ट्रैक्टरों के साथ उतरा आक्रोश: लंपी स्किन डिज़ीज़ और फ्रांस के किसानों की लड़ाई, भारत भी हो चुका है प्रभावित
Divendra Singh | Dec 24, 2025, 19:53 IST
फ्रांस में लंपी स्किन डिज़ीज़ के नाम पर मवेशियों की सामूहिक हत्या के खिलाफ किसान सड़कों पर हैं। सरकार इसे बीमारी नियंत्रण बता रही है, जबकि किसान इसे अपनी आजीविका और भावनात्मक दुनिया पर हमला मानते हैं। यह कहानी सिर्फ़ फ्रांस की नहीं, बल्कि भारत समेत उन सभी देशों की है, जहाँ पशुपालन लाखों परिवारों की ज़िंदगी का आधार है।
फ्रांस की ठंडी सड़कों पर इन दिनों सिर्फ़ ट्रैक्टर नहीं, बल्कि किसानों का दर्द भी उतर आया है। हाथों में तख्तियां, आँखों में गुस्सा और दिल में टूटने का डर, क्योंकि सरकार के आदेश पर उनके पाले हुए मवेशियों को लंपी स्किन डिज़ीज़ (LSD) के नाम पर मारा जा रहा है। जिन गायों और बैलों को किसान परिवार का हिस्सा मानते हैं, उन्हें अपनी आँखों के सामने मरते देखना उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं।
यही वजह है कि फ्रांस के कई हिस्सों में किसान सरकार की culling policy यानी संक्रमित या संदिग्ध पशुओं को मारने की नीति के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। कहीं ट्रैक्टर ब्लॉकेड हैं, कहीं सड़कों पर गोबर फेंका जा रहा है और कहीं पुलिस के साथ झड़पें, कुछ जगहों पर हालात इतने बिगड़े कि पुलिस को आंसू गैस तक का इस्तेमाल करना पड़ा।
फ्रांस के कृषि मंत्री का कहना है कि देश में लंपी स्किन डिज़ीज़ अब नियंत्रण में है और फिलहाल कोई सक्रिय मामला शेष नहीं है। सरकार के अनुसार अब तक करीब 113 प्रकोप दर्ज किए गए और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगभग 3,300 मवेशियों को मारना पड़ा।
22 दिसंबर को फ्रांस में लम्पी स्किन डिजीज का 115वां मामला दर्ज किया गया। यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि उस बढ़ती असुरक्षा का संकेत है, जिससे फ्रांस का पशुधन क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से जूझ रहा है। इससे पहले मवेशियों में एपिज़ूटिक हेमरेजिक डिजीज (EHD) और ब्लूटंग डिजीज (BTV) जैसी बीमारियाँ सामने आ चुकी हैं, जबकि पोल्ट्री सेक्टर कई वर्षों से एवियन इन्फ्लुएंजा के स्थायी खतरे में जी रहा है।
सरकार यह भी दावा कर रही है कि एक व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, जिसके तहत करीब 20 लाख मवेशियों को वैक्सीन देने की योजना है। दूरदराज़ और संसाधन–विहीन इलाकों तक पहुंचने के लिए सेना की मदद ली जा रही है। लगभग 7.5 लाख अतिरिक्त वैक्सीन डोज़ देश में पहुंच चुकी हैं और उनकी डिलीवरी व प्रशासन में सेना सहयोग कर रही है।
किसान संगठनों और ग्रामीण समूहों का कहना है कि सरकार बीमारी से ज़्यादा जल्दी फैसले ले रही है। उनका मानना है कि पूरे झुंड को मारने के बजाय व्यापक टीकाकरण और निगरानी से भी संक्रमण को रोका जा सकता है। कई किसानों के लिए एक गाय सिर्फ़ पशु नहीं, बल्कि दूध, आय, खाद और पारिवारिक सुरक्षा का आधार होती है
जो दर्द आज फ्रांस के किसान महसूस कर रहे हैं, वही पीड़ा भारत के पशुपालक पिछले कुछ वर्षों से झेल रहे हैं। लंपी स्किन डिज़ीज़ ने भारत में खासकर राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भारी तबाही मचाई है।
भारत में इस बीमारी का पहला मामला 2019 में पश्चिम बंगाल में सामने आया था। इसके बाद यह बीमारी 15 से अधिक राज्यों में फैल गई। अकेले राजस्थान और गुजरात में हज़ारों मवेशियों की मौत हुई और लाखों किसानों की आजीविका पर असर पड़ा।
यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की और ग्रीस और 2016 में रूस जैसे देश में इसने तबाही मचाई। जुलाई 2019 में इसे बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है।
लंपी स्किन डिज़ीज़ एक वायरल रोग है, जो मुख्य रूप से गाय और भैंस को प्रभावित करता है। यह बीमारी मच्छरों, मक्खियों, किलनी, संक्रमित चारे, पानी और पशुओं की आवाजाही से फैलती है।
इसके प्रमुख लक्षण हैं:
शरीर पर सख़्त गांठें
तेज़ बुखार
दूध उत्पादन में भारी गिरावट
गर्भपात
गंभीर मामलों में पशु की मृत्यु
भारत ने इस संकट से सबक लेते हुए स्वदेशी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाया। आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (हिसार) और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI), इज्जतनगर ने मिलकर देश की पहली घरेलू वैक्सीन “लंपी-प्रोवैकइंड” विकसित की है।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के पशु रोग अनुसंधान और निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ केपी सिंह इस बीमारी के बारे में बताते हैं, "यह एलएसडी कैप्रीपॉक्स (Capripox) से फैलती है, अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है।"
लम्पी स्किन डिजीज को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने नोटीफाएबल डिजीज घोषित किया है, इसके अनुसार अगर किसी भी देश को इस रोग के बारे में पता चलता है तो विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (ओआईई) को जल्द सूचित करें।
करें:
संक्रमित पशु को तुरंत अलग करें
पशुशाला में साफ़-सफाई और कीट नियंत्रण रखें
पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें
दूध को उबालकर ही उपयोग करें
न करें:
पशु मेलों और चरागाहों में पशुओं को न ले जाएं
संक्रमित और स्वस्थ पशुओं को एक साथ न बांधें
मृत पशु को खुले में न छोड़ें, गहरे गड्ढे में दफनाएं
फ्रांस का मौजूदा संकट भारत के लिए चेतावनी भी है और सीख भी। बीमारी से लड़ाई सिर्फ़ प्रशासनिक आदेशों से नहीं, बल्कि किसानों के विश्वास, वैज्ञानिक समाधान और मानवीय दृष्टिकोण से जीती जाती है। लंपी स्किन डिज़ीज़ केवल एक पशु रोग नहीं है, यह उन लाखों परिवारों की कहानी है, जिनकी रोज़ी–रोटी गायों और भैंसों से जुड़ी है। जब नीति ज़मीन से कट जाती है, तब सड़कों पर सिर्फ़ प्रदर्शन नहीं, दर्द उतरता है।
यही वजह है कि फ्रांस के कई हिस्सों में किसान सरकार की culling policy यानी संक्रमित या संदिग्ध पशुओं को मारने की नीति के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। कहीं ट्रैक्टर ब्लॉकेड हैं, कहीं सड़कों पर गोबर फेंका जा रहा है और कहीं पुलिस के साथ झड़पें, कुछ जगहों पर हालात इतने बिगड़े कि पुलिस को आंसू गैस तक का इस्तेमाल करना पड़ा।
फ्रांस सरकार का दावा: बीमारी नियंत्रण में
<strong>किसानों ने लिखा<em> On est surla paille</em>- यानी हम बर्बाद हो गए हैं। Photo Credit: X</strong>
22 दिसंबर को फ्रांस में लम्पी स्किन डिजीज का 115वां मामला दर्ज किया गया। यह केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि उस बढ़ती असुरक्षा का संकेत है, जिससे फ्रांस का पशुधन क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से जूझ रहा है। इससे पहले मवेशियों में एपिज़ूटिक हेमरेजिक डिजीज (EHD) और ब्लूटंग डिजीज (BTV) जैसी बीमारियाँ सामने आ चुकी हैं, जबकि पोल्ट्री सेक्टर कई वर्षों से एवियन इन्फ्लुएंजा के स्थायी खतरे में जी रहा है।
सरकार यह भी दावा कर रही है कि एक व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, जिसके तहत करीब 20 लाख मवेशियों को वैक्सीन देने की योजना है। दूरदराज़ और संसाधन–विहीन इलाकों तक पहुंचने के लिए सेना की मदद ली जा रही है। लगभग 7.5 लाख अतिरिक्त वैक्सीन डोज़ देश में पहुंच चुकी हैं और उनकी डिलीवरी व प्रशासन में सेना सहयोग कर रही है।
नीति बनाम ज़िंदगी: किसानों की पीड़ा
भारत के लिए यह कहानी नई नहीं
भारत में इस बीमारी का पहला मामला 2019 में पश्चिम बंगाल में सामने आया था। इसके बाद यह बीमारी 15 से अधिक राज्यों में फैल गई। अकेले राजस्थान और गुजरात में हज़ारों मवेशियों की मौत हुई और लाखों किसानों की आजीविका पर असर पड़ा।
<strong>लम्पी स्किन डिजीज को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने नोटीफाएबल डिजीज घोषित किया है</strong>
यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की और ग्रीस और 2016 में रूस जैसे देश में इसने तबाही मचाई। जुलाई 2019 में इसे बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है।
क्या है लंपी स्किन डिज़ीज़?
इसके प्रमुख लक्षण हैं:
शरीर पर सख़्त गांठें
तेज़ बुखार
दूध उत्पादन में भारी गिरावट
गर्भपात
गंभीर मामलों में पशु की मृत्यु
भारत में वैक्सीन की उम्मीद
<strong>जो दर्द आज फ्रांस के किसान महसूस कर रहे हैं, वही पीड़ा भारत के पशुपालक पिछले कुछ वर्षों से झेल रहे हैं।</strong>
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के पशु रोग अनुसंधान और निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ केपी सिंह इस बीमारी के बारे में बताते हैं, "यह एलएसडी कैप्रीपॉक्स (Capripox) से फैलती है, अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है।"
लम्पी स्किन डिजीज को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने नोटीफाएबल डिजीज घोषित किया है, इसके अनुसार अगर किसी भी देश को इस रोग के बारे में पता चलता है तो विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (ओआईई) को जल्द सूचित करें।
बीमारी में क्या करें, क्या न करें
संक्रमित पशु को तुरंत अलग करें
पशुशाला में साफ़-सफाई और कीट नियंत्रण रखें
पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें
दूध को उबालकर ही उपयोग करें
न करें:
पशु मेलों और चरागाहों में पशुओं को न ले जाएं
संक्रमित और स्वस्थ पशुओं को एक साथ न बांधें
मृत पशु को खुले में न छोड़ें, गहरे गड्ढे में दफनाएं