विदेशी फूलों की खेती ने देशी फूलों को पछाड़ा

गाँव कनेक्शन | Dec 28, 2016, 20:50 IST
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लखनऊ। शादी ब्याह के साथ हर सजावट का आकर्षण विदेशी फूल बन रहे हैं। गुलाब और गेंदे के फूल केवल पूजा की थाल में ही ज्यादा सजे दिखाई दे रहे हैं। जरबेरा और ग्लेडियोलस जैसे विदेशी फूलों ने देश के इन देसी फूलों की महक दबा दी है। इससे राजधानी में जहां इन देसी फूलों (गेंदा और गुलाब) का उत्पादन लगभग 100 हेक्टेयर में किया जाता था वहीं इस समय इनका उत्पादन केवल 40 हेक्टेयर में किया जा रहा है।

लखनऊ के जिला उद्यान अधिकारी डीके वर्मा ने बताया कि इस समय जरबेरा की मांग बाजार में अधिक है और दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इसका कारण यह है कि इसके रख-रखाव का देसी फूलों के मुकाबले कम ध्यान रखना पड़ता है। राजधानी में पहले गुलाब की खेती लगभग 100 हेक्टेयर में किसानों द्वारा की जाती थी लेकिन अब वही खेती लगभग 10 या 15 हेक्टेयर में की जा रही है। इसके साथ ही गेंदे के फूल की खेती इस समय केवल 40 हेक्टेयर में की जा रही है जबकि जरबेरा की खेती इस समय लगभग 20,000 वर्ग मीटर में पॉलीहाउस का उपयोग कर की जा रही है। इसके अतिरिक्त लगभग 50 हेक्टेयर में केवल ग्लेडियोलस की खेती की जा रही है।ग्लेडियोलस के फूलों की खेती खुले में भी की जा सकती है। जिला उद्यान अधिकारी का कहना है कि गुलाब की खेती से जहां 50 क्विंटल तक फूलों की पैदावार होती थी वहीं अब इसकी खेती की जा सकती है लेकिन केवल सीमित स्तर पर। पॉलीहाउस में खेती किए जाने से जरबेरा के फूल कई दिनों तक ताजे बने रहते हैं और उपयोग किए जा सकते हैं।

देसी फूलों की खेती लगभग आठ महीने ही रहती है जबकि जरबेरा जैसे विदेशी फूल साल भर बाजार में आते हैं। अब हर जगह इनकी मांग है। किसान जागरूक हैं लेकिन पॉलीहाउस का खर्च नहीं उठा सकते हैं। इन विदेशी फूलों का बीज 70 फीसदी हॉलैण्ड से आता है जो कि फूल व्यापार में विश्व में नं. एक पर है। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत के बैंगलोर से भी बीज आते हैं।
-डीके वर्मा, जिला उद्यान अधिकारी, लखनऊ

पॉलीहाउस की लागत से परेशानी

अभी भी राजधानी के किसान गोसाईंगंज, मलिहाबाद, काकोरी और बक्शी का तालाब में गेंदे और गुलाब की ही पारंपरिक खेती कर रहे हैं। ये किसान आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं हैं कि अच्छी आमदनी दिलानेवाले विदेशी फूलों की पैदावार के लिए पॉलीहाउस का निर्माण करा सकें। पॉलीहाउस के साथ खेती करने के लिए शुरुआत में लगभग 10 लाख रुपए का खर्च 1000 वर्ग मीटर के हिसाब से आता है। बिना पॉलीहाउस के इन फूलों की खेती खुले में नहीं की जा सकती है क्योंकि प्रदेश के कुछ हिस्सों की जलवायु इसके विपरीत है।

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