केले से बने उत्पादों की बढ़ती मांग से बढ़ी केले की व्यवसायिक खेती

Devanshu Mani Tiwari | Dec 04, 2017, 15:23 IST



बाज़ार में केले से बने एफएमसीजी उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण किसानों का केले की व्यवसायिक खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है। किसानों को केले की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उद्यान विभाग टिश्यु कल्चर विधि से सस्ती पौध उपलब्ध करा रहा है।

किसानों में केले की व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा दी जा रही मदद के बारे में डॉ. राघवेंद्र प्रताप सिंह संयुक्त कृषि निदेशक (खाद्य प्रसंस्करण) बताते हैं,'' बीते कुछ वर्षों से केले व्दारा निर्मित उत्पादों (केला चिप्स, केला पल्प और केला शेक) की मांग तेज़ी से बढ़ी है। हमें प्रदेश के सभी जनपदों से केले की खेती के लिए आवेदन मिल रहे हैं। विभाग केले की खेती के लिए किसानों को दो वर्षीय अनुदान भी दे रहा है।''

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एफएमसीजी गुड्स (रोज़ाना तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद) के व्यापार व वितरण पर काम कर रही संस्था नीलसन की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्वास्थ्य खाद्य पदार्थों के बढ़ते बाज़ार से 10,000 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा इसलिए संभव हुआ है क्योंकि भारत में अधिकतर लोग अब नाश्ते में पराठे, ब्रेड और दूध की जगह ओट्स, फल, भुने हुए गाजर व खीरे के चिप्स, करेले व केले के चिप्स और जूस लेना पसंद कर रहे हैं।



बाराबंकी जिले के किसान अनूप पांडे (50 वर्ष) टिश्यू कल्चर विधि की मदद से केले की उन्नत खेती कर रहे हैं। क्षेत्र के बाकी किसानों से अलग हट कर अनूप नंदपुर गाँव में आठ एकड़ क्षेत्र में इस आधुनिक तकनीक की मदद से केले की खेती कर रहे हैं।

केले की खेती कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 4.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में केले की खेती होती है,जिससे 180 लाख टन केले का उत्पादन प्राप्त होता है। तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक केले का उत्पादन होता है। उत्तर प्रदेश में अभी सालाना 9,14,360 मीट्रिक टन केले का उत्पादन होता है। यह उत्पादन दोगुना हो इसके लिए विभाग की तरफ से 23 जिलों के 1500 हेक्टेयर में टिश्यू कल्चर विधि से केला उत्पादन की योजना बनाई जा रही है। इसके तहत किसानों को उनकी कुल लागत पर 40 प्रतिशत की सब्सिडी भी दी जाएगी।

बाराबंकी जिले से उत्तर-पश्चिम दिशा में लगभग 40 किलोमीटर दूर निंदूरा ब्लॉक के नन्दपुर गाँव के अनूप पांडे बताते हैं, ''हम केले में ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करते हैं। ड्रिप सिंचाई की वजह से केला जल्द बढ़ता है। इससे खेती में सिंचाई, उर्वरक देने, खरपतवार हटाने जैसे कम खत्म हो गए हैं और मजदूरों का खर्च भी बचा है।''

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के अनुसार उत्तर प्रदेश की जलवायु को देखते हुए ग्रैन्ड नाइन (जी-9) प्रजाति के केले के पौधों को टिश्यू कल्चर से लैब में तैयार किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की श्रेष्ठ और देश के हर कोने में पाई जाने वाली यह प्रजाति उत्पादन और निर्यात के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इस प्रजाति के पौधे छोटे और मजबूत होते हैं, इसलिए इस केले को भून कर चिप्स बनाने में भी बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

''प्रदेश में केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग, राष्ट्रीय कृषि विभाग योजना के तहत किसानों को टिश्यू कल्चर विधि से केले की खेती करने की ट्रेनिंग मुहैया करवा रहा है।इसके लिए पात्र किसान को विभाग की तरफ से प्रथम वर्ष 30,700 रुपए और दूसरे वर्ष 10,200 रुपए का कृषि अनुदान दिया जाता है।'' डॉ. राघवेंद्र प्रताप सिंह संयुक्त कृषि निदेशक (खाद्य प्रसंस्करण) आगे बताते हैं।

किसानों को केले की खेती करने के लिए बढ़ावा देने के लिए उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग समेकित बागवानी विकास मिशन योजना चला रहा है। इस योजना के तहत विभाग मुरादाबाद, सीतापुर, उन्नाव, लखनऊ, रायबरेली, कानपुर नगर, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, इलाहाबाद, बाराबंकी, सुल्तानपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीर नगर, महराजगंज, कुशीनगर, बलिया, वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, मिर्जापुर, फैजाबाद और गोरखपुर जिलों में टिश्यू कल्चर क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम चला रहा है।

संबंधित ख़बरें



ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Tags:
  • Banana farming
  • कृषि मंत्रालय
  • horticulturte department lucknow
  • banana production
  • FMCG
  • samachar हिंदी समाचार
  • hindi samahcar
  • banana cultivation
  • Luckow