सहजन की खेती किसानों के लिए फायदेमंद
गाँव कनेक्शन | Nov 09, 2018, 13:18 IST
लखनऊ। धान-गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते किसान उन फसलों को ज्यादा तवज्जों दे रहे हैं, जिन्हें एक बार लगाने पर कई बार आमदनी हो। सहजन और गुलमार ऐसी ही फसलें हैं।
सहजन की बाग एक बार लगाने पर 5-8 साल तक फसल मिलती है। सहजन की पत्तियां और फलियों के साथ बीज की भी काफी मांग रहती है। सहजन की खेती अभी तक आंध्रप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ज्यादा होती थी, लेकिन देश में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ सरकार कई योजनाओं के जरिए इन्हें यूपी, झारखंड जैसे राज्यों में भी बढावा दिया जा रहा है। झारखंड में झारखंड स्टेट लाइवलीवुड मिशन के तहत समूह से जुड़ी महिलाओं को सहजन के पौधे दिए गए हैं तो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिशा-निर्देशन में बुंदेलखंड में 100 एकड़ में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सहजन की खेती कराई जा रही है।
उत्तर प्रदेश में इटावा के जसवंत नगर के मूल निवासी और कृषि विभाग में अधिकारी रहे डॉ. राकेश कुमार सिंह पिछले कई वर्षों से तुलसी, मंडूकपर्णी, गिलोय, कौंच और मोरिंगा (सहजन) की खेती कर रहे हैं। राकेश बताते हैं, "जिस हिसाब से खेती की लागत बढ़ रही है और खेत छोटे हो रहे हैं, किसानों को चाहिए ऐसे फसलें ज्यादा बोएं, जिनमें एक बार बीज और खाद लगे और कई वर्षों तक उत्पादन मिलता रहे।"
कटने को तैयार सहजन की फसल।
वो आगे बताते हैं, "झांसी, बांदा, फतेहपुर सीतापुर, बहराइच के साथ ही मध्य प्रदेश के करेली और अस्टन में करीब 750 एकड़ में सहजन की खेती में किसानों की मदद कर रहा हूं। इसमें 2 से 5 एकड़ वाले करीब 80 किसान शामिल हैं।" राकेश सिंह के मुताबिक दुनियाभर में सहजन की काफी मांग है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक सालाना करीब 2 लाख मीट्रिक टन की मांग के अनुपात में भारत में महज 10 फीसदी आपूर्ति हो पाती है।"
मध्य प्रदेश के सागर जिले में रहने वाले आकाश चौरसिया हर किसान को सहजन की खेती की सलाह देते हैं। आकाश कहते हैं, जिस तरह खेती की जमीन छोटी हो रही हैं, किसानों को चाहिए एक खेत में एक बार में कई फसलें उगाएं। सहजन ऐसी फसल है,जिसकी पत्तियां, फल और बीज तक सब बिक जाते हैं। अगर सहजन की बाग लगाई गई है तो जमीन के नीचे अरबी, हल्दी और अदरक की खेती हो सकती है। इसमें कोई फसल 4 महीने में तो मुनाफा देगी तो कई और कई वर्षों तक उत्पादन देगी।
राकेश कहते हैं, "सेहत के प्रति जागरुकता ने जड़ी-बूटी की खेती के मार्केट को बड़ा कर दिया है। अभी तक बहुत कौंच, मोरिंगा, मंडूकपर्णी जैसी फसलों की खेती नहीं होती थी बल्कि ये पहाड़ी इलाकों से प्राकृतिक रुप से इकत्र की जाती थीं, लेकिन जबसे व्यवसायिक इस्तेमाल बढ़ा किसानों को इसमें फायदा नजर आने लगा है।'
सहजन की खूबियां गिनाते हुए राकेश सिंह कहते हैं, "एक एकड़ में औसतन 60-70 हजार रुपए की लागत आती है। जिसके बाद हर 2-3 महीने पर कटाई कर सकते हैं। शुरु की दो कटाई में पत्तियां कम निकलती हैं, लेकिन उसके बाद उत्पादन बढ़ता जाता है। इस तरह दूसरे साल में प्रति एकड़ 10 टन तक माल सूखी पत्तियां निकल सकती हैं। जिससे साल में एक लाख से लेकर ढाई लाख तक की आमदनी हो सकती है।'
अपने खेत में सहजन यानि मोरिंगा की निराई कराते डॉ. राकेश सिंह।
औषधीय पौधों की खेती के साथ वो इसकी मार्केटिंग और निर्यात भी कर रहे हैं। राकेश सिंह कहते हैं, भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सही तरीके से उगाई गई मेडिशनल क्रॉप की काफी मांग है। क्वालिटी के चलते ही हमने खुद भी खेती कराई, जो पूरी तरह जैविक है। हमारे साथ जो किसान जुड़े हैं उनके लिए बाजार की व्वयस्था पहले से है। इसके लिए हरियाणा के साथी के साथ मिलकर मिलकर फर्म भी बनाई है।" राकेश के सहयोगी मनोज जैन, हरियाणा में सोनीपत जिले के रहने वाले हैं। मनोज बताते हैं, "मैं हिमाचल प्रदेश में सरकारी बैंक में नौकरी कर रहा था, लेकिन मुझे खुद का व्यवसाय करना था इसलिए हर्ब का काम शुरु किया। फिलहाल हमारा कारोबर 30 लाख रुपए सलाना का है।"
गैर परंपरागत ठिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए यूपी में राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड भी है। बोर्ड के समन्वयक पीएस ओझा कहते हैं, "सहजन लोगों की आर्थिक के साथ शारीरिक सेहत भी सही करेगा क्योंकि मानव शरीर को जो 20 अमीनो एसिड चाहिए होते हैं, उनमें से 12 सहजन में पाए जाते हैं। यूपी में इसकी खेती में काफी संभावनाएं हैं।
एक एकड़ में सहजन की लागत
बीज- 15-18 किलो (30-30 सेंटीमीटर पर बुवाई)
गोबर खाद- 5-10 ट्राली
जैविक खादें- 4-5 कुंटल
बुवाई खर्च- 8000 रुपए (अधिकतम)
कुल औसत खर्च-60-70 हजार रुपए
सहजन की बाग एक बार लगाने पर 5-8 साल तक फसल मिलती है। सहजन की पत्तियां और फलियों के साथ बीज की भी काफी मांग रहती है। सहजन की खेती अभी तक आंध्रप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ज्यादा होती थी, लेकिन देश में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ सरकार कई योजनाओं के जरिए इन्हें यूपी, झारखंड जैसे राज्यों में भी बढावा दिया जा रहा है। झारखंड में झारखंड स्टेट लाइवलीवुड मिशन के तहत समूह से जुड़ी महिलाओं को सहजन के पौधे दिए गए हैं तो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिशा-निर्देशन में बुंदेलखंड में 100 एकड़ में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सहजन की खेती कराई जा रही है।
उत्तर प्रदेश में इटावा के जसवंत नगर के मूल निवासी और कृषि विभाग में अधिकारी रहे डॉ. राकेश कुमार सिंह पिछले कई वर्षों से तुलसी, मंडूकपर्णी, गिलोय, कौंच और मोरिंगा (सहजन) की खेती कर रहे हैं। राकेश बताते हैं, "जिस हिसाब से खेती की लागत बढ़ रही है और खेत छोटे हो रहे हैं, किसानों को चाहिए ऐसे फसलें ज्यादा बोएं, जिनमें एक बार बीज और खाद लगे और कई वर्षों तक उत्पादन मिलता रहे।"
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वो आगे बताते हैं, "झांसी, बांदा, फतेहपुर सीतापुर, बहराइच के साथ ही मध्य प्रदेश के करेली और अस्टन में करीब 750 एकड़ में सहजन की खेती में किसानों की मदद कर रहा हूं। इसमें 2 से 5 एकड़ वाले करीब 80 किसान शामिल हैं।" राकेश सिंह के मुताबिक दुनियाभर में सहजन की काफी मांग है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक सालाना करीब 2 लाख मीट्रिक टन की मांग के अनुपात में भारत में महज 10 फीसदी आपूर्ति हो पाती है।"
राजस्थान के झुंझुनू में 50 एकड़ में सहजन की खेती कर रहे अजीत सिंह पुनिया बताते हैं, सहजन में फलियों के लिए खेती कर रहे हैं तो समय का ध्यान रखें। नवबंर में फल आ जाएं तो अच्छे रेट मिलते हैं। बाकी पत्तियां तो साल के किसी भी महीने में तोड़कर आप बेच सकते हैं।
राकेश कहते हैं, "सेहत के प्रति जागरुकता ने जड़ी-बूटी की खेती के मार्केट को बड़ा कर दिया है। अभी तक बहुत कौंच, मोरिंगा, मंडूकपर्णी जैसी फसलों की खेती नहीं होती थी बल्कि ये पहाड़ी इलाकों से प्राकृतिक रुप से इकत्र की जाती थीं, लेकिन जबसे व्यवसायिक इस्तेमाल बढ़ा किसानों को इसमें फायदा नजर आने लगा है।'
सहजन की खूबियां गिनाते हुए राकेश सिंह कहते हैं, "एक एकड़ में औसतन 60-70 हजार रुपए की लागत आती है। जिसके बाद हर 2-3 महीने पर कटाई कर सकते हैं। शुरु की दो कटाई में पत्तियां कम निकलती हैं, लेकिन उसके बाद उत्पादन बढ़ता जाता है। इस तरह दूसरे साल में प्रति एकड़ 10 टन तक माल सूखी पत्तियां निकल सकती हैं। जिससे साल में एक लाख से लेकर ढाई लाख तक की आमदनी हो सकती है।'
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औषधीय पौधों की खेती के साथ वो इसकी मार्केटिंग और निर्यात भी कर रहे हैं। राकेश सिंह कहते हैं, भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सही तरीके से उगाई गई मेडिशनल क्रॉप की काफी मांग है। क्वालिटी के चलते ही हमने खुद भी खेती कराई, जो पूरी तरह जैविक है। हमारे साथ जो किसान जुड़े हैं उनके लिए बाजार की व्वयस्था पहले से है। इसके लिए हरियाणा के साथी के साथ मिलकर मिलकर फर्म भी बनाई है।" राकेश के सहयोगी मनोज जैन, हरियाणा में सोनीपत जिले के रहने वाले हैं। मनोज बताते हैं, "मैं हिमाचल प्रदेश में सरकारी बैंक में नौकरी कर रहा था, लेकिन मुझे खुद का व्यवसाय करना था इसलिए हर्ब का काम शुरु किया। फिलहाल हमारा कारोबर 30 लाख रुपए सलाना का है।"
गैर परंपरागत ठिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिए यूपी में राज्य जैव ऊर्जा विकास बोर्ड भी है। बोर्ड के समन्वयक पीएस ओझा कहते हैं, "सहजन लोगों की आर्थिक के साथ शारीरिक सेहत भी सही करेगा क्योंकि मानव शरीर को जो 20 अमीनो एसिड चाहिए होते हैं, उनमें से 12 सहजन में पाए जाते हैं। यूपी में इसकी खेती में काफी संभावनाएं हैं।
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एक एकड़ में सहजन की लागत
बीज- 15-18 किलो (30-30 सेंटीमीटर पर बुवाई)
गोबर खाद- 5-10 ट्राली
जैविक खादें- 4-5 कुंटल
बुवाई खर्च- 8000 रुपए (अधिकतम)
कुल औसत खर्च-60-70 हजार रुपए