आलू सरसों समेत कई फसलों के लिए काल है ये कोहरा और शीत लहर, ऐसे करें बचाव

Divendra Singh | Dec 27, 2017, 17:36 IST
रबी फसलों की बुवाई
दिसम्बर से जनवरी महीने के बीच आलू, मटर और सरसो जैसी रबी की फसलों को झुलसा रोग से सबसे अधिक नुकसान होने की संभावना रहती है। इस समय सही तकनीक अपनाकर किसान फसलों को बचा सकते हैं।
इस समय ज्यादातर किसानों ने रबी फसलों की बुवाई की कर ली है, दिसंबर के महीने में कोहरा और सर्दी बढ़ने से फसलों में पाला और शीत लहर की समस्या बढ़ जाती है। इस समय फसलों को ज्यादा नुकसान हो जाता है।

टमाटर, आलू, मिर्च, बैंगन, भिन्डी आदि सब्जियों, पपीता, आम एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, जीरा, धनिया, सौंफ अफीम आदि फसलों में सबसे ज्यादा 80 से 90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। अरहर में 70 प्रतिशत, गन्ने में 50 प्रतिशत एवं गेहूं तथा जौ में 10 से 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

कृषि विज्ञान केन्द्र अंबेडकर नगर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रवि प्रकाश मौर्या बताते हैं, "आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग लगने की सम्भावना ज्यादा रहती है। जिन्होंने फफूंदनाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है या जिन खेतों में झुलसा बीमारी नहीं हुई है, उन सभी को सलाह है कि मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानि दो किग्रा. दवा 1000 लीटर पानी में एक हेक्टेयर के हिसाब छिड़काव करें।

इस समय बढ़ गया है कोहरे का प्रकोप पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते है। एवं बाद में झड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते है। उनमें झुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कलिया गिर जाते है। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते है। दाने कम भार के एवं पतले हो जाते है रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां/ फलियां आने व उनके विकसित होते समय पाला पडऩे की सर्वाधिक संभावनाएं रहती है। अत: इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिये। पाला पडऩे के लक्षण सर्वप्रथम आक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते है। पाले का पौधों पर प्रभाव शीतकाल में अधिक होता है।

केंद्रीय कृषि सहकारिता एवं कल्याण विभाग की वेबसाइट के अनुसार देशभर में गेहूं की बुवाई 190.87 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। चने की बुवाई अब तक 89.59 लाख हेक्टेयर में हुई है। रबी दलहनों का रकबा 127.62 लाख हेक्टेयर पहुंच चुका है। रबी तिलहनों का रकबा 67.79 लाख हेक्टेयर है।

जब तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे गिर जाता है तथा हवा रूक जाती है, तो रात्रि को पाला पड़ने की संभावना रहती है। वैसे साधारणत: पाला गिरने का अनुमान इनके वातावरण से लगाया जा सकता है। सर्दी के दिनों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे और हवा का तापमान जमाव बिन्दु से नीचे गिर जाए। दोपहर बाद अचानक हवा चलना बन्द हो जाये तथा आसमान साफ रहे, या उस दिन आधी रात से ही हवा रूक जाये, तो पाला पडऩे की संभावना अधिक रहती है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे प्रहर में पाला पडऩे की संभावना रहती है। साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाये, यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु यही इसी बीच हवा चलना रूक जाये तथा आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है।

ऐसे करें शीत लहर और पाले से फसलों की सुरक्षा

हल्की सिंचाई कर बचा सकते हैं फसल

जब भी पाला पड़ने की सम्भावना हो या मौसम पूर्वानुमान विभाग से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई दे देनी चाहिए। जिससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है सिंचाई करने से 0.5-2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान मे बढ़ोतरी हो जाती हैं ।

नर्सरी को ढ़क से प्लास्टिक के चादर से

पाले से सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढ़कने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2.3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। जिससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता और पौधे पाले से बच जाते हैं। पॉलीथीन की जगह पर पुआल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण पूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे।

खेत में धुंआ करके भी बचा सकते हैं फसल

अपनी फसल को पाले से बचाने के लिए आप अपने खेत में धुंआ पैदा कर दें, जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता और पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।

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ऐसे करें रसायनिक बचाव

डॉ. रवि प्रकाश मौर्या उपचार के बारे में बताते हैं, "अभी जिस में खेत में झुलसा रोग दिखायी दे उसमें साइमोक्सेनिल/मैंकोजेब या फेनामिडोन/मैंकोजेब तीन किग्रा 1000 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।"

ऐसे बचा सकते हैं फसलों को

फसलों को बचाने के लिए खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, और जामुन आदि लगा दिए जाए तो पाले और ठण्डी हवा के झोंको से फसल का बचाव हो सकता है।

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