भारत की देसी नस्लों से तैयार हुई हैं विदेशी गाय

Diti Bajpai | Feb 26, 2019, 07:45 IST
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लखनऊ। देसी गायों के संरक्षण और संर्वधन पर भले ही सरकार करोड़ों का बजट खर्च कर रही हो लेकिन आपको बता दें विश्व के कई देशों ने भारतीय देशी गोवंश की अनुकूल क्षमताओं का उपयोग अपनी स्थानीय नस्लों की गायों को सुधारने के लिए किया है।

भारत विश्व के सबसे ज्यादा पशुधन वाले देशों में से एक है। भारतीय नस्ल की गायों का दुग्ध उत्पादन भले ही विदेशी नस्ल की गायों से कम हो लेकिन इन गायों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विदेशी नस्लों से कहीं अधिक है।

ब्राजील में सौ साल पहले गिर गायों भेजा गया था जब ये गायें ब्राजील पहुंची, तो वहां लोगों को अहसास हुआ कि इन गायों मे कुछ खास बात हैं और वे दुग्ध उत्पादन का बेहतर स्रोत हो सकती हैं। ब्राजील ने गिर गौ की संख्या को इतना बढ़ा ली है कि गिर गौ के दु्ग्ध उत्पादन से होने वाली आमदनी से उनके देश की आर्थिक हालत बहुत सुधर चुकी है। ब्राजील की गिर गाय भारत लौटकर अपने पूर्वजों की नस्लों को सुधारने का भी काम करेंगी, जिसके लिए ब्राजील के राष्ट्रपति मिशेल तेमेर और हरियाणा के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने एमओयू किया है।

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हम आपको गायों की ऐसी नस्लों के बारे में बता रहे है जिन्हे भारतीय नस्लों से विभिन्न देशों में विकसित किया गया है-

अमरीकी ब्राह्मण

अमरीकी ब्राह्मण गाय अमेरिका द्वारा विकसित की गयी है। भारतीय नस्लें जैसे अंगोल, गिर, कांकरेज, कृष्णा वैली और हरियाना गायों को ब्राह्मण गायों का अंशभूत माना जाता है। ब्राह्मण गाय अर्जेटीना, ब्राजील, अमेरिका जैसे देशों में बहुत लोकप्रिय है और इसका उपयोग बीफ उत्पादन और प्रजनन के लिए होता है। ब्राह्मण गायों का रंग हल्का काला होता है और इनके सींग और कूबड़ होते है जो इनको अधिक बलशाली और मजबूत बनाते है। एक वयस्क अमरीकी सांड का वजन 750 से 1000 कि.ग्रा. और गाय का वजन 450 से 650 कि.ग्रा. तक होता है।

ब्राह्मण गायों का इस्तेमाल करते हुए बीफ उत्पादन के लिए बहुत सी नस्लें विकसित की गई हैं जैसे कि बीफ मास्टर, सांता गरडरीयस, ब्रैंगस, ब्रैफोर्ड और भी कई।

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अमरीकी ब्राह्मण सांड

जमाईका होप

आनुवंशिक संगठन- जर्सी 80%, साहीवाल 15% और हॉलस्टीन फ्रीजियन 5%।

जमाईका होप गौवंशीय नस्ल है जिसे यूरोप के जमाईका राज्य में विकसित किया गया है। जमाईका राज्य के होप नामक फार्म में विकसित होने के कारण इसका नाम जमाईका होप पढ़ा। इस नस्ल का उपयोग दूध उत्पादन के लिए होता है। जमाईका यूरोप की पहली दूध उत्पादन करने वाली नस्ल है, जिसे भारतीय नस्ल के सांडो से प्रजनन कराकर विकसित किया गया है। जमाईका होप को इंग्लैंड की जर्सी, भारत की साहीवाल और हॉलैंड की हॉलस्टीन फ्रीजियन से विकसित किया गया है। एक वयस्क जमाईका होप गाय का औसतन वजन 500 कि.ग्रा तक हो सकता है।

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जमाईका होप सांड

आस्ट्रेलियन मिल्किंग जेबू

आनुवंशिक संगठन- जर्सी 60% , साहीवाल 35% और रेड सिंधी 5%।

आस्ट्रेलियन मिल्किंग जेबू गोवंशीय गायों की एक संयुक्त नस्ल हैं, जिसे आस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ सांईटिफिक और इंडस्ट्रियज आरगनाईजेशन द्वारा विकसित किया गया है। आस्ट्रेलियन मिल्किंग जेबू को जर्सी और भारतीय नस्ल साहीवाल और रेड सिंधी के संयुक्त प्रजनन से विकसित किया गया है। इस गाय नस्ल को विकसित का उद्देश्य अधिक दुग्ध क्षमता के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी हो। साहीवाल और रेड सिंधी गायों का इस्तेमाल इसी उद्देश्य से किया गया है। आस्ट्रेलियन मिल्किंग जेबू का रंग हल्का भूरा होता है। एक वयस्क गाय का औसतन वजन 360 कि.ग्रा और सांड का वजन 450-500 कि.ग्रा तक होता है।

मैपवाते

आनुवंशिक संगठन- रेड सिंधी और साहीवाल 60%, अफ्रीकी जेबू 30%, अयरशायर 10%।

जेबू मैपवापते एक द्विउद्देशीय गोवंशीय नस्ल है। मैपवाते नस्ल को साउथ अफ्रीका के तनजानिया राज्य में विकसित किया गया है। मैपवापते नस्ल को दुग्ध और बीफ उत्पादन के लिए विकसित किया गया है। साहीवाल गायों का इस्तेमाल मैपवाते गायों का रंग लाल या गहरा होता है। एक व्यस्क गाय का वजन 320-350 कि.ग्रा और एक व्यस्क सांड का वजन 400-450 कि.ग्रा तक होता है।

आस्ट्रेलियन फ्रीज़ियन साहीवाल

आनुवंशिक संगठन- हॉलस्टीन फ्रीज़ियन 60%, साहीवाल 40%।

आस्ट्रेलियन फ्रीज़ियन साहीवाल एक आस्ट्रेलियन गोवंशीय नस्ल है, जिसे आस्ट्रेलिया के क्वींसलैड नामक स्थान पर विकसित किया है। इस नस्ल को विकसित करने का मुख्य कारण एक ऐसी नस्ल का विकास था जो आस्ट्रेलिया के उष्णक्षेत्रीय क्षेत्रों में पाली जा सकें। आस्ट्रेलियन फ्रीज़ियन साहीवाल गायों का रंग हल्का भूरा या हल्का काला होता है और इनके पैरों का रंग काला होता है। एक व्यस्क गाय का औसतन वजन 350 कि.ग्रा तक होता है।

(साभार- राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल, हरियाणा)



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