दोबारा बढ़ सकती है दालों की कीमत, सरकार बढ़ाएगी आयात
गाँव कनेक्शन | Sep 16, 2016, 16:01 IST
दालों की कीमतों में फिर से उबाल आने की आशंका को देखते हुए सरकार इनकाआयातऔर बढ़ा सकती है।
जिंस बाज़ार पर नज़र रखने वाली संस्था मार्केटटाइम्स टीवी संस्था की रिपोर्ट के अनुसार सरकार मसूर काआयातबढ़ाने पर विचार कर रही है और जल्दी ही इसके लिए एमएमटीसी को टेंडर जारी करने के लिए कहा जा सकता है।
महंगाई पर नजर रखने और उसे बढ़ने से रोकने के लिए बनाई गई वित्त, खाद्य, कृषि और वाणिज्य मंत्रालय के सचिवों की कमेटी की 24 नवम्बर मंगलवार को बैठक हुई है और सूत्रों के मुताबिक बैठक में दलहन का आयात बढ़ाने पर फैसला हुआ है, इसके अलावा आयातित दलहन की क्वॉलिटी पर नजर रखने पर भी फैसला किया गया है। बैठक में यह भी फैसला हुआ है कि खाद्य और वाणिज्य सचिव, दलहन के इंपोर्ट के लिए दाल आयातकों और आयात के लिए अधिकृत कंपनियों के साथ अलग से बैठक करेंगे।
दालों की कीमत में बढ़ोतरी का अंदेशा इसलिए भी लगाया जा रहा है क्योंकि देश में रबी सीजन के दौरान दलहन की खेती पिछड़ी हुई दर्ज की गई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 20 नवंबर तक देशभर में 74.06 लाख हेक्टेयर में रबी दलहन की फसल दर्ज की गई है जबकि पिछले साल इस दौरान 77.42 लाख हेक्टेयर में खेती हो गई थी।
जिंस बाज़ार पर नज़र रखने वाली संस्था मार्केटटाइम्स टीवी संस्था की रिपोर्ट के अनुसार सरकार मसूर काआयातबढ़ाने पर विचार कर रही है और जल्दी ही इसके लिए एमएमटीसी को टेंडर जारी करने के लिए कहा जा सकता है।
महंगाई पर नजर रखने और उसे बढ़ने से रोकने के लिए बनाई गई वित्त, खाद्य, कृषि और वाणिज्य मंत्रालय के सचिवों की कमेटी की 24 नवम्बर मंगलवार को बैठक हुई है और सूत्रों के मुताबिक बैठक में दलहन का आयात बढ़ाने पर फैसला हुआ है, इसके अलावा आयातित दलहन की क्वॉलिटी पर नजर रखने पर भी फैसला किया गया है। बैठक में यह भी फैसला हुआ है कि खाद्य और वाणिज्य सचिव, दलहन के इंपोर्ट के लिए दाल आयातकों और आयात के लिए अधिकृत कंपनियों के साथ अलग से बैठक करेंगे।
दालों की कीमत में बढ़ोतरी का अंदेशा इसलिए भी लगाया जा रहा है क्योंकि देश में रबी सीजन के दौरान दलहन की खेती पिछड़ी हुई दर्ज की गई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 20 नवंबर तक देशभर में 74.06 लाख हेक्टेयर में रबी दलहन की फसल दर्ज की गई है जबकि पिछले साल इस दौरान 77.42 लाख हेक्टेयर में खेती हो गई थी।