हल्की सिंचाई कर सरसों व राई की करें बुवाई

Ram Singh | Oct 04, 2017, 14:20 IST

स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

शाहजहांपुर। अक्टूबर का माह शुरू हो गया है, पिछले सप्ताह की बारिश ने काफी नुकसान किया था, लेकिन साथ ही कुछ फायदा भी किसानों को हुआ। आजकल सरसों की बुवाई का समय आ गया है क्योंकि खेतों में पलेवा (सिंचाई) का काम तो बारिश ने कर दिया था, इसलिए अब बिना पलेवा के जुताई करके सरसों व राई की बुवाई की जा सकती है।

राजनपुर गाँव के निवासी रामाधार (36 वर्ष) बताते हैं, “सरसों के हरे पौधों का प्रयोग जानवरों के हरे चारे के रूप में भी किया जा सकता है। साथ ही पशु आहार के रूप में बीज, तेल, एवं खली को काम में ले सकते हैं क्योंकि इनका प्रभाव शीतल होता है जिससे यें कई रोगों की रोकथाम में सहायक सिद्ध होते हैं।’ सरसों की खली में लगभग चार से नौ प्रतिशत नाइट्रोजन 2.5 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 1.5 प्रतिशत पोटाश होता है।

कई बार इसका उपयोग खाद की तरह भी किया जाता है। सरसों के बीज में तेल की मात्रा 30 से 48 प्रतिशत तक पायी जाती है। सरसों प्रमुख तिलहनी फसल है जिससे तेल प्राप्त होता है। सरसों का तेल खाने में मुख्य रूप से प्रयोग होता है इसके अलावा इसका प्रयोग साबुन बनाने, ग्रीस बनाने तथा फल एंव सब्जियों के परीरंक्षण में भी किया जाता है। भारत में सरसों की खेती शरद ऋतु में की जाती है तथा इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है।

सरसों की कई उन्नत किस्में

आरएच 30

सिंचित व असिंचित दोनों ही स्थितियों में गेहूं, चना व जौ के साथ खेती के लिए उपयुक्त है, इस किस्म के पौधे 196 सेमी ऊंचे व 5 से 6 प्राथमिक शाखाओं वाले होती हैं। इसमें 45 से 50 दिन में फूल आने लगते हैं और फसल 130 से 135 दिन में पक जाती है।

वरुणा

मध्यम कद वाली इस किस्म की पकाव अवधि 125 से 140 दिन फलिया चौड़ी छोटी एवं दाने मोटे काले रंग के होते हैं। इसमें तेल की मात्रा 36 प्रतिषत होती है।

पूसा बोल्ड

यह किस्म 130 से 140 दिन में पककर 20 से 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है और तेल की मात्रा 37 से 38 प्रतिशत तक पायी जाती है।

बायो 902

160 से 180 सेमी ऊंची इस किस्म में सफेद रोली, मुरझान व तुलासितस रोगों का प्रकोप अन्य किस्मों की अपेक्षा कम होता है। इसकी उपज 18 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर और पकाव अवधि 130 से 140 दिन एवं तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत होती है। इसके तेल में असंतृप्प्त वसीय अल कम होते है, इसलिए इसका तेल खाने के लिए उपयुक्त होता है।

खेत की तैयारी

सरसों के लिए भुरभुरी मृदा की आवश्यकता होती है। इसे लिए खरीफ की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए और इसके बाद तीन चार बार देशी हल से जुताई करना करना चाहिए। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार करना होगा।

सरसों की बुवाई

उपयुक्त तापमान 25 से 26 सैल्सियस तक रहता है। सरसों की बुवाई 15 अक्टूबर तक, कतार से कतार की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी के हिसाब से करनी चाहिए। बुवाई के लिए शुष्क क्षेत्र में चार से पांच किग्रा और सिंचित क्षेत्र में 2.5 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है।

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