जलकुंभी के कचरे से तैयार ये साड़ी कई वजह से है ख़ास
Ambika Tripathi | Oct 04, 2023, 10:35 IST
ये कोई आम साड़ी नहीं है। नदियों और तालाबों में जिस जलकुंभी को निकाल फेंकना किसी झंझट से कम नहीं होता उससे ही झारखंड के जमशेदपुर में एक इंजीनियर साड़ियाँ तैयार कर रहे हैं। तालाबों की सफाई के साथ जलकुंभी से साड़ी बनाने की उनकी मुहिम ने कई महिलाओं को रोज़गार दे दिया है।
"हम तालाब और नदियों की सफ़ाई का काम करते हैं, जब हमने देखा कि नदियों में छह से सात महीनों तक जलकुंभी लगी होती है कोई भी उसके उपाय पर काम नहीं करता है तो उसके इस्तेमाल का आइडिया आया।" कभी पेशे से इंजीनियर रहे जमशेदपुर के गौरव आनंद ने गाँव कनेक्शन से कहा।
वो आगे कहते हैं, "हमने देखा कि इसमें फाइबर होता है, सोचा इससे क्या तैयार कर सकते हैं? पहले हमने इससे पेपर बनाने की शुरुआत की फिर कपड़े और अब साड़ियाँ भी बनाने लगे हैं।"
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 126 किलोमीटर दूर जमशेदपुर में अब गौरव के लिए ये एक मुहिम की तरह है सफ़ाई और बुनाई।
तालाब, झील, पोखर, नदियों में बेतरतीब तरीके से बढ़ने वाली जलकुंभी से सुंदर साड़ियाँ भी बन सकती हैं ये जब गौरव आनंद ने लोगों से कहा तो कई लोगों को यकीन ही नहीं हुआ।
"जलकुंभी को पानी से निकालकर हम उसकी पत्तियों और जड़ों को अलग करते हैं। सभी को अलग करने के बाद जो बीच का तना बचता है, उससे रेशे निकाल कर धागे बनाए जाते हैं।" गौरव बताते हैं।
इन धागों को पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जगहों पर भेजा जाता है, जहाँ पर महिलाएँ इनसे साड़ियाँ बनाती हैं।
गौरव आनंद ने पर्यावरण इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। 17 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने साल 2022 में नौकरी छोड़ दी, अब पूरी तरह से इस मुहिम में लग गए हैं।
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वो कहते हैं, "बीटेक की डिग्री लेने के बाद 17 साल टाटा स्टील में नौकरी की, साथ में नदियों की सफ़ाई का भी काम करता रहा, लेकिन पिछले साल नौकरी छोड़कर अब इसी में जुट गए हैं।"
गौरव ‘स्वच्छता पुकारे’ नाम की एक संस्था भी चलाते हैं। अपनी संस्था से जुड़े अभियान के तहत वह नदियों की सफाई का काम करते रहते हैं। गौरव और उनकी टीम अब तक 30 शहरों में नदियों की सफ़ाई कर चुकी है। उनकी संस्था से 40 हज़ार वालंटियर भी जुड़े हुए हैं।
36 साल के कौशिक मंडल भी टेलीकाम कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करते थे, साल 2019 में नौकरी छोड़ पूरी तरह से स्वच्छता पुकारे टीम में शामिल हो गए। कौशिक गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "सोशल मीडिया पर मैंने पहली बार गौरव की एक पोस्ट देखी थी, जिसमें जलकुंभी से साड़ी बनाने के बारे में बताया गया था। मैंने उनसे संपर्क किया तो बहुत अच्छा लगा, फिर क्या मैं भी जॉब छोड़कर इनके साथ ही काम करने लगा।"
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अभी गौरव की टीम में 600 से ज़्यादा लोग जुड़े हुए हैं, जो जलकुंभी से लैंपशेड, नोटबुक जैसे सामान बनाते हैं। इनमें 200 महिलाएँ साड़ी बनाने का काम करती हैं। हर किसी का अलग-अलग काम होता है। कोई जलकुंभी निकालता है, कोई इनसे तने अलग करता है, रेशे निकालने की टीम अलग होती है।
गौरव आगे बताते हैं, "हम दूसरी जगह भी अब जा रहे हैं। हमने दिल्ली, पुणे, गाज़ियाबाद, नोएडा जैसी जगहों पर भी इससे साड़ियाँ बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। ये गाँव के लोग ही हैं जिन्हें हम सिखाते हैं, इससे उन्हें रोज़गार भी मिल रहा है।"
वे आगे कहते हैं, "अभी महीने में 50 साड़ियाँ तैयार होती हैं, एक साड़ी को बनाने में तीन से चार दिन लगते हैं, बाज़ार में जिसकी कीमत 2500 तक है। पहली साड़ी जून 2022 में तैयार हुई थी।"
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नदियों की सफाई की इस मुहिम में पंकज कुमार भी शामिल हैं जो इससे पहले बेंगलुरु में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की जॉब करते थे। लेकिन अब जॉब छोड़ जमशेदपुर चले आए हैं।
पंकज गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "नदियों की सफ़ाई के लिए हम संडे को हमेशा तैयार रहते हैं। सफ़ाई के दौरान वेस्ट हो चुकी चीजों को फिर से काम का बनाते हैं।"
अगर आप एक वालंटियर के रूप में चेंजमेकर्स प्रोजेक्ट में शामिल होना चाहते हैं और हमें अपने क्षेत्र के चेंजमेकर्स से जुड़ने में मदद करना चाहते हैं तो कृपया हमें ईमेल करें connect@gaonconnection.com या हमें +91 95656 11118 पर व्हाट्सएप करें
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वो आगे कहते हैं, "हमने देखा कि इसमें फाइबर होता है, सोचा इससे क्या तैयार कर सकते हैं? पहले हमने इससे पेपर बनाने की शुरुआत की फिर कपड़े और अब साड़ियाँ भी बनाने लगे हैं।"
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 126 किलोमीटर दूर जमशेदपुर में अब गौरव के लिए ये एक मुहिम की तरह है सफ़ाई और बुनाई।
तालाब, झील, पोखर, नदियों में बेतरतीब तरीके से बढ़ने वाली जलकुंभी से सुंदर साड़ियाँ भी बन सकती हैं ये जब गौरव आनंद ने लोगों से कहा तो कई लोगों को यकीन ही नहीं हुआ।
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"जलकुंभी को पानी से निकालकर हम उसकी पत्तियों और जड़ों को अलग करते हैं। सभी को अलग करने के बाद जो बीच का तना बचता है, उससे रेशे निकाल कर धागे बनाए जाते हैं।" गौरव बताते हैं।
इन धागों को पश्चिम बंगाल के अलग-अलग जगहों पर भेजा जाता है, जहाँ पर महिलाएँ इनसे साड़ियाँ बनाती हैं।
गौरव आनंद ने पर्यावरण इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। 17 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने साल 2022 में नौकरी छोड़ दी, अब पूरी तरह से इस मुहिम में लग गए हैं।
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वो कहते हैं, "बीटेक की डिग्री लेने के बाद 17 साल टाटा स्टील में नौकरी की, साथ में नदियों की सफ़ाई का भी काम करता रहा, लेकिन पिछले साल नौकरी छोड़कर अब इसी में जुट गए हैं।"
गौरव ‘स्वच्छता पुकारे’ नाम की एक संस्था भी चलाते हैं। अपनी संस्था से जुड़े अभियान के तहत वह नदियों की सफाई का काम करते रहते हैं। गौरव और उनकी टीम अब तक 30 शहरों में नदियों की सफ़ाई कर चुकी है। उनकी संस्था से 40 हज़ार वालंटियर भी जुड़े हुए हैं।
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अभी गौरव की टीम में 600 से ज़्यादा लोग जुड़े हुए हैं, जो जलकुंभी से लैंपशेड, नोटबुक जैसे सामान बनाते हैं। इनमें 200 महिलाएँ साड़ी बनाने का काम करती हैं। हर किसी का अलग-अलग काम होता है। कोई जलकुंभी निकालता है, कोई इनसे तने अलग करता है, रेशे निकालने की टीम अलग होती है।
गौरव आगे बताते हैं, "हम दूसरी जगह भी अब जा रहे हैं। हमने दिल्ली, पुणे, गाज़ियाबाद, नोएडा जैसी जगहों पर भी इससे साड़ियाँ बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। ये गाँव के लोग ही हैं जिन्हें हम सिखाते हैं, इससे उन्हें रोज़गार भी मिल रहा है।"
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नदियों की सफाई की इस मुहिम में पंकज कुमार भी शामिल हैं जो इससे पहले बेंगलुरु में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर की जॉब करते थे। लेकिन अब जॉब छोड़ जमशेदपुर चले आए हैं।
पंकज गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "नदियों की सफ़ाई के लिए हम संडे को हमेशा तैयार रहते हैं। सफ़ाई के दौरान वेस्ट हो चुकी चीजों को फिर से काम का बनाते हैं।"
अगर आप एक वालंटियर के रूप में चेंजमेकर्स प्रोजेक्ट में शामिल होना चाहते हैं और हमें अपने क्षेत्र के चेंजमेकर्स से जुड़ने में मदद करना चाहते हैं तो कृपया हमें ईमेल करें connect@gaonconnection.com या हमें +91 95656 11118 पर व्हाट्सएप करें
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