तालाब नहीं खेत में सिंघाड़ा उगाते हैं पद्मश्री किसान, कई राज्यों से किसान सीखने आते हैं खेती की तकनीक
Divendra Singh | Sep 18, 2018, 10:32 IST
सेठपाल सिंह अब दूसरे किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। अपनी 15 हेक्टेयर खेत में सेठपाल सिंह सिर्फ पांच हेक्टेयर भूमि में गन्ने की खेती करते हैं। बाकी के 10 हेक्टेयर में वो बागवानी, सब्जी जैसी फसलों की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
सहारनपुर(उत्तर प्रदेश)। जिस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान परेशान हैं, वहीं पर यह किसान का खेती का तरीका बदलकर मुनाफा कमा रहा है। तभी तो इन्हें पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने भी सम्मानित किया था।
सहारनपुर जिले के नंदीसेठपुर गाँव के किसान सेठपाल सिंह इस समय पंद्रह हेक्टेयर में खेती कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है। वहीं पर सेठपाल सिंह गन्ने की खेती तो करते ही हैं साथ ही लौकी, करेला, खीरा, पालक जैसी सब्जियों की भी खेती करते हैं।
खेत और तालाब के आस-पास लगाए हैं कई फलदार वृक्ष
सहारनपुर के नंदीफिरोजपुर गाँव के रहने वाले सेठपाल सिंह एक संयुक्त परिवार में रहते हैं। हर किसी का सपना होता है कि वो पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करें, लेकिन इस प्रतिभाशाली किसान ने इस बात को गलत साबित किया। साल 1987 में कृषि में स्नातक की पढ़ाई के बाद सेठपाल ने नौकरी करने के बजाए खेती करना बेहतर समझा।
सेठपाल सिंह बताते हैं, "पहले हम भी गन्ना, गेहूं और धान के किसान थे, लेकिन वो घाटे के सौदे के अलावा कुछ नहीं था। ऐसे में हम कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए, तब वहां पर वैज्ञानिकों ने कृषि विविधीकरण के बारे में बताया उसके बाद हमने एक ऐसा सिस्टम इजाद किया जिससे किसान की रोज आमदनी हो, इसमें हम गन्ने की खेती भी करते हैं सब्जियों की भी खेती करते हैं, इसके साथ ही खेत में ही सिंघाड़ा भी उगाते हैं, हम मछली पालन भी करते हैं इसके साथ ही पशुपालन और मशरूम की भी खेती करते हैं।"
सेठपाल मचान विधि से एक साथ कई सब्जियों की खेती करते हैं। वो बताते हैं, "सबसे पहले हम पॉलीबैग में इन सब्जियों की नर्सरी तैयार करते हैं। जनवरी के आखिरी सप्ताह में हमने एक लाइन में करेले की रोपाई कर दी, दूसरी लाइन में खीरे की रोपाई कर दी। खीरा हमारा मई तक चला है, मई में जब खीरा खत्म हो गया तो हमने उसमें लौकी की रोपाई कर दी। जुलाई तक हमारा करेला चला है, उसके बाद लौकी भी आने लगी है जो अभी तक चल रही है।"
मचान विधि से एक साथ करते हैं कई सब्जियों की खेती
वो आगे कहते हैं, "पहले शुरू में लोग मेरा मजाक उड़ाते थे कि क्या कर रहे हैं, देखिए गन्ने की एक साल की फसल होती है, उसके बाद मिल में जाती है, तब पेमेंट नहीं मिल पाता। इतने खर्च होते हैं, जिन्हें पूरा कर पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में ऐसा कुछ करना चाहिए जिससे हर दिन का खर्च निकलता रहे।"
सिंघाड़े के खेत को दिखाते सेठपाल सिंह
सेठपाल सिंह तालाब नहीं खेत में ही सिंघाड़े की करते हैं, खेती की शुरूआत के बारे में वो बताते हैं, "एक बार हम सहारनपुर के पास के एक गाँव से गुजर रहे थे, वहां पर किसान तालाब से सिंघाड़े की बेल निकाल रहे थे। हम लोग वहां रुके और जानकारी ली, उसके बाद हम कृषि विज्ञान केंद्र गए और डॉक्टर साहब के पास गए उन्होंने कहा कि आप भी इसकी खेती कर सकते हैं। तब 1997 में हमने इसकी शुरुआत की।"
ये भी पढ़ें : मशरूम उत्पादन का हब बन रहा यूपी का ये जिला, कई प्रदेशों से प्रशिक्षण लेने आते हैं किसान
वो पूरी तरह से समतल खेत में सिंघाड़े की खेती करते हैं, इसका लेवल और दूसरे खेत का लेवल एक ही है। बस इस खेत के मेड़ को थोड़ा ऊंचा कर देते हैं। जून के दूसरे सप्ताह में हम सिंघाड़े की रोपाई कर देते हैं और सितम्बर के आखिरी सप्ताह तक फल आने लगते हैं।
वो आगे बताते हैं, "जून से दिसम्बर तक ये फसल चलती है, दिसम्बर में जैसे-जैसे पाला बढ़ता है ये फसल खत्म हो जाती है। इसमें कीटनाशकों का प्रयोग न के बराबर होता है। मिट्टी की जांच के बाद जिसकी कमी होती है, उसी के हिसाब से डालते हैं। जो दूसरे तालाबों में सिंघाड़े की खेती होती है कई बार उसमें गाँव भर का गंदा पानी आता रहता है। उसकी वजह से उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं होती, जबकि हमारे खेत में ट्यूबवेल का पानी भरा जाता है, जिससे ज्यादा अच्छा सिंघाड़ा उगता है। यहीं नहीं जो मार्केट में सिंघाड़ा उगता है उसके मुकाबले इसका पांच-छह रुपए ज्यादा रेट मिलता है।"
"जब सिंघाड़े की फसल मिल जाती है तो दिसम्बर के बाद हम इससे पानी निकाल देते हैं, लेकिन फसल अवशेष् रहने देते हैं जो बढ़िया जैविक खाद बन जाती है। इसके बाद हम सब्जी की फसल की खेती करते हैं, "उन्होंने आगे कहा।
दो एकड़ सिंघाड़े में फसल को लगाने से लेकर तोड़ने तक उनकी कुल लागत 16000 से 17000 प्रति एकड़ आती है। सेठपाल सिंह बताते हैं कि उनको सिंघाड़े की फसल से प्रति एकड़ एक लाख तक की बचत हो जाती है। जून से दिसम्बर तक चलने वाली इस फसल के बाद सेठपाल सिंह सब्जियों की फसल लेते है, जिससे उनको एक से 1.50 लाख प्रति एकड़ तक की अतिरिक्त आय हो जाती है।
खेती की जानकारी देते कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी आईके कुशवाहा
सेठपाल अपने खेत के पास ही तालाब में मछली पालन भी करते हैं। वो बताते हैं, "क्योंकि हम विविधकरण खेती करते हैं, हमने मछली उत्पादन भी शुरू किया है, साढ़े चार फीट पानी में तीन प्रजतियों की मछली डालते हैं, इसमें रोहू, कतला और नैन का पालन करते हैं। ये तीनों अलग-अलग सतह में रहती हैं और एक दूसरी मछलियों को भी नुकसान भी नहीं पहुंचाती हैं। सबसे खास बात तालाब से भूजल की समस्या नहीं रहती हमारे ट्यूबवेल में बारह महीने तक पानी आता रहता है।
ये भी पढ़ें : कभी करती थीं मजदूरी अब हैं सफल महिला किसान
इसके अलावा सेठपाल सिंह अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। अपनी 15 हेक्टेयर की भूमि में सेठपाल सिंह सिर्फ पांच हेक्टेयर भूमि में गन्ने की बुवाई करते हैं। बाकी 10 हेक्टेयर में वो बागवानी, सब्जी और सिंघाड़ा जैसी फसलों की खेती कर अच्छा मुनाफा ले रहे हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय नई जानकारियां मिलती रहती हैं, वैज्ञानिक गाँव में आकर जानकारी देते हैं। उनकी देख-रेख में ही सारे काम चलते रहते हैं, यही नहीं वैज्ञानिकों की पूरी टीम आती है। कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. आईके कुशवाहा बताते हैं, "सेठपाल सिंह हमारे जिले के ऐसे किसानों में से एक हैं, जिन्हें जितना हम बताते हैं, उससे ज्यादा सीखने को मिलता है। जिस समय किसान गन्ने के भुगतान के लिए परेशान रहते हैं, सेठपाल अपने उसी खेत से अच्छा मुनाफा कमाते हैं।"
ये भी पढ़ें : स्टेकिंग विधि से सब्जियों की फसल की हो रही सुरक्षा
सहारनपुर जिले के नंदीसेठपुर गाँव के किसान सेठपाल सिंह इस समय पंद्रह हेक्टेयर में खेती कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है। वहीं पर सेठपाल सिंह गन्ने की खेती तो करते ही हैं साथ ही लौकी, करेला, खीरा, पालक जैसी सब्जियों की भी खेती करते हैं।
खेत और तालाब के आस-पास लगाए हैं कई फलदार वृक्ष
सहारनपुर के नंदीफिरोजपुर गाँव के रहने वाले सेठपाल सिंह एक संयुक्त परिवार में रहते हैं। हर किसी का सपना होता है कि वो पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करें, लेकिन इस प्रतिभाशाली किसान ने इस बात को गलत साबित किया। साल 1987 में कृषि में स्नातक की पढ़ाई के बाद सेठपाल ने नौकरी करने के बजाए खेती करना बेहतर समझा।
सेठपाल सिंह बताते हैं, "पहले हम भी गन्ना, गेहूं और धान के किसान थे, लेकिन वो घाटे के सौदे के अलावा कुछ नहीं था। ऐसे में हम कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में आए, तब वहां पर वैज्ञानिकों ने कृषि विविधीकरण के बारे में बताया उसके बाद हमने एक ऐसा सिस्टम इजाद किया जिससे किसान की रोज आमदनी हो, इसमें हम गन्ने की खेती भी करते हैं सब्जियों की भी खेती करते हैं, इसके साथ ही खेत में ही सिंघाड़ा भी उगाते हैं, हम मछली पालन भी करते हैं इसके साथ ही पशुपालन और मशरूम की भी खेती करते हैं।"
मचान विधि से एक साथ करते हैं कई सब्जियों की खेती
मचान विधि से एक साथ करते हैं कई सब्जियों की खेती
मचान विधि से एक साथ करते हैं कई सब्जियों की खेती
तालाब नहीं खेत में उगाते हैं सिंघाड़ा
सेठपाल सिंह तालाब नहीं खेत में ही सिंघाड़े की करते हैं, खेती की शुरूआत के बारे में वो बताते हैं, "एक बार हम सहारनपुर के पास के एक गाँव से गुजर रहे थे, वहां पर किसान तालाब से सिंघाड़े की बेल निकाल रहे थे। हम लोग वहां रुके और जानकारी ली, उसके बाद हम कृषि विज्ञान केंद्र गए और डॉक्टर साहब के पास गए उन्होंने कहा कि आप भी इसकी खेती कर सकते हैं। तब 1997 में हमने इसकी शुरुआत की।"
ये भी पढ़ें : मशरूम उत्पादन का हब बन रहा यूपी का ये जिला, कई प्रदेशों से प्रशिक्षण लेने आते हैं किसान
वो आगे बताते हैं, "जून से दिसम्बर तक ये फसल चलती है, दिसम्बर में जैसे-जैसे पाला बढ़ता है ये फसल खत्म हो जाती है। इसमें कीटनाशकों का प्रयोग न के बराबर होता है। मिट्टी की जांच के बाद जिसकी कमी होती है, उसी के हिसाब से डालते हैं। जो दूसरे तालाबों में सिंघाड़े की खेती होती है कई बार उसमें गाँव भर का गंदा पानी आता रहता है। उसकी वजह से उसकी क्वालिटी अच्छी नहीं होती, जबकि हमारे खेत में ट्यूबवेल का पानी भरा जाता है, जिससे ज्यादा अच्छा सिंघाड़ा उगता है। यहीं नहीं जो मार्केट में सिंघाड़ा उगता है उसके मुकाबले इसका पांच-छह रुपए ज्यादा रेट मिलता है।"
"जब सिंघाड़े की फसल मिल जाती है तो दिसम्बर के बाद हम इससे पानी निकाल देते हैं, लेकिन फसल अवशेष् रहने देते हैं जो बढ़िया जैविक खाद बन जाती है। इसके बाद हम सब्जी की फसल की खेती करते हैं, "उन्होंने आगे कहा।
दो एकड़ सिंघाड़े में फसल को लगाने से लेकर तोड़ने तक उनकी कुल लागत 16000 से 17000 प्रति एकड़ आती है। सेठपाल सिंह बताते हैं कि उनको सिंघाड़े की फसल से प्रति एकड़ एक लाख तक की बचत हो जाती है। जून से दिसम्बर तक चलने वाली इस फसल के बाद सेठपाल सिंह सब्जियों की फसल लेते है, जिससे उनको एक से 1.50 लाख प्रति एकड़ तक की अतिरिक्त आय हो जाती है।
खेत के पास ही करते हैं मछली पालन
सेठपाल अपने खेत के पास ही तालाब में मछली पालन भी करते हैं। वो बताते हैं, "क्योंकि हम विविधकरण खेती करते हैं, हमने मछली उत्पादन भी शुरू किया है, साढ़े चार फीट पानी में तीन प्रजतियों की मछली डालते हैं, इसमें रोहू, कतला और नैन का पालन करते हैं। ये तीनों अलग-अलग सतह में रहती हैं और एक दूसरी मछलियों को भी नुकसान भी नहीं पहुंचाती हैं। सबसे खास बात तालाब से भूजल की समस्या नहीं रहती हमारे ट्यूबवेल में बारह महीने तक पानी आता रहता है।