नवी मुंबई में वायू प्रदूषण की वजह से कृत्रिम फेफड़ें पड़ गए काले
महाराष्ट्र के नवी मुंबई के खरघर में लगाए गए कृत्रिम फेफड़ों का रंग दस दिन में काला पड़ गया जिससे यहां वायु प्रदूषण के स्तर का पता चलता है। पनवेल की महापौर ने वायु प्रदूषण को समझने के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की है।
गाँव कनेक्शन 8 Feb 2021 10:26 AM GMT

"द बिलबोर्ड दैट ब्रीथ" नाम के एक विशालकाय कृत्रिम फेफड़ों को नवी मुंबई के खरघर में 15 जनवरी को स्थापित किए गए। इन कृत्रिम फेफड़ों का रंग महज दस दिन में ही काला पड़ गया। फेफड़ों की यह हालत देख वहां के स्थानीय लोग अवाक रह गए।
यह कृत्रिम फेफड़ा खरघर-तलोजा-पनवेल इलाके में वातावरण फ़ाउंडेशन के प्रदूषण मुक्ति अभियान का एक हिस्सा है। वातावरण फ़ाउंडेशन एक गैर लाभकारी समाजसेवी संगठन है जो पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर काम करता हैं।
दिसंबर 2020 में वातावरण फ़ाउंडेशन के एक अध्ययन के अनुसार इस इलाके के लोग वायु प्रदूषण की बेहद खराब परिस्थितियों में सांस ले रहे हैं। खासकर सुबह 6 बजे से लेकर सुबह 8 बजे के बीच यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। इस वक्त हवा में पार्टिकुलेट मैटर का घनत्व सबसे अधिक होता है। (खासकर पीएम 2.5, जिसका स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ता है)
Time is ticking away. We urgently need a systematic plan to mitigate #airpollution in Navi Mumbai-Kharghar-Panvel region.
— Waatavaran (@waatavaran) January 28, 2021
We demand #CleanAirFoAll!@AUThackeray @CPCB_OFFICIAL @PanvelCorp @ithakurprashant @PrakashJavdekar @rajeshtope11 @BansodeSpeaks pic.twitter.com/VNMiJtOSdx
21 दिसंबर 2020 को जारी, शोध पत्रिका द लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ की रिपोर्ट "द इंडियन स्टेट-लेवल डिसीज़ बर्डन इनिशिएटिव" के मुताबिक साल 2019 में वायु प्रदूषण के कारण देश भर में 17 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
पिछले साल जनवरी में वातावरण फ़ाउंडेशन ने मुंबई के बांद्रा में इसी तरह के कृत्रिम फेफड़े लगाए थे। यह भी तकरीबन 14 दिन में काले पड़ गए थे। इसी तरह साल 2018 में ऐसे ही फेफड़े दिल्ली में भी लगाए गए, जिन्हें काला पड़ने में केवल 6 दिन का वक्त लगा।
वातावरण फ़ाउंडेशन के संस्थापक भगवान केसभट ने बताया, "खारघर में दूसरे दिन से ही फेफड़ों का रंग बदलना शुरु हो गया था। इसके बाद सातवें दिन आते-आते इनका रंग गहरा सलेटी (grey) हो गया। सोमवार, 25 जनवरी को हमने पाया कि फेफड़ों का रंग पूरी तरह से काला पड़ गया है।" यह दर्शाता है कि वातावरण में प्रदूषणकारी पार्टिकुलेट मैटर की मौजूदगी बेहद अधिक है।
इस मुहिम ने आस पास रहने वाले नागरिकों का ध्यान उस प्रदूषित हवा की तरफ़ आकर्षित किया जिसमें वो सांस ले रहे हैं। इस बिलबोर्ड के कारण क्षेत्र में व्याप्त वायु प्रदूषण की ओर पनवेल विधायक प्रशांत ठाकुर, पनवेल महापौर कविता चौटमल एवं अन्य प्रतिनिधियों का ध्यान भी आकर्षित हुआ है। वातावरण में फैले ज़हरीले कणों के प्रति चिंता जताते हुए महापौर चौटमल ने प्रदूषण का अध्ययन करने एवं संभावित उपायों का विचार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने की मांग की है।
एक स्थानीय निवासी श्रीकांत कोलारे ने कहा, "जिस रफ्तार से इन कृत्रिम फेफड़ों का रंग काला हुआ है वह पनवेल-खारघर के निवासियों के लिए बेहद चिंताजनक है।" उन्होंने कहा कि यह बच्चों और बुजुर्गों द्वारा जहरीली हवा में ली जाने वाली सांस के संदर्भ में भयानक सच से सामना कराने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को इस दिशा में तुरंत प्रयास करने चाहिए। इसके साथ ही नागरिकों को भी सामूहिक स्तर पर आवाज़ उठाते हुए त्वरित कार्रवाई की मांग करनी चाहिए।
मुंबई के नानावटी अस्पताल में फेफड़ों के विशेषज्ञ सलिल बेंद्रे ने कहा, "फेफड़ों का काला पड़ना फेफड़ों में हानिकारक पदार्थों का जमना दर्शाता है। भारत में वायु प्रदूषण फेफड़ों से संबंधित बीमारियों का प्रमुख कारण है।" उन्होंने यह भी कहा कि प्रदूषण का ऐसा स्तर मुंबई के नागरिकों में फेफड़ों से संबंधित बीमारियों का कारण बन सकता है। यह अभियान वायु प्रदूषण नियंत्रण की फ़ौरी ज़रूरत को बताता है।
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