मधुमक्खी पालन का गढ़ बन रहा मुरैना

Divendra Singh | Jan 22, 2021, 11:09 IST
सरसों की खेती के लिए मशहूर चंबल का मुरैना जिला मधुमक्खी पालन का गढ़ बना रहा है, कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से यहां के किसानों ने खेती के साथ मधुमक्खी पालन भी शुरू कर दिया है।
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मध्य प्रदेश के मुरैना में कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा मिला है, सरसों की खेती होने से यहां दूसरे राज्यों से भी मधुमक्खी पालक आते हैं।

मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले के गंगापुर सिकरोदा गाँव के रहने वाले गजेंद्र सिंह (45) साल 2006 से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। दस बॉक्स से मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने वाले गजेंद्र सिंह के पास इस समय 100 से अधिक मधुमक्खियों के बॉक्स हैं। गजेंद्र की तरह मुरैना में सैकड़ों किसानों ने मधुमक्खी पालन को बेहतर आमदनी का जरिया बना लिया है।

गजेंद्र सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "हमारे जिले में सरसों की अच्छी खासी खेती होती है, साल 2007 में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने सबसे पहले मधुमक्खी पालन के बारे में बताया कि खेती के साथ मधुमक्खी पालन भी कर सकते हैं। उसी साल मैंने दस बॉक्स के साथ मधुमक्खी पालन शुरु किया। कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से कई कार्यशालाएं भी हुईं, जिसकी वजह से दूसरे किसान भी मधुमक्खी पालन की तरफ आए।"

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मुरैना जिले में अधिक मात्रा में सरसों की खेती होने के कारण इस समय मुरैना के मधुमक्खी पालकों के साथ ही दूसरे राज्यों के मधुमक्खी पालक आ जाते हैं। फोटो: कृषि विज्ञान केंद्र

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के एक बड़े क्षेत्रफल में रबी सीज़न में सरसों की खेती होती है, इसलिए यहां बिहार, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के मधुमक्खी पालक साल में दो-तीन महीनों के लिए यहां आते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, मुरैना के प्रधान वैज्ञानिक व प्रमुख डॉ. सत्येंद्र पाल सिंह बताते हैं, "शुरू में जब यहां दूसरे प्रदेशों से मधुमक्खी पालक आते तो किसानों को लगता कि मधुमक्खियों की वजह से उनका सरसों का उत्पादन घट जाएगा। धीरे-धीरे किसानों को समझाया गया कि मधुमक्खियों से सरसों उत्पादन घटता नहीं बल्कि बढ़ जाता है।"

"साल 2006-2007 में दस किसानों से शुरुआत हुई, लेकिन अब 6,000 से ज्यादा किसान एक लाख से अधिक बॉक्स में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। अभी भी दूसरे प्रदेशों के मधुमक्खी पालक यहां पर आते हैं और जब यहां पर सरसों की खेती खत्म हो जाती है, तो यहां के मधुमक्खी पालक दूसरे जिलों में जाते हैं। मधुमक्खी पालन से यहां साल में लगभग 30 करोड़ रुपए का बिजनेस हो जाता है," उन्होंने आगे बताया।

अम्बाह ब्लॉक के मिरघान गाँव के बेनीराम कुशवाहा (42) भी मधुमक्खी पालन करते हैं। साल 2007 में कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर उन्होंने भी दो बॉक्स से मधुमक्खी पालन की शुरुआत की, आज वो 500 से ज्यादा बॉक्स में मधुमक्खी पालन करते हैं।

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दो बक्सों से मधुमक्खी पालन की शुरूआत करने वाले बेनीराम कुशवाहा इस समय 500 बक्सों में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं।

"मैं भी दूसरे किसानों की तरह बटाई पर खेत लेकर ज्वार, तिल, अरहर, सरसों, चना जैसी फसलों की खेती करता था, मेहनत भी लगती लेकिन उतनी आमदनी नहीं होती। कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से पहले मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग लेकर दो बॉक्स में मधुमक्खी पालन की शुरुआत की, धीरे-धीरे जब आमदनी बढ़ने लगी तो बक्से भी बढ़ते गए। इस समय मधुमक्खी पालन से लगभग 15 लाख की कमाई हो जाती है," बेनीराम ने बताया।

बाजार में शहद की कीमत 300 रुपए किलो से ज्यादा होती है, लेकिन किसानों को शहद का 80 से 100 रुपए किलो ही मिलता है। किसानों को उनके उत्पादन का सही दाम मिले इसलिए यहां पर फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) की मदद से किसानों को बाजार उपलब्ध कराने की पहल भी शुरू की गई है।

मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, मुरैना को महिंद्रा कृषि समृद्धि अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है।

भारत ने साल 2019-20 में संयुक्त राज्य, अमरीका, सउदी अरब, कनाडा जैसे देशों में 633.82 करोड़ रुपए मूल्य का 59,536.75 मीट्रिक टन प्राकृतिक शहद निर्यात किया।

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रबी की फसल में सरसों की खेती के बाद यहां के किसान भी दूसरे जिलों में मधुमक्खियों की कॉलोनियों को ले जाते हैं। डॉ. सत्येंद्र पाल सिंह बताते हैं, "दो-ढ़ाई महीने तक सरसों की फसल मुरैना में रहती है, मुरैना जिले में एक लाख 53 हजार हेक्टेयर में सरसों की खेती होती है। इसके बाद बरसीम की फसल आ जाती है, जिससे अप्रैल से मई तक बरसीम से मधुमक्खियों को फ्लोरा मिल जाता है। इसके बाद जून-जुलाई में थोड़ी समस्या होती है, तो किसान गुना जिले में जहां पर धनिया की खेती होती है, वहां पर अपनी कॉलोनियां लेकर चले जाते हैं।"

इस समय कृषि विज्ञान केंद्र पर मुरैना ही मध्य प्रदेश के दूसरे जिलों के साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों से किसान मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेने आते हैं।

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