पशुओं पर शोध के लिए बने संस्थान में ही हुई 48 भैंसों की मौत, 20 दिन बाद भी पता नहीं लगा सके वजह

Diti Bajpai | Oct 05, 2019, 10:59 IST
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लखनऊ। देश के बड़े पशु अनुसंधान संस्थान हरियाणा के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) में 48 भैंसों की मौत का मामला पहेली बनता जा रहा है। एनडीआरआई के वैज्ञानिकों का कहना हैं कि भैंसों के फेफड़ों में इंफेक्शन होने से उनकी मौत हुई है लेकिन इसकी अभी संस्थान की ओर से अधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। जानकारी के मुताबिक इन मौतों की जांच के लिए अलग-अलग संस्थानों के 1500 से ज्यादा पशु चिकित्सक और वैज्ञानिक मौत की वजह पता लगाने में जुटे हैं।

हरियाणा के करनाल स्थित राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान में परीक्षण और संवर्धन आदि के लिए सैकड़ों पशुओं को रखा जाता है। सितंबर के दूसरे हफ्ते में (11 सितंबर के बाद से) यहां एक के बाद एक कई भैैंसों की मौत हो गई। ये वही वक्त था जब यूपी के मथुरा से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पशुओं को खुरपका मुंहपका जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण के राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत की थी। संस्थान में अब तक 48 भैंस की मौत हुई है।

एनडीआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजन शर्मा ने बताया, "संस्थान के प्रक्षेत्र में 2000 पशुओं की संख्या है जिसमें से अभी तक 48 पशुओं की मौत हुई है यह सभी भैंसें है इसमें से कोई भी गाय नहीं है। अभी तक जो पता चल पाया है उसमें पशुओं के फेफड़ों में इंफेक्शन होने से उनकी मौत हुई जो कि पशुओं में निमोनिया होने के कारण होता है।"

अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ शर्मा ने फोन पर गाँव कनेक्शन को बताया, "करीब 150 भैंसों को अलग रखकर उनकी निगरानी की जा रही है क्योंकि जिन भैंसों की मौत हुई उस समय भैंसे उनके संपर्क में थी।" वैज्ञानिकों का दावा है कि स्थिति को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है।

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दूध और उससे बने उत्पादों, पशुओं की रोग एवं निदान समेत कई चीजों पर एनडीआरआई शोध करता है। एनडीआरआई में अचानक हुई भैंसों की मौत को देखते हुए लाला लाजपत राय यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी एंड मेडिकल साइंस (लुवास) हिसार, इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट(आईवीआरआरआई) बरेली के वैज्ञानिक की टीम भी लगी हुई है। इस संस्थान में पशुओं के रख रखाव से लेकर उनको बीमारियों से कैसे बचाया जाए इस बारे में पशुपालकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे में संस्थान में बड़ी संख्या में पशुओं का मरना प्रशासन पर सवाल उठा रहा है।

भैंसों की मौत की जांच के लिए सैंपल्स को लुवास और आईवीआरआई में भेजा गया है। इन सैंपल्स की जांच कर रहे आईवीआरआई के पशु रोग अनुसंधान एवं निदान विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. वीके सिंह ने बताया, "एक्सपर्ट की कमेटी इस पर बैठी थी अभी हम लोग इस पर काम कर रहे हैं। अभी इस मामले में कुछ नहीं कह सकते है जैसे ही पता लगाया जा सकेगा कि मौत किस वजह से हुई एनडीआरआई के निदेशक को रिपोर्ट भेज दी जाएगी।"

इस घटना के कुछ महीने पहले भी एनडीआरआई में मवेशियों में खुरपका-मुंहपका (एफएमडी) बीमारी फैलने से पशुओं की मौत हो गई थी। इससे पहले एनडीआरआई में वर्ष 2011 में एफएमडी बीमारी फैली थी जिससे 271 पशु प्रभावित हुए और 10 जानवरों की मौत हुई थी। पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018 में खुरपका-मुंहपका से पूरे भारत में 604 पशुओं की मौत हो चुकी है।



हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बीमारी को रोकने के लिए राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश के मवेशियों को खुरपका-मुहंपका बीमारी से मुक्त करना है। खुरपका-मुंहपका बीमारी को रोकने के लिए वर्ष 2004 से पूरे देश में खुरपका-मुंहपका टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन तमाम सरकारी कोशिशों और करोड़ों रुपये के खर्च के बाद भी इस बीमारी पर काबू नहीं हो पाया है।

इससे पहले भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थानों में खुरपका-मुंहपका के टीकाकरण के बावजूद सैकड़ों पशुओं की मौत हो चुकी है। एक पशुचिकित्सा से जुड़े एक सीनियर चिकित्सक ने नाम छपाने की शर्त पर कहा कि भारत में पशु वैक्सीन की गुणवत्ता पर हमेशा सवाल उठे हैं। वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों पर उचित निगरानी और हादसों की दशा में करोठ कार्रवाई की जानी चाहिए।"

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