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डीजल की कमी को दूर करेगा जैव ईंधन

Ashwani Nigam | Oct 30, 2017, 18:49 IST
कृषि विश्वविद्यालय
लखनऊ। देश में परिवहन और घरेलू उपयोग की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल 89 प्रतिशत डीजल और पेट्रोल आयात करना पड़ता है, जिसमें एक तरफ जहां देश का पैसा बड़ी मात्रा में बाहर जाता है वहीं इससे प्रदूषण फैलने के साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है।

ऐसे में आने वाले दिनों में इसमें कमी आएगी क्योंकि गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने करंज के तेल और एथनॉल के मिश्रण से जैव ईंधन बनाने में सफलता प्राप्त की है। इस जैव ईंधन यानि बायोफ्यूल के बारे में जानकारी देते हुए यहां के वैज्ञानिक डॉ. जयंत सिंह ने बताया '' पंत नगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की तरफ से ईजाद किए गए जैविक ईंधन को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय की तरफ से पेटेंट दिया गया है।''

उन्होंने बताया कि गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी कृषि विश्वविद्यालय के फार्म मशीनरी एंड पावर इंजीनियरिंग के विभाग के वीराप्रसाद गोडूगुला, डॉ. टीके भट्टाचार्या और डॉ. एमपी सिंह ने जैव ईंधन को विकसित किया है। इस जैव ईंधन से कोई भी डीजल इंजन चलाया जा सकता है।

इस बारे में डॉ. एमपी सिंह ने बताया '' करंज के तेल के एस्टर और एथनॉल के मिश्रण को डीजल के स्थान पर इस्तेमाल करने पर पाया गया कि इससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी होता है। '' उन्होंने बताया कि यह विश्वविद्यालय के लिए बड़ी उपलब्धि है।

देश में जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिए पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय भी काम कर रहा है। पिछले दिनों इस बारे में जानकारी देते हुए पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि देश में परिवहन तथा घरेलू उपयोग की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए 80 प्रतिशत तेल आयात की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री ने 2022 तक तेल आयातों में 10 प्रतिशत की कमी करने की जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसे में जैव ईंधनों के प्रयोग पर रोड मैप बनाने से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। जैव ईंधनों को बढावा देने से नौकरियां बढ़ेंगी, आर्थिक विकास होगा, किसानों को मदद मिलेगी और देश में ऊर्जा संकट से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी।

उन्होंने बताया कि पूरे देश में दूसरी पीढ़ी के (2जी) जैव ईंधन शोधक कारखानों के अनुसंधान और अभिकल्प के लिए सरकारी कंपनियों की तरफ से लगभग 2 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा रहा है। शहरी और ग्रामीण अवशेष को ईंधन में बदलने की, बेकार बंजर भूमि को 2जी जैविक ईंधन के लिए कच्चे माल की खेती के उपयुक्त बनाने की युक्तियां तलाशी जा रही हैं। धर्मेन्द्र प्रधान ने बताया कि भारत में जैविक ईंधन की क्षमता अगले 1 से 2 वर्ष में 1 लाख करोड़ के आसपास होगी।

परिवहन मंत्रालय भी देश में जैव ईँधन को बढ़ावान देने के लिए काम कर रहा है। इस बारे में एक रिपोर्ट जारी करते हुए सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्रालय ने जैव ईंधन के महत्व पर जोर देते हुए इसे कम खर्चीला, पर्यावरण अनुकूल परंपरागत ईधनों का पर्याय बताया है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जैव ईँधन प्रदूषण को कम करने के अलावा कृषि अवशेष, बांस जैसे पौधों, अखाद्य तेल बीजों से तैयार जैव ईधन से देश के भारी तेल आयात को कम करने में मदद मिलेगी। इससे जहां रोजगार बढेंगे वहीं पूर्वोत्तर और देश की बंजर भूमि सहित ग्रामीण क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था समृद्ध होगी।

जैव ईंधन करेगा डीजन की भरपाई।

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