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रोचक: शहद ही नहीं मधुमक्खी का डंक भी काम का, बनती है कई दवाएं

गाँव कनेक्शन | Oct 18, 2016, 12:30 IST
मधुमक्खी पालन
लखनऊ। मधुमक्खी के निकले डंक से भी दवायें बनायी जाने लगी हैं। अनुपयोगी चीजें उपयोगी बन सकती हैं, बशर्ते लोगों को अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। आजकल औषधियां बनाने के लिये शहद का उपयोग किया जा रहा है। मधुमक्खी के निकले डंक से भी दवायें बनायी जाने लगी हैं। यह बात डॉ़ एसएस डंग ने रायल हनी एण्ड बी फार्मिंग सोसाइटी की ओर से सोमवार से राजधानी के इन्डियन इन्डस्ट्रीज एसोसिएशन भवन में दो दिवसीय कार्यशाला में कही।

विशेषज्ञों ने अपने मत प्रस्तुत किये

इस कार्यशाला में प्रमुख रूप से गाँवो में रोजगार और लघु उघोगों को बढ़ावा देने के लिये सामाजिक स्तर पर चर्चा की गई। शहद और उससे जुड़े स्वास्थ्य लाभ के लिये विभिन्न राज्यों से आये हुये विशेषज्ञों ने अपने मत प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य गाँवो मे पल रही बेरोजगारी को लघु उघोगों के माध्यम से खत्म करने और किसानों को खेती करने के नये तरीकों का संसाधन प्रदान करना रहा।

मधुमक्खी पालन के प्रति जागरूकता जरूरी

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में पहुचे डा. डंग ने कहा कि मधुमक्खी पालन जैसे कार्यों से आज हर वर्ग बचना चाहता है। लेकिन प्रमुख रूप से इसके प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है। अनुपयोगी चीजें उपयोगी बन सकती हैं बशर्ते लोगों को अपना नजरिया बदलने की जरूरत है। आजकल औषधियां बनाने के लिये शहद का उपयोग किया जा रहा है। वहीं मधुमक्खी के निकले डंक से भी दवायें बनायी जाने लगी हैं।

ताकि किसानों को मिले रोजगार

सोसाइटी के चीफ एडवाइसर डा. नितिन सिंह ने बताया कि हमारी संस्था वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालन करने पर जोर देती है। मधुमक्खियों को बीमारियों से बचाने के लिये दवाइयों का छिड़काव किया जाता है। गांवो में मधुमक्खी पालन करने के लिये किसानों को प्रोत्साहन दिया जाता है। जिससे किसानों को रोजगार का मौका मिल सके। उन्होंने बताया कि हमारी संस्था शहद द्वारा निर्मित हनी जैम बाजार में जल्द लाने वाली है, जो बच्चों की कमजोरी और डायबिटिज में फायदेमंद साबित हो सकेगी।

सीतापुर के गाँवों में मधुमक्खी पालन शुरू

सीतापुर के कुछ गांवो में किसानों ने मधुमक्खी पालन की पहल शुरू भी कर दी है। इसी के तहत विनय यादव ने बताया कि जिन किसानों के पास जमीन नही है। उनके लिये मधुमक्खी पालन एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। शहद की शुद्वता को ध्यान में रखते हुये उन्होंने कहा कि जितना ज्यादा शहद उत्पादन में होगा, शहद की गुणवत्ता उतनी ही बढ़ेगी। महात्मा गांधी ग्रामीण औघोगिकरण संस्थान वर्धा के उपनिदेशक डा. कमलराज ने कहा कि प्रदेश में संसाधनों की कमी नही है। इसके बावजूद जो उन्नति होनी चाहिये वो नही हो पायी। जिसका मुख्य कारण गांवों और शहरों में लघु उद्य़ोगों की कमी है।

छोटे स्तर पर आ सकते हैं सामने

उन्होंने अपशिष्ट पदार्थों के प्रयोग को लेकर कहा कि सिर से निकलने वाले बालों में 16 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है जिसका हम बेहतर उपयोग कर सकते हैं। कार्यक्रम के मध्यान्तर के बाद हुये प्रस्तुतीकरण में उन्होंने विभिन्न प्रकारों के उत्पादों की चर्चा की जो छोटे स्तर पर लघु उद्योगों के रूप में उभर कर सामने आ सकते हैं। विभिन्न प्रकार के मसाले, तेल, सौन्दर्यीकरण जैसी चीजों का उत्पादन करके लघु उद्योग लगाये जा सकते हैं। जिससे ज्यादातर गांवों के लोगो को रोजगार मिल सकेगा। इन वस्तुओं का उत्पादन करके गांवो की दशा और दिशा दोनों बदली जा सकती है। आयोजन के तहत सोसाइटी के सचिव नमित कुमार ने मधुमक्खी पालन प्रकिया पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सफल संचालन शाश्वत द्विवेदी ने किया। इस दौरान पूर्व निदेशक, भूतपूर्व मंत्री डा. एसएस डंग, शिवकान्त त्रिपाठी, मां सेवा संस्थान के सचिव अभय कुमार आदि मौजूद रहे।

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