आंध्र से ओडिशा तक झींगा संकट: जब कुछ ही दिनों में उजड़ जाती है पूरी मेहनत
Divendra Singh | Dec 22, 2025, 17:19 IST
व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ (WSSV) ने आंध्र प्रदेश से ओडिशा तक झींगा पालन को अस्तित्व की लड़ाई में बदल दिया है। यह सिर्फ़ एक बीमारी नहीं, बल्कि लाखों किसानों, मज़दूरों और तटीय अर्थव्यवस्था पर मंडराता संकट है।
सुबह तालाब के किनारे खड़े होकर झींगों को दाना डालते समय सब कुछ सामान्य लगता है। पानी में हलचल है, झींगे सक्रिय हैं। लेकिन कुछ ही दिनों में तालाब शांत हो जाते हैं। यही खामोशी व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ (White Spot Disease) की सबसे डरावनी पहचान है।
White Spot Syndrome Virus (WSSV) नाम का वायरस कुछ ही दिनों में पूरे तालाब की झींगा फसल को खत्म कर देता है। जिन झींगों पर महीनों की मेहनत, लाखों रुपये और भविष्य की उम्मीदें टिकी होती हैं, वे अचानक मरने लगते हैं। जब तक किसान को समझ आता है कि कुछ गड़बड़ है, तब तक देर हो चुकी होती है।
व्हाइट स्पॉट रोग झींगा पालन में होने वाली एक बहुत गंभीर वायरल बीमारी है, जो पूरी दुनिया में झींगा किसानों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। यह बीमारी लगभग सभी तरह के झींगों (जैसे ब्लैक टाइगर झींगा, वैनामी, इंडिकस आदि) और केकड़ों को प्रभावित कर सकती है। झींगे के अंडे, लार्वा से लेकर बड़े झींगे तक, सभी अवस्थाएं इस वायरस से संक्रमित हो सकती हैं।
वेस्ट गोदावरी के भीमावरम के झींगा किसान सत्यनारायण राजू कहते हैं, “सुबह तक सब ठीक रहता है। दोपहर में झींगे खाना छोड़ देते हैं और रात होते-होते श्रिंप मर कर तैरने लगती हैं। ऐसा लगता है जैसे कुछ बचा ही न हो।”
आंध्र प्रदेश से शुरू होकर यह बीमारी अब ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल तक फैल चुकी है। जिन इलाकों को कभी ‘श्रिम्प बेल्ट’ कहा जाता था, वहां आज डर और अनिश्चितता है। कई गांवों में एक तालाब के बाद दूसरा तालाब खाली किया जा रहा है।
इस बीमारी से प्रभावित झींगे खाना कम कर देते हैं, सुस्त हो जाते हैं और उनके शरीर का रंग लाल पड़ने लगता है। झींगे के खोल (कारापेस) और शरीर के अन्य कठोर हिस्सों पर गोल-गोल सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। हालांकि वैनामी झींगे में ये सफेद धब्बे कई बार साफ़ नज़र नहीं आते। संक्रमण के 2–3 दिन बाद झींगों की मौत शुरू हो सकती है और 5–7 दिनों के भीतर 80–90 प्रतिशत तक झींगे मर सकते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार WSSV बेहद संक्रामक है। पानी, संक्रमित बीज, जाल, पंप, यहां तक कि पक्षियों के ज़रिए भी वायरस फैल सकता है। एक बार तालाब में पहुंचने पर 3 से 7 दिनों में लगभग पूरी फसल नष्ट हो सकती है।
आईसीएआर-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ से आंध्र प्रदेश को हर साल लगभग ₹3,975 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है। अध्ययन में पाया गया कि विशेष रूप से EHP (Enterocytozoon hepato-penaei) और WSSV (White Spot Syndrome Virus) के संक्रमण के कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है। WSSV के मामलों में 4.5 मीट्रिक टन/हेक्टर का नुकसान होता है।
आईसीएआर-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एम मुरलीधर बताते हैं, "व्हाइट स्पॉट की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका कोई इलाज नहीं है। रोकथाम ही एकमात्र रास्ता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर जैव-सुरक्षा का पालन बहुत मुश्किल है, खासकर छोटे किसानों के लिए।”
किसानों के अनुसार जब निवेश ही 10–15 लाख रुपये प्रति एकड़ हो, तब हर बार नई तकनीक, नए केमिकल और नई सावधानियों का खर्च कौन उठाए? झींगा पालन सिर्फ किसान तक सीमित नहीं है। इससे मज़दूर, फीड सप्लायर, आइस फैक्ट्री, ट्रांसपोर्ट और प्रोसेसिंग यूनिट, सब जुड़े हैं।
ओडिशा के पुरी ज़िले के किसान उमाकांत बताते हैं, “हर साल इसकी वजह से नुकसान उठाना पड़ता है, बहुत से किसानों तो फार्मिंग ही छोड़ना चाहते हैं।"
यह बीमारी सिर्फ़ तालाब नहीं मार रही, बल्कि पूरे परिवारों की आर्थिक रीढ़ तोड़ रही है। कई किसान खेती छोड़कर दिहाड़ी मजदूरी की ओर लौट रहे हैं। प्रोसेसिंग यूनिट्स में काम करने वाले मज़दूरों के दिन भी कम होते जा रहे हैं। झींगा निर्यात घटने से तटीय इलाकों की पूरी अर्थव्यवस्था दबाव में है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। बढ़ता तापमान, पानी की गुणवत्ता में गिरावट और अधिक घनत्व में पालन, ये सब मिलकर वायरस को और आक्रामक बना रहे हैं।
डॉ एम मुरलीधर आगे कहते हैं, “जब पर्यावरण अस्थिर होता है, तो बीमारी को फैलने का मौका मिल जाता है। व्हाइट स्पॉट उसी असंतुलन का नतीजा है।”
फिलहाल किसान हर नए सीज़न की शुरुआत डर के साथ कर रहे हैं, क्या इस बार फसल टिकेगी या फिर कुछ ही दिनों में सब खत्म हो जाएगा? आंध्र से ओडिशा तक फैले इन तालाबों में आज सिर्फ़ झींगे नहीं तैर रहे, बल्कि कर्ज़, चिंता और टूटती उम्मीदें भी हैं।
व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ अब सिर्फ़ एक बीमारी नहीं रही, यह तटीय भारत के झींगा किसानों के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है।
यह बीमारी व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (WSSV) नाम के वायरस से होती है। यह एक डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए वायरस है, जो Nimaviridae परिवार से जुड़ा हुआ है।
व्हाइट स्पॉट रोग दो तरीकों से फैल सकता है
संक्रमित ब्रूडस्टॉक से पोस्ट-लार्वा में बीमारी जाना। इसलिए हमेशा PCR से जांचे गए स्वस्थ बीज (सीड) ही तालाब में डालने चाहिए।
संक्रमित जीवों को खाने (कैनिबलिज़्म) से या रोग वाहक जीवों के जरिए, केकड़े, जंगली झींगे, स्क्विला, कोपेपोड, क्रेफिश, मीठे पानी के झींगे, पॉलीकीट कीड़े और कुछ अन्य जीव WSSV के वाहक हो सकते हैं। ये तालाब में घुसकर बीमारी फैला सकते हैं। इसलिए पानी की अच्छी तरह से फिल्टरिंग और तालाब की बाड़बंदी बहुत ज़रूरी है।
NSPAAD (National Surveillance Programme for Aquatic Animal Diseases) के तहत देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जलीय पशुओं के रोगों पर नियमित नज़र रखी जाती है। इसका मकसद यह है कि बीमारी का खतरा समय रहते पहचाना जा सके, उसका बेहतर इलाज और प्रबंधन हो सके और जलीय पर्यावरण स्वस्थ बना रहे। इसी योजना के तहत भारत सरकार के मत्स्य पालन विभाग ने “Report Fish Disease” नाम का एक मोबाइल ऐप भी शुरू किया है। यह ऐप मछली और झींगा किसानों, ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले अधिकारियों और मछली रोग विशेषज्ञों को एक ही मंच पर जोड़ता है, ताकि बीमारी की जानकारी जल्दी और आसानी से साझा की जा सके।
आंध्र प्रदेश सरकार के अनुसार, चल रहे रोग निगरानी कार्यक्रम के तहत फील्ड टीमें हर 15 दिन में राज्य के अलग-अलग इलाकों से झींगा और अन्य जलीय कृषि के नमूने इकट्ठा कर रही हैं। इन नमूनों की जांच काकीनाडा स्थित राज्य मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (SIFT) की तय की गई प्रयोगशाला में की जाती है। 1 जनवरी 2025 से 17 दिसंबर तक, सामान्य निगरानी के दौरान चार नमूने व्हाइट स्पॉट रोग के वायरस (WSSV) से संक्रमित पाए गए हैं। इसके अलावा, विशेष निगरानी के तहत आंध्र प्रदेश में 23 नमूनों में भी व्हाइट स्पॉट वायरस की पुष्टि हुई है।
White Spot Syndrome Virus (WSSV) नाम का वायरस कुछ ही दिनों में पूरे तालाब की झींगा फसल को खत्म कर देता है। जिन झींगों पर महीनों की मेहनत, लाखों रुपये और भविष्य की उम्मीदें टिकी होती हैं, वे अचानक मरने लगते हैं। जब तक किसान को समझ आता है कि कुछ गड़बड़ है, तब तक देर हो चुकी होती है।
व्हाइट स्पॉट रोग झींगा पालन में होने वाली एक बहुत गंभीर वायरल बीमारी है, जो पूरी दुनिया में झींगा किसानों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। यह बीमारी लगभग सभी तरह के झींगों (जैसे ब्लैक टाइगर झींगा, वैनामी, इंडिकस आदि) और केकड़ों को प्रभावित कर सकती है। झींगे के अंडे, लार्वा से लेकर बड़े झींगे तक, सभी अवस्थाएं इस वायरस से संक्रमित हो सकती हैं।
इस बीमारी से प्रभावित झींगे खाना कम कर देते हैं, सुस्त हो जाते हैं और उनके शरीर का रंग लाल पड़ने लगता है।
वेस्ट गोदावरी के भीमावरम के झींगा किसान सत्यनारायण राजू कहते हैं, “सुबह तक सब ठीक रहता है। दोपहर में झींगे खाना छोड़ देते हैं और रात होते-होते श्रिंप मर कर तैरने लगती हैं। ऐसा लगता है जैसे कुछ बचा ही न हो।”
आंध्र प्रदेश से शुरू होकर यह बीमारी अब ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल तक फैल चुकी है। जिन इलाकों को कभी ‘श्रिम्प बेल्ट’ कहा जाता था, वहां आज डर और अनिश्चितता है। कई गांवों में एक तालाब के बाद दूसरा तालाब खाली किया जा रहा है।
इस बीमारी से प्रभावित झींगे खाना कम कर देते हैं, सुस्त हो जाते हैं और उनके शरीर का रंग लाल पड़ने लगता है। झींगे के खोल (कारापेस) और शरीर के अन्य कठोर हिस्सों पर गोल-गोल सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। हालांकि वैनामी झींगे में ये सफेद धब्बे कई बार साफ़ नज़र नहीं आते। संक्रमण के 2–3 दिन बाद झींगों की मौत शुरू हो सकती है और 5–7 दिनों के भीतर 80–90 प्रतिशत तक झींगे मर सकते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार WSSV बेहद संक्रामक है। पानी, संक्रमित बीज, जाल, पंप, यहां तक कि पक्षियों के ज़रिए भी वायरस फैल सकता है। एक बार तालाब में पहुंचने पर 3 से 7 दिनों में लगभग पूरी फसल नष्ट हो सकती है।
आईसीएआर-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ से आंध्र प्रदेश को हर साल लगभग ₹3,975 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है। अध्ययन में पाया गया कि विशेष रूप से EHP (Enterocytozoon hepato-penaei) और WSSV (White Spot Syndrome Virus) के संक्रमण के कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है। WSSV के मामलों में 4.5 मीट्रिक टन/हेक्टर का नुकसान होता है।
आईसीएआर-केंद्रीय खारा जलजीव पालन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एम मुरलीधर बताते हैं, "व्हाइट स्पॉट की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका कोई इलाज नहीं है। रोकथाम ही एकमात्र रास्ता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर जैव-सुरक्षा का पालन बहुत मुश्किल है, खासकर छोटे किसानों के लिए।”
व्हाइट स्पॉट रोग झींगा पालन में होने वाली एक बहुत गंभीर वायरल बीमारी है, जो पूरी दुनिया में झींगा किसानों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है।
किसानों के अनुसार जब निवेश ही 10–15 लाख रुपये प्रति एकड़ हो, तब हर बार नई तकनीक, नए केमिकल और नई सावधानियों का खर्च कौन उठाए? झींगा पालन सिर्फ किसान तक सीमित नहीं है। इससे मज़दूर, फीड सप्लायर, आइस फैक्ट्री, ट्रांसपोर्ट और प्रोसेसिंग यूनिट, सब जुड़े हैं।
ओडिशा के पुरी ज़िले के किसान उमाकांत बताते हैं, “हर साल इसकी वजह से नुकसान उठाना पड़ता है, बहुत से किसानों तो फार्मिंग ही छोड़ना चाहते हैं।"
यह बीमारी सिर्फ़ तालाब नहीं मार रही, बल्कि पूरे परिवारों की आर्थिक रीढ़ तोड़ रही है। कई किसान खेती छोड़कर दिहाड़ी मजदूरी की ओर लौट रहे हैं। प्रोसेसिंग यूनिट्स में काम करने वाले मज़दूरों के दिन भी कम होते जा रहे हैं। झींगा निर्यात घटने से तटीय इलाकों की पूरी अर्थव्यवस्था दबाव में है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। बढ़ता तापमान, पानी की गुणवत्ता में गिरावट और अधिक घनत्व में पालन, ये सब मिलकर वायरस को और आक्रामक बना रहे हैं।
डॉ एम मुरलीधर आगे कहते हैं, “जब पर्यावरण अस्थिर होता है, तो बीमारी को फैलने का मौका मिल जाता है। व्हाइट स्पॉट उसी असंतुलन का नतीजा है।”
फिलहाल किसान हर नए सीज़न की शुरुआत डर के साथ कर रहे हैं, क्या इस बार फसल टिकेगी या फिर कुछ ही दिनों में सब खत्म हो जाएगा? आंध्र से ओडिशा तक फैले इन तालाबों में आज सिर्फ़ झींगे नहीं तैर रहे, बल्कि कर्ज़, चिंता और टूटती उम्मीदें भी हैं।
व्हाइट स्पॉट डिज़ीज़ अब सिर्फ़ एक बीमारी नहीं रही, यह तटीय भारत के झींगा किसानों के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है।
व्हाइट स्पॉट रोग किस कारण से होता है?
यह बीमारी कैसे फैलती है?
संक्रमित ब्रूडस्टॉक से पोस्ट-लार्वा में बीमारी जाना। इसलिए हमेशा PCR से जांचे गए स्वस्थ बीज (सीड) ही तालाब में डालने चाहिए।
संक्रमित जीवों को खाने (कैनिबलिज़्म) से या रोग वाहक जीवों के जरिए, केकड़े, जंगली झींगे, स्क्विला, कोपेपोड, क्रेफिश, मीठे पानी के झींगे, पॉलीकीट कीड़े और कुछ अन्य जीव WSSV के वाहक हो सकते हैं। ये तालाब में घुसकर बीमारी फैला सकते हैं। इसलिए पानी की अच्छी तरह से फिल्टरिंग और तालाब की बाड़बंदी बहुत ज़रूरी है।
व्हाइट स्पॉट रोग से बचाव कैसे करें?
- इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, इसलिए बचाव ही सबसे बड़ा उपाय है।
- तालाब की सही तैयारी करें। गीली और काली मिट्टी हटाएं, तालाब को सुखाएं और चूना डालें।
- दो फसलों के बीच कम से कम 3–4 हफ्ते का अंतर रखें ताकि मिट्टी पूरी तरह सूख सके।
- जंगली झींगे, केकड़े और अन्य वाहक जीवों को तालाब में घुसने से रोकें।
- तालाब में जाने वाले हर पानी को 30 ppm कैल्शियम हाइपोक्लोराइट से कीटाणुरहित करें।
- केवल PCR से जांचे गए, WSSV-फ्री और स्वस्थ पोस्ट-लार्वा ही डालें।
- कड़ी बायोसिक्योरिटी अपनाएं – जैसे रिज़रवॉयर तालाब, पक्षी और केकड़ा रोकने की बाड़, लोगों और मशीनों की सफ़ाई।
- अच्छी जल गुणवत्ता, सही मात्रा में चारा और नियमित निगरानी के लिए Best Management Practices (BMP) अपनाएं।
- कम पानी, ज़्यादा स्टॉकिंग, खराब पानी और ज़्यादा तापमान जैसे तनावपूर्ण हालात से बचें।
- ज़रूरत के अनुसार प्रमाणित प्रोबायोटिक्स और इम्यूनोस्टिमुलेंट का इस्तेमाल करें।
- पालन के दौरान समय-समय पर झींगों की WSSV जांच कराएं।
अगर तालाब में व्हाइट स्पॉट फैल जाए तो क्या करें?
- तालाब की जल गुणवत्ता बनाए रखने के लिए चारा कम कर दें।
- pH 7.5 से ऊपर रखने के लिए चूना डालें।
- आसपास के किसान पानी का आदान-प्रदान न करें और संक्रमित तालाब के जाल, पंप, नाव या अन्य उपकरण इस्तेमाल न करें।
- अगर मौत तेज़ी से बढ़ रही हो, तो संक्रमित पानी बाहर जाने से रोकने के लिए तुरंत आपात कटाई (Emergency Harvest) करें।
- मरे हुए झींगों को इकट्ठा कर तालाब से दूर ज़मीन में दबा दें।
- संक्रमित तालाब के पानी को 50 ppm क्लोरीन (ब्लिचिंग पाउडर) से 2–3 दिन तक उपचारित करें और फिर एक दिन तेज़ एरेशन दें।
- आसपास के किसानों को बीमारी, कटाई और पानी छोड़ने की जानकारी समय पर दें।
- तालाब का पानी सीधे बाहर न छोड़ें, पहले उसे एफ्लुएंट ट्रीटमेंट सिस्टम (ETS) से साफ़ करें।
किसानों के लिए मोबाइल ऐप
आंध्र प्रदेश सरकार के अनुसार, चल रहे रोग निगरानी कार्यक्रम के तहत फील्ड टीमें हर 15 दिन में राज्य के अलग-अलग इलाकों से झींगा और अन्य जलीय कृषि के नमूने इकट्ठा कर रही हैं। इन नमूनों की जांच काकीनाडा स्थित राज्य मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (SIFT) की तय की गई प्रयोगशाला में की जाती है। 1 जनवरी 2025 से 17 दिसंबर तक, सामान्य निगरानी के दौरान चार नमूने व्हाइट स्पॉट रोग के वायरस (WSSV) से संक्रमित पाए गए हैं। इसके अलावा, विशेष निगरानी के तहत आंध्र प्रदेश में 23 नमूनों में भी व्हाइट स्पॉट वायरस की पुष्टि हुई है।