम है तो रेट ज्यादा रहा है, लेकिन अगर आपूर्ति ज्यादा और मांग भी कम हो गई है तो रेट गिरेगा ही।"

एक बीघा तुलसी लगाने में 4-5 हजार रुपए की लागत आती है, रेट अच्छा मिल रहा है और फसल भी अच्छी रही तो एक बीघा में दस किलो तक तेल निकल जाता है और मार्केट रेट 1500-2000 रुपए रहा तो एक बीघा में 15 से 20 हजार रुपए तक मिल जाता है, लेकिन इस बार बारिश की वजह से खेत में फसल ही नहीं बची है अगर किसान पेराई भी करता है तो ज्यादा से 2-4 किलो ही तेल निकलेगा, और 500-600 रुपए किलो तेल के हिसाब से किसान को सिर्फ 1000 से 2400 तक ही मिलेंगे।

बारिश से बर्बाद हुई तुलसी की फसल

तुलसी के तेल का उपयोग कई तरह से सुगंधित प्रशाधनों और औषधियों में होता है, आयुर्वेद और चीनी दवाओं में तुलसी के तेल का प्रयोग होता है।

केंद्रीय औषध एवं सगंध अनुसंधान संस्थान (सीमैप) के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार तुलसी की खेती के बारे में बताते हैं, "इस समय बबुई तुलसी की खेती किसान करते हैं, यह ढ़ाई से तीन महीने की फसल होती है, किसान उन क्षेत्रों में खेती करते हैं, जहां पर पानी नहीं लगता है, क्योंकि यह बरसात में की जाती है।"

इसकी खेती बदायूं, बरेली, लखीमपुर, सीतापुर, बाराबंकी, रायबरेली जैसे जिलों में होती है, बुंदेलखंड में भी इसकी खेती शुरू हुई है।

डॉ संजय कुमार आगे कहते हैं, "यूपी में लगभग 4000 हेक्टेयर में तुलसी की खेती होती है, इस बार रकबा बढ़ा है, क्योंकि पिछले दो साल से तुलसी का रेट बहुत अच्छा चल रहा था, लेकिन इस बारिश की वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। औसतन तुलसी के तेल का रेट 700 से 800 होता है, लेकिन पिछले साल 2000 तक चला गया था।"

तुलसी की खेती में बर्बाद हुए किसानों को इस बार की चिंता है, कि रबी की फसलों की बुवाई कैसे करेंगे, क्योंकि इस बार उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। किसान लवकुश वर्मा ने पिछले साल से ही तुलसी की खेती शुरुआत की थी, वो कहते हैं, "साल 2020 में हमने तुलसी की खेती बहुत कम की थी, बस हम जानना चाहते थे कि इसकी खेती कैसे होती है, तब एक बीघा में 8-10 किलो तेल निकलता था, कोरोना काल में तुलसी के तेल की कीमत खूब बढ़ी थी, इसलिए हमने भी तुलसी की खेती एक तो बारिश से फसल बर्बाद हो गई, इसमें किसको दोष दें।"

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