63,000 महिलाओं की कमाई, आत्मनिर्भरता और सम्मान: बलिनी का जादू
Gaon Connection | Nov 26, 2025, 19:41 IST
बुंदेलखंड की सूखी ज़मीन से उगी है एक ऐसी कहानी जिसने हजारों महिलाओं की ज़िंदगी बदल दी। 2019 में शुरू हुई बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी आज 63,000 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार, आत्मनिर्भरता और सम्मान दे रही है और पूरे क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल रही है।
जब ज़मीन पथरीली हो, मौसम बेरहम हो और रोज़गार मीलों दूर दिखाई दे… तब मेहनत के पानी से उम्मीदों के फूल उगाना आसान नहीं होता। लेकिन बुंदेलखंड ने ये कर दिखाया है। सूखे के लिए बदनाम, पलायन की मार झेलता इस क्षेत्र ने आज देश को ऐसी कहानी दी है जो बताती है, जहाँ संघर्ष होता है, वहाँ चमत्कार भी होते हैं।
यह कहानी है बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी (Balinee Milk Producer Company) की, एक ऐसी पहल जिसने मुश्किलों से जूझ रहे बुंदेलखंड की महिलाओं को रोज़गार, सम्मान और पहचान मिली।
साल 2019 में, जब यह कंपनी शुरू हुई, तब उद्देश्य सरल लेकिन दूरदर्शी था, गाँव की महिलाओं को उनके घरों के आस-पास ही स्थायी रोज़गार मिल सके।
कंपनी के सीईओ डॉ. ओ. पी. सिंह बताते हैं, “बलिनी नाम का मतलब होता है - मजबूत महिला। शास्त्रों में माता दुर्गा का भी एक नाम बलिनी है। हम चाहते थे कि बुंदेलखंड की ग्रामीण महिलाएं सिर्फ घर संभालने वाली न रहें, बल्कि कमाने और निर्णय लेने वाली बनें। लोग यहाँ से पलायन की बात करते थे, लेकिन हमारी सोच थी कि पलायन रुके, रोज़गार यहीं मिले, सम्मान यहीं मिले।”
यह सिर्फ दूध बेचने वाली कंपनी की कहानी नहीं थी, यह सशक्तिकरण का आंदोलन था।
63 हज़ार महिलाएं, 2 लाख लीटर दूध: रोज़ बदलती ज़िंदगी
आज, केवल कुछ साल बाद, बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी की सदस्य संख्या 63,000 से अधिक महिलाएँ है। ये महिलाएँ हर दिन 2 लाख लीटर से भी ज़्यादा दूध इकट्ठा कर रही हैं, और यह दूध न सिर्फ बाज़ार तक पहुँच रहा है, बल्कि महिलाओं की जिंदगी भी बदल रहा है।
बलिनी से जुड़ी प्रार्थना यादव कहती हैं, "पहले हम दाम के लिए तरसते थे। कोई भी सही कीमत नहीं देता था। अब बलिनी डेयरी से जोड़ने के बाद सब सही हो गया है, दूध का पूरा पैसा मिलता है, पशुओं का दाना भी मिल जाता है। अब लगता है कि अपने दम पर कुछ कर पा रहे हैं।”
दूध सिर्फ पशुपालन से कमाई नहीं, बल्कि नई सोच का ईंधन बन चुका है।
डॉ. सिंह आगे बताते हैं, “बुंदेलखंड रानी लक्ष्मीबाई की धरती है। महिलाएँ हमेशा से मजबूत रही हैं। लेकिन आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने के लिए कोई मंच नहीं था। बलिनी ने वो मंच दिया। आज महिलाएँ खुद अपनी ज़रूरतें, अपने पशुओं की ज़रूरतें और अपनी कमाई के फैसले खुद लेती हैं।”
यह बदलाव अनदेखा नहीं रहा। पहले चुप रहने वाली महिलाएँ अब बैठक में बात रखती हैं, सप्लाई चेन संभालती हैं, नए किसानों को ट्रेनिंग देती हैं और डेयरी यूनिट चलाती हैं।
सम्मान- कमाई से बड़ी कमाई
बलिनी ने महिलाओं को न सिर्फ कमाई दी, बल्कि इज़्ज़त और आत्मविश्वास भी लौटाया है।
कंपनी की सदस्य सीमा कहती हैं, “पहले पैसा नहीं था तो कोई भाव नहीं देता था। कोई पूछता तक नहीं था। पर जब से पैसा आने लगा तो सबका नजरिया बदल गया। लोग कहते हैं — ‘अरे सीमा दीदी आ रही हैं!’ बच्चे अच्छे स्कूल में हैं, घर में खुशी है, और सबसे अच्छी बात — बात हमारी भी सुनी जाती है।”
भाषा वही है, गाँव वही है, जिंदगी वही है… लेकिन पहचान बदल गई है। पहले “घर की औरत” कही जाने वाली महिलाएं आज “कमाने वाली”, “फैसला लेने वाली” और “गाँव बदलने वाली” कहलाती हैं।
रोज़गार का नया इकोसिस्टम
बलिनी से सिर्फ दूध बेचने वाली महिलाएं ही नहीं जुड़ीं, इस पहल ने गाँव में एक पूरा रोज़गार इकोसिस्टम तैयार कर दिया है। युवाओं को डेयरी ट्रांसपोर्ट में काम, कई नौजवानों के पास दूध कलेक्शन वाहन, आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन में ट्रेनिंग, फ़ीड और सप्लाई चेन मैनेजमेंट में रोजगार, महिला सुपरवाइज़र और कलेक्शन सेंटर मैनेजर
गाँव में जो लड़के शहर भागते थे, अब वहीं काम पा रहे हैं। जो औरतें घर से निकलने में हिचकती थीं, आज खातों और लेनदेन संभाल रही हैं।
“हमाओ बल, हमाई बलिनी” - एक आवाज़, जो बदलाव बन गई
बुंदेलखंड की गलियों में आज एक बात अक्सर सुनाई देती है- “हमाओ बल, हमाई बलिनी।” (हमारी ताकत - हमारी बलिनी)
ये सिर्फ एक नारा नहीं है। यह उस विश्वास की गूँज है जो एक कंपनी ने नहीं, एक महिला सेना ने बनाया है, जिसने पलायन रोकने की शुरुआत की, जिसने महिलाओं को घर के भीतर से बाहर और आगे लाने का अवसर दिया, जिसने ज़िंदगी बदलना संभव कर दिखाया।
बलिनी आज एक कंपनी नहीं, एक प्रेरणा है। इसने यह साबित कर दिया है- “जब महिलाएँ आगे बढ़ती हैं, तो सिर्फ घर नहीं, पूरा इलाका आगे बढ़ता है।” बुंदेलखंड की धरती पर आज उम्मीदें फिर खिलने लगी हैं। पानी भले कम हो, लेकिन हौसला और सपने बहुत हैं। और जब हौसले मजबूत हों- तो पथरीली ज़मीन पर भी फूल खिल जाते हैं।
यह कहानी है बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी (Balinee Milk Producer Company) की, एक ऐसी पहल जिसने मुश्किलों से जूझ रहे बुंदेलखंड की महिलाओं को रोज़गार, सम्मान और पहचान मिली।
साल 2019 में, जब यह कंपनी शुरू हुई, तब उद्देश्य सरल लेकिन दूरदर्शी था, गाँव की महिलाओं को उनके घरों के आस-पास ही स्थायी रोज़गार मिल सके।
Balinee Milk Producer Company (3)
कंपनी के सीईओ डॉ. ओ. पी. सिंह बताते हैं, “बलिनी नाम का मतलब होता है - मजबूत महिला। शास्त्रों में माता दुर्गा का भी एक नाम बलिनी है। हम चाहते थे कि बुंदेलखंड की ग्रामीण महिलाएं सिर्फ घर संभालने वाली न रहें, बल्कि कमाने और निर्णय लेने वाली बनें। लोग यहाँ से पलायन की बात करते थे, लेकिन हमारी सोच थी कि पलायन रुके, रोज़गार यहीं मिले, सम्मान यहीं मिले।”
यह सिर्फ दूध बेचने वाली कंपनी की कहानी नहीं थी, यह सशक्तिकरण का आंदोलन था।
63 हज़ार महिलाएं, 2 लाख लीटर दूध: रोज़ बदलती ज़िंदगी
आज, केवल कुछ साल बाद, बलिनी मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी की सदस्य संख्या 63,000 से अधिक महिलाएँ है। ये महिलाएँ हर दिन 2 लाख लीटर से भी ज़्यादा दूध इकट्ठा कर रही हैं, और यह दूध न सिर्फ बाज़ार तक पहुँच रहा है, बल्कि महिलाओं की जिंदगी भी बदल रहा है।
बलिनी से जुड़ी प्रार्थना यादव कहती हैं, "पहले हम दाम के लिए तरसते थे। कोई भी सही कीमत नहीं देता था। अब बलिनी डेयरी से जोड़ने के बाद सब सही हो गया है, दूध का पूरा पैसा मिलता है, पशुओं का दाना भी मिल जाता है। अब लगता है कि अपने दम पर कुछ कर पा रहे हैं।”
Balinee Milk Producer Company (1)
दूध सिर्फ पशुपालन से कमाई नहीं, बल्कि नई सोच का ईंधन बन चुका है।
डॉ. सिंह आगे बताते हैं, “बुंदेलखंड रानी लक्ष्मीबाई की धरती है। महिलाएँ हमेशा से मजबूत रही हैं। लेकिन आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने के लिए कोई मंच नहीं था। बलिनी ने वो मंच दिया। आज महिलाएँ खुद अपनी ज़रूरतें, अपने पशुओं की ज़रूरतें और अपनी कमाई के फैसले खुद लेती हैं।”
यह बदलाव अनदेखा नहीं रहा। पहले चुप रहने वाली महिलाएँ अब बैठक में बात रखती हैं, सप्लाई चेन संभालती हैं, नए किसानों को ट्रेनिंग देती हैं और डेयरी यूनिट चलाती हैं।
सम्मान- कमाई से बड़ी कमाई
बलिनी ने महिलाओं को न सिर्फ कमाई दी, बल्कि इज़्ज़त और आत्मविश्वास भी लौटाया है।
कंपनी की सदस्य सीमा कहती हैं, “पहले पैसा नहीं था तो कोई भाव नहीं देता था। कोई पूछता तक नहीं था। पर जब से पैसा आने लगा तो सबका नजरिया बदल गया। लोग कहते हैं — ‘अरे सीमा दीदी आ रही हैं!’ बच्चे अच्छे स्कूल में हैं, घर में खुशी है, और सबसे अच्छी बात — बात हमारी भी सुनी जाती है।”
Balinee Milk Producer Company (2)
भाषा वही है, गाँव वही है, जिंदगी वही है… लेकिन पहचान बदल गई है। पहले “घर की औरत” कही जाने वाली महिलाएं आज “कमाने वाली”, “फैसला लेने वाली” और “गाँव बदलने वाली” कहलाती हैं।
रोज़गार का नया इकोसिस्टम
बलिनी से सिर्फ दूध बेचने वाली महिलाएं ही नहीं जुड़ीं, इस पहल ने गाँव में एक पूरा रोज़गार इकोसिस्टम तैयार कर दिया है। युवाओं को डेयरी ट्रांसपोर्ट में काम, कई नौजवानों के पास दूध कलेक्शन वाहन, आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन में ट्रेनिंग, फ़ीड और सप्लाई चेन मैनेजमेंट में रोजगार, महिला सुपरवाइज़र और कलेक्शन सेंटर मैनेजर
गाँव में जो लड़के शहर भागते थे, अब वहीं काम पा रहे हैं। जो औरतें घर से निकलने में हिचकती थीं, आज खातों और लेनदेन संभाल रही हैं।
“हमाओ बल, हमाई बलिनी” - एक आवाज़, जो बदलाव बन गई
बुंदेलखंड की गलियों में आज एक बात अक्सर सुनाई देती है- “हमाओ बल, हमाई बलिनी।” (हमारी ताकत - हमारी बलिनी)
ये सिर्फ एक नारा नहीं है। यह उस विश्वास की गूँज है जो एक कंपनी ने नहीं, एक महिला सेना ने बनाया है, जिसने पलायन रोकने की शुरुआत की, जिसने महिलाओं को घर के भीतर से बाहर और आगे लाने का अवसर दिया, जिसने ज़िंदगी बदलना संभव कर दिखाया।
बलिनी आज एक कंपनी नहीं, एक प्रेरणा है। इसने यह साबित कर दिया है- “जब महिलाएँ आगे बढ़ती हैं, तो सिर्फ घर नहीं, पूरा इलाका आगे बढ़ता है।” बुंदेलखंड की धरती पर आज उम्मीदें फिर खिलने लगी हैं। पानी भले कम हो, लेकिन हौसला और सपने बहुत हैं। और जब हौसले मजबूत हों- तो पथरीली ज़मीन पर भी फूल खिल जाते हैं।