बिना मिट्टी के उगाए 700 टन फल और सब्ज़ियां, कमाया 30 लाख रुपये से ज़्यादा मुनाफा
गाँव कनेक्शन | Oct 22, 2017, 19:58 IST
लखनऊ। आजकल भारत में जितनी भी फसल उगाई जा रही है उसमें से ज़्यादातर फसलों में किसान कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं जो सेहत के लिए सही नहीं होता। 1960 के दशक में हरित क्रांति आने के बाद भारत में कीटनाशकों का उपयोग बढ़ा। हालांकि इससे कृषि उपज में काफी बढ़ोत्तरी हुई लेकिन इसका एक दुष्प्रभाव यह हुआ कि देश के लोग कीटनाशक मिला हुआ ज़हरीला खाना खाने पर मज़बूर हो गए लेकिन जैसे - जैसे लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है वैसे - वैसे लोग इसके विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।
इस दिशा में आगे बढ़ते हुए दिल्ली के चार युवाओं ने मिलकर हाइड्रोपोनिक्स विधि से जैविक खेती करना शुरू किया है। हाइड्रोपोनिक्स विधि में बिना मिट्टी के पानी में खेती की जाती है। इसमें खास बात यह भी है कि परंपरागत खेती की तुलना में इस विधि से खेती करने में पानी भी कम लगता है। कुछ मामलों में तो इसमें लगभग 90 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। जिन क्षेत्रों में पानी की कमी होती है उनमें इस विधि से खेती करना फायदे का सौदा हो सकता है।
चार दोस्तों दीपक कुकरेजा, ध्रुव खन्ना, उल्लास सम्राट और देवांशु शिवानी ने मिलकर 2014 में शहरी खेती के क्षेत्र में ट्राइटन फूडवर्क्स की शुरुआत की थी। साल 2014 की शुरुआत में उल्लास अपनी मोहाली में खेती करने के तरीके खोज रहे थे। ये काम वो अपनी मां के लिए कर रहे थे जिन्हें फेफड़ों का संक्रमण था। जब डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि फार्महाउस में रहना या धूल भरे क्षेत्र के पास रहने से उनकी मां को खतरा हो सकता है, ये जानने के बाद उल्लास ने स्वच्छ तरीके से बिना धूल वाली खेती करने का रास्ता खोजना शुरू किया।
उस वक्त ध्रुव सिंगापुर में थे और वहां अपने टेक स्टार्टअप पर काम कर रहे थे लेकिन वह भारत आकर काम करने के लिए भी संभावनाएं ढूंढ रहे थे। एक बार दोनों दोस्तों ने आपस में बात की कि कितना अच्छा होता अगर हम साथ मिलकर कोई बिजनेस शुरू कर पाते, खासकर कुछ ऐसा जो आर्थिक और पारिस्थितिक दोनों तरीकों से फायदेमंद हो।
काफी खोज करने के बाद दोनों ने हाइड्रोपोनिक्स को चुना जिससे दोनों को फायदा हो। ध्रुव सिंगापुर के कुछ हाइड्रोपोनिक्स खेतों में गए ताकि इसके बारे में बारीकी से समझ सकें। हाइड्रोपोनिक्स के बारे में खोज करते वक्त उल्लास इंटरनेट पर दीपक से मिले। इसके बाद तीनों की टीम को यह अहसास हुआ कि इस पर काम करने के लिए और इसे बड़ा बनाने के लिए एक वित्तीय कामों की समझ रखने वाले बंदे की ज़रूरत है और फिर इस टीम में देवांशु को शामिल किया गया।
ध्रुव बताते हैं कि हम दोस्त खाद्य और कृषि के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे। हम इस बात से बहुत एक्साइटेड थे कि हम शहर में छतों पर खेती कर सकते हैं। इसके लिए हमने दिल्ली के सैनिक फार्म में स्ट्रॉबेरी उगाने के बारे में सोचा। हमने 500 स्कवॉयर मीटर क्षेत्र में एक टॉवर पर आठ टन स्ट्रॉबेरी उगाईं।
किसी भी दूसरे स्टार्टअप की तरह ट्राइटन फूडवर्क्स को भी शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने सैनिक फार्म में उनके फार्म को उजाड़ किया क्योंकि उन्होंने ग्रीन हाउस बनाने के लिए रिश्वत देने से मना कर दिया था। ध्रुव बताते हैं कि इसके बाद हमने दिल्ली के रोहिणी में अपना फार्म बनाया। वह बताते हैं कि हम पूरी खेती पॉली हाउस में करते हैं।
ध्रुव बताते हैं कि आजकल के समय में हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है विषाक्त खाना जो हम खाते हैं। और हम इसे ही हल करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते कि सिर्फ विषाक्त खाने से ही उन्हें कितनी बीमारियां हो सकती हैं। हम अपने पौधों में रसायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते। इसके अलावा हमें ये भी नहीं पता होता कि हमारा खाना कहां से आया है। जब हम चिप्स खरीदते हैं और उसके पैकेट के पीछे लिखे बार कोड को ट्रेस करते हैं तो पता चल जाता है कि उसमें इस्तेमाल किए गए आलू किस खेत के हैं लेकिन जब आप सब्ज़ी वाले से टमाटर खरीदते हैं तो आपको इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं होता कि उस टमाटर को कहां उगाया गया है, कब उगाया गया है और उसकी खेती में क्या - क्या इस्तेमाल किया गया है। हम चाहते हैं कि लोग इस बारे में भी सवाल करना सीखें और इसके लिए हमने शुरुआत कर दी है।
ट्राइटन फूडवर्क्स की टीम फसल में रासायनिक कीटनाशकों की जगह आयुर्वेदिक तरीके से तैयार किए गए कीटनाशकों का इस्तेमाल करती है। टीम ने पारंपरिक खेती के बराबर फसल उसकी तुलना में आठवें हिस्से में व 80 प्रतिशत से भी कम पानी में उगाई। अब ये टीम भारत के तीन शहरों में 5 एकड़ क्षेत्र में हाइड्रोपोनिक्स खेती कर रही है।
महाबलेश्वर में ये टीम एक साल में 20 टन स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करती है , इसके अलावा महाराष्ट्र के वाडा ज़िले में 1.25 एकड़ के क्षेत्र में 400 टन टमाटरों का उत्पादन होता है, 150 टन खीरा वह 400 बंडल पालक व 700 से ज़्यादा गुच्छे मिंट पैदा होता है। इसके अलावा श्रीवाल, पुणे में भी फार्म्स हैं साथ ही टीम बंगलुरू, हैदराबाद और मानेसर की कुछ ऐसी कंपनियां जो हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती करते हैं, उन्हें सलाह भी देती है।
फिलहाल ट्राइटन के पास देशभर में 200,000 स्क्वॉयर फीट से ज़्यादा क्षेत्र है जिसमें वे हाइड्रोपोनिक खेती करते हैं और इस विधि से टीम हर साल 700 टन से ज्य़ादा फलों और सब्जियों का उत्पादन करती है। ध्रुव बताते हैं कि इस विधि से खेती करने में एक एकड में लगभग 90 लाख से 1 करोड़ तक का खर्च आता है। पूरी लागत निकालने के बाद हम साल में लगभग 30 से 35 लाख रुपये की बचत कर लेते हैं। वह बताते हैं कि आगे हमारी टीम मुंबई और पुणे की किसान बाज़ार में स्टाल लगाने के बारे में भी सोच रही है।
इस दिशा में आगे बढ़ते हुए दिल्ली के चार युवाओं ने मिलकर हाइड्रोपोनिक्स विधि से जैविक खेती करना शुरू किया है। हाइड्रोपोनिक्स विधि में बिना मिट्टी के पानी में खेती की जाती है। इसमें खास बात यह भी है कि परंपरागत खेती की तुलना में इस विधि से खेती करने में पानी भी कम लगता है। कुछ मामलों में तो इसमें लगभग 90 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। जिन क्षेत्रों में पानी की कमी होती है उनमें इस विधि से खेती करना फायदे का सौदा हो सकता है।
चार दोस्तों दीपक कुकरेजा, ध्रुव खन्ना, उल्लास सम्राट और देवांशु शिवानी ने मिलकर 2014 में शहरी खेती के क्षेत्र में ट्राइटन फूडवर्क्स की शुरुआत की थी। साल 2014 की शुरुआत में उल्लास अपनी मोहाली में खेती करने के तरीके खोज रहे थे। ये काम वो अपनी मां के लिए कर रहे थे जिन्हें फेफड़ों का संक्रमण था। जब डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि फार्महाउस में रहना या धूल भरे क्षेत्र के पास रहने से उनकी मां को खतरा हो सकता है, ये जानने के बाद उल्लास ने स्वच्छ तरीके से बिना धूल वाली खेती करने का रास्ता खोजना शुरू किया।
उस वक्त ध्रुव सिंगापुर में थे और वहां अपने टेक स्टार्टअप पर काम कर रहे थे लेकिन वह भारत आकर काम करने के लिए भी संभावनाएं ढूंढ रहे थे। एक बार दोनों दोस्तों ने आपस में बात की कि कितना अच्छा होता अगर हम साथ मिलकर कोई बिजनेस शुरू कर पाते, खासकर कुछ ऐसा जो आर्थिक और पारिस्थितिक दोनों तरीकों से फायदेमंद हो।
काफी खोज करने के बाद दोनों ने हाइड्रोपोनिक्स को चुना जिससे दोनों को फायदा हो। ध्रुव सिंगापुर के कुछ हाइड्रोपोनिक्स खेतों में गए ताकि इसके बारे में बारीकी से समझ सकें। हाइड्रोपोनिक्स के बारे में खोज करते वक्त उल्लास इंटरनेट पर दीपक से मिले। इसके बाद तीनों की टीम को यह अहसास हुआ कि इस पर काम करने के लिए और इसे बड़ा बनाने के लिए एक वित्तीय कामों की समझ रखने वाले बंदे की ज़रूरत है और फिर इस टीम में देवांशु को शामिल किया गया।
ध्रुव बताते हैं कि हम दोस्त खाद्य और कृषि के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे। हम इस बात से बहुत एक्साइटेड थे कि हम शहर में छतों पर खेती कर सकते हैं। इसके लिए हमने दिल्ली के सैनिक फार्म में स्ट्रॉबेरी उगाने के बारे में सोचा। हमने 500 स्कवॉयर मीटर क्षेत्र में एक टॉवर पर आठ टन स्ट्रॉबेरी उगाईं।
किसी भी दूसरे स्टार्टअप की तरह ट्राइटन फूडवर्क्स को भी शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने सैनिक फार्म में उनके फार्म को उजाड़ किया क्योंकि उन्होंने ग्रीन हाउस बनाने के लिए रिश्वत देने से मना कर दिया था। ध्रुव बताते हैं कि इसके बाद हमने दिल्ली के रोहिणी में अपना फार्म बनाया। वह बताते हैं कि हम पूरी खेती पॉली हाउस में करते हैं।
ध्रुव बताते हैं कि आजकल के समय में हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या है विषाक्त खाना जो हम खाते हैं। और हम इसे ही हल करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते कि सिर्फ विषाक्त खाने से ही उन्हें कितनी बीमारियां हो सकती हैं। हम अपने पौधों में रसायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते। इसके अलावा हमें ये भी नहीं पता होता कि हमारा खाना कहां से आया है। जब हम चिप्स खरीदते हैं और उसके पैकेट के पीछे लिखे बार कोड को ट्रेस करते हैं तो पता चल जाता है कि उसमें इस्तेमाल किए गए आलू किस खेत के हैं लेकिन जब आप सब्ज़ी वाले से टमाटर खरीदते हैं तो आपको इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं होता कि उस टमाटर को कहां उगाया गया है, कब उगाया गया है और उसकी खेती में क्या - क्या इस्तेमाल किया गया है। हम चाहते हैं कि लोग इस बारे में भी सवाल करना सीखें और इसके लिए हमने शुरुआत कर दी है।
ट्राइटन फूडवर्क्स की टीम फसल में रासायनिक कीटनाशकों की जगह आयुर्वेदिक तरीके से तैयार किए गए कीटनाशकों का इस्तेमाल करती है। टीम ने पारंपरिक खेती के बराबर फसल उसकी तुलना में आठवें हिस्से में व 80 प्रतिशत से भी कम पानी में उगाई। अब ये टीम भारत के तीन शहरों में 5 एकड़ क्षेत्र में हाइड्रोपोनिक्स खेती कर रही है।
महाबलेश्वर में ये टीम एक साल में 20 टन स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करती है , इसके अलावा महाराष्ट्र के वाडा ज़िले में 1.25 एकड़ के क्षेत्र में 400 टन टमाटरों का उत्पादन होता है, 150 टन खीरा वह 400 बंडल पालक व 700 से ज़्यादा गुच्छे मिंट पैदा होता है। इसके अलावा श्रीवाल, पुणे में भी फार्म्स हैं साथ ही टीम बंगलुरू, हैदराबाद और मानेसर की कुछ ऐसी कंपनियां जो हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती करते हैं, उन्हें सलाह भी देती है।
फिलहाल ट्राइटन के पास देशभर में 200,000 स्क्वॉयर फीट से ज़्यादा क्षेत्र है जिसमें वे हाइड्रोपोनिक खेती करते हैं और इस विधि से टीम हर साल 700 टन से ज्य़ादा फलों और सब्जियों का उत्पादन करती है। ध्रुव बताते हैं कि इस विधि से खेती करने में एक एकड में लगभग 90 लाख से 1 करोड़ तक का खर्च आता है। पूरी लागत निकालने के बाद हम साल में लगभग 30 से 35 लाख रुपये की बचत कर लेते हैं। वह बताते हैं कि आगे हमारी टीम मुंबई और पुणे की किसान बाज़ार में स्टाल लगाने के बारे में भी सोच रही है।