लॉकडाउन में फंसे मधुमक्खी पालक, भूख और गर्मी से मर रहीं हैं मधुमक्खियां

Divendra SinghDivendra Singh   14 April 2020 11:33 AM GMT

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कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन से हम और आप ही नहीं मधुमक्खियां भी अपने घरों (बॉक्स) में कैद होकर रह गई हैं। ज्यादातर मधुमक्खियों के लिए ये माइग्रेशन (एक जगह से दूसरी जगह जाने) का टाइम था। जिसके चलते करोड़ों मधुमक्खियां मरने के कगार पर पहुंच गई हैं।

अगर ये मधुमक्खियां सही समय पर अपने अनुकूल भोजन और जलवायु इलाके में न पहुंची तो तो न सिर्फ भारत में शहद उत्पादन काफी कम हो जाएगा बल्कि परागण न होने से सेब और लीची उत्पादन भी पर भी असर पड़ेगा।

अरविंद सैनी यूपी में सहारनपुर के मधुमक्खी पालक हैं, पिछले 18 सालों से अलग-अलग राज्यों में मधुमक्खी पालन करते हैं। इस वक्त उनके 20 हजार बॉक्स राजस्थान के बूंदी जिले में हैं। जिनकी कीमत करीब 45 लाख से 50 लाख रुपए के करीब है।


अरविंद सैनी की मुसीबत ये है कि मधुमक्खी 30 डिग्री तापमान के ऊपर मरने लगती हैं और राजस्थान का तापमान 40 डिग्री के आसपास पहुंच चुका है। बक्शे धूप में रखे हैं और अरविंद अपने घर सहारनपुर में लॉकडाउन हैं।

अरविंद कहते हैं, "लॉकडाउन से पहले हम अपने घर सहारनपुर आ गए थे एक व्यक्ति वहां मौजूद है हम सहारनपुर में फंसे हैं बड़ी समस्या हमारे सामने हैं हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि कम से कम इतना तो हो माइग्रेशन कर सकें मधुमक्खी को जीवित बचा सकें।"

इसी तरह पंजाब के लुधियाना में मोगा के रहने वाले जसविंदर धालीवाल देश के राज्यों में मधुमक्खियों की कॉलोनी (बक्सों) के साथ घूमते हैं। सरसों के वक्त, राजस्थान और पंजाब में होते हैं तो गर्मियों में हिमाचल के सेब बागानों में चले जाते हैं। लेकिन लॉकडाउन के चलते वो पंजाब में फंसे हैं और मधुमक्खियां राजस्थान में हैं।

जसविंदर धारीवाल फोन पर बताते हैं, "हमारे पर 600 बक्शे हैं, इस वक्त मुझे लेकर हिमाचल पहुंच जाना चाहिए था लेकिन पुलिस हमको पंजाब से निकलने नहीं दे रही है। हमारे जैसे बहुत सारे मधुमक्खी पालक हैं जो राजस्थान में फंसे हैं।"

जसविंदर धालीवाल के कुछ बॉक्स अभी पंजाब में हैं, यहाँ पर भी कोई फसल नहीं बची है

जसविंदर की तरह यूपी के राकेश गुप्ता भी परेशान हैं। उनके भी बॉक्स रायबरेली में हैं। मार्च में उन्हें उत्तराखंड के लीची बागान में ले जाने वाले थे।

राकेश गुप्ता बताते हैं, "अभी मेरी मधुमक्खियां रायबरेली में हैं, उन्हें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश ले जाना था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से नहीं ले जा पाए। रायबरेली हो या राजस्थान वहां ऐसी कोई फसल नहीं जिससे मधुमक्खियां भोजन जुटा पाएं, हम लोग इस मुश्किल में हैं और चीनी से फीडिंग करवा रहे हैं।"

साल 2019 पहले ही मधुमक्खी पालकों (मौन पालक) के लिए मुश्किल भरा रहा है। साल में कई बार मौसम बिगड़ने से कई राज्यों में शहद उत्पादन आधे से भी कम रहा है।

लखनऊ के मधुमक्खी पालक और विशेषज्ञ निमित सिंह बताते हैं, "इस बार नवम्बर में ज्यादा सर्दी उसके बाद जनवरी फरवरी में बारिश से इस बार शहद उत्पादन कम हुआ था, और अब लॉकडाउन, इस बार हमें बहुत नुकसान होने वाला है।"

हर साल पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हज़ारों मधुमक्खी पालक ट्रकों में मधुमक्खी के बॉक्स लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर जैसे लीची वाले इलाकों, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, यूपी में मलिहाबाद आम बेल्ट में पहुंच जाते थे, लेकिन लॉकडाउन में लोग जहां थे वहीं रह गए। इन लोगों के सामने खाने की समस्या के साथ ही बढ़ता तापमान चिंता बढ़ा रहा है।

20 मार्च से 20 अप्रैल तक मधुमक्खियों के माइग्रेशन का टाइम होता है। बीकीपर वेलफेयर सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष दुष्यंत सिंह बताते हैं, "मधुमक्खी 26- 27 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस तक यह जीवित रह सकती हैं और अब राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, अन्य राज्यों में माइग्रेशन बहुत जरूरी है, जिसमें मधुमक्खी को जिंदा बचाया जा सकता है। माइग्रेशन में हद से ज्यादा परेशानी आ रही है और जो छोटे तबके के मधुमक्खी पालक हैं वह इस लॉकडाउन से खत्म होने की कगार पर हैं।"

मधुमक्खी पालक किसान, वैज्ञानिक और सेब, लीची के बागान मालिक भी इससे काफी परेशान हैं। हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं औद्यानिक विश्वविद्यालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ दिनेश सिंह ठाकुर कहते हैं, "अगर मधुमक्खियां नहीं होंगी तो उत्पादन पर असर तो पड़ेगा ही, क्योंकि सेब में हवा के जरिए पॉलीनेशन (परागण) नहीं होता, मधुमक्खियों के जरिए ही होता है, हिमाचल में भी मधुमक्खी पालक हैं लेकिन इतने ज्यादा नहीं हैं कि पूरे एरिया को कवर कर पाएं।"

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर के भीम सिंह नेगी भी मधुमक्खी पालन करते हैं, वो बताते हैं, "मैं सेब की खेती भी करता हूँ और मधुमक्खी पालन भी, मेरी जितनी मधुमक्खियां हिमाचल में थीं, उन्हें तो यहाँ ले आया, लेकिन अभी भी उत्तर प्रदेश में बहुत सी फंसी हुईं हैं।"

भीम सिंह नेगी के कुछ बॉक्स अभी हिमाचल प्रदेश में हैं।

सेब ही नही लीची उत्पादन के लिए भी मधुमक्खियां जरुरी होती हैं, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब जैसे कई राज्यों में लीची कि बागवानी होती है, लेकिन इस बार यहाँ भी मधुमक्खी पालक नहीं पहुंच पाएं हैं। बीकीपरों के अनुसार मुजफ्फरपुर मुश्किल से 10-15 फीसदी ही मधुमक्खियां पहुंच पाई हैं।

बिहार के मुज्जफरपुर में स्थित लीची अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ विशाल नाथ कहते हैं, "यही सही समय होता है, जब मधुमक्खियां लीची के परागण में मदद करती हैं, बिहार के मधुमक्खी पालकों के साथ ही उत्तर प्रदेश से भी लोग आते हैं, जो इस बार नहीं आ पाएं, अगर मधुमक्खियां नहीं होंगी तो उत्पादन पर तो असर पड़ेगा ही।"


मधु मक्खियों के जो बक्शे उत्तर प्रदेश और राजस्थान के सरसों के खेतों में रखे गए वहां, सरसों तो कट गयी और तापमान बढ़ने के साथ ही धूप भी तेज होने लगी है, जिससे मधुमक्खियों को बचाना मुश्किल हो रहा है।

मधुमक्खी पालक निमित सिंह बताते हैं, "हमने जहां भी अपने बक्सों को रखा हुआ है, वहां पर उन्हें छाया नहीं मिल रही है, तेज धूप से मधुमक्खियाँ मरती जा रहीं हैं, हम अपनी मधुमक्खी को चीनी का घोल भी नहीं खिला पा रहे हैं, अगर हम बाज़ार में चीनी खरीदने जाते हैं तो लोगों को यही लगता है कि हम चीनी का स्टॉक कर रहे हैं, इस वजह चीनी भी नहीं मिल पा रही है, अगर हमारे पास 50 बॉक्स हैं तो कम से कम 50 किलो चीनी चाहिए ही होती है।"

बीकीपर वेलफेयर सोसाइटी के अनुसार, उत्तरप्रदेश के मधुमक्खी पालकों की बात करें तो लगभग मे 15 से 20 हजार से अधिक मधुमक्खी पालक हैं, जोकि मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, रामपुर, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, फैजाबाद, फिरोजाबाद अन्य जिलों से आते हैं। इसके अलावा अगर हम अन्य राज्यों की बात करें तो राजस्थान से लगभग 20 हज़ार मधुमक्खी पालक हरियाणा राज्य से लगभग 25 हजार मधुमक्खी पालन करते हैं, आज सभी के सामने बड़ा संकट हैं।

उत्तर प्रदेश बीक पर सोसायटी के प्रदेश अध्यक्ष धर्मराज सिंह बताते हैं, "मधुमक्खी पालकों के सामने माइग्रेशन का बड़ा संकट है और हम सरकार से चाहते हैं कि हमारे तीन से चार लोग परमिशन द्वारा माइग्रेशन कर सकें अगर ऐसा नहीं होता है तो हम मधुमक्खी को जिंदा नहीं रख पाएंगे उनकी मौत निश्चित है।"

वह आगे बताते है, "रामपुर के रहने वाले एक किसान की मधुमक्खी के बॉक्स टांडा क़स्बे में रखी हुई थी। लॉकडाउन के कारण वह मधुमक्खियों पर नहीं जा पाया और उसके 42 बॉक्स मधुमक्खी सहित जल गए जिसमे उसका एक लाख से अधिक का नुकसान हो गया।"


नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही शहद उत्पादन पर काफी जोर दिया। मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने हनी मिशन की शुरुआत की है, हनी मिशन की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात मे बनासकांठा से की थी। भारत के शहद की दुनियाभर के देशों में काफी मांग भी है लेकिन इस बार किसान परेशान हैं।

एपीडा के अनुसार साल 2018-19 में दुनिया भर में 61,333.88 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन किया गया। यूएसए, यूएई, मोरक्को, सऊदी अरब, कतर जैसे प्रमुख निर्यातक देश हैं।

(इनपुट: मोहित सैनी, मेरठ)

     

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