देखें वीडियो: पशुओं को चॉकलेट खिलाकर बढ़ा रहे दूध उत्पादन

Diti Bajpai | Jan 21, 2018, 19:56 IST

लखनऊ। अक्सर बच्चों और युवाओं को तो आपने चॉकलेट खाते देखा होगा लेकिन प्रदेश के कुछ जिलों के पशुपालक अपने पशुओं को एक खास तरह की चॉकलेट खिला रहे है। यह चॉकलेट खासकर पशुओं के लिए बनाया गया है जिसे खाकर पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ रहा है।

शाहजहांपुर जिले से लगभग 20 किलोमीटर दूर निगोही ब्लॉक के छतैनी गाँव में रहने वाले कृष्ण कुमार मिश्रा (35 वर्ष) पिछले आठ वर्षों से आधुनिक डेयरी चला रहे है। कृष्ण कुमार अपने पशुओं को चॉकलेट खिलाकर अच्छा दूध उत्पादन कर रहे है। कृष्ण बताते हैं, चॉकलेट खिलाने से पशुओं का पेट तो नहीं भरता है लेकिन पशुओं में जो न्यूट्रीशियन की कमी को पूरा करता है।

आईवीआरआई ने विकसित की है पशुओं के लिए चॉकलेटबरेली के इज्ज़तनगर में स्थित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) द्वारा पशुओं के लिए ये चॉकलेट विकसित की गई थी। इस चॉकलेट को यूरिया मोलासिस मिनिरल ब्लॉक के नाम से जाना जाता है। पशुओं के शरीर में होने वाली खनिज और पोषण तत्वों की पूर्ति के लिए इस चॉकलेट को बनाया गया है। इस चॉकलेट से पशुओं की प्रजनन क्षमता का भी विकास होता है।

आईवीआरआई के न्यूट्रीशियन विभाग के विभागध्यक्ष डॉ. पुतान सिंह बताते हैं,'' इस चॉकलेट को बनाने के लिए गेहूं का चोकर(चावल),खल (सरसो,ज्वार),यूरिया, खनिज लवण (कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक, कॉपर आदि) नमक का प्रयोग किया गया है। वो आगे बताते हैं,''एक वयस्क पशु एक दिन में लगभग 500-600 ग्राम की मात्रा में इसका सेवन करें। इस चॉकलेट को जुगाली करने वाले पशु खा सकते है।

500-600 ग्राम चॉकलेट पशुओं के लिए पर्याप्त बता रहे हैं पशुवैज्ञानिक

कई पशुपालक अपने गाय-भैंसों को गाजर और गन्ना भी चारे में खिलाते हैं। पशुओं की इस चॉकलेट को बनाने के लिए मशीन भी बनाई गई है, जिससे एक दिन में करीब 150 से चॉकलेट बनाई जा सकती है। आईवीआरआई में चॉकलेट बनाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसको सीखकर पशुपालक रोजगार के तौर पर भी अपना सकते हैं। इस चॉकलेट को बनाने के लिए आप सीतापुर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र-2 में भी संपर्क कर सकते है।

आईवीआरआई के सेवानिवृत डॉ. ब्रजलाल इस चॉकलेट के बारे में बताते हैं, ''अगर कोई पशु दीवार और ईंट चाटता है तो यह चॉकलेट उसको रोकती है। ये चॉकलेट हरे चारे की कमी को भी पूरा करता है।'यह पशुओं के पाचन तंत्र को ठीक करता है और दूध उत्पादन को भी बढ़ता है।

नोट: ऊपर जो वीडियों दिखाया गया है वो सीतापुर जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. आनंद सिंह द्वारा मिला है।

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