जलवायु परिवर्तन है साइबेरिया में बढ़ती गर्मी और हीट वेव का कारण: शोध

साइबेरिया ने बीते जनवरी से जून के बीच जैसी हीट वेव्स महसूस की है, वह पिछले 80,000 सालों में पहली बार है। इस विश्लेषण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण इन हीट वेव्स की सम्भावना 600 गुना तक बढ़ गई हैं।

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जलवायु परिवर्तन है साइबेरिया में बढ़ती गर्मी और हीट वेव का कारण: शोधसाइबेरिया में बढ़ता हीट वेव का प्रभाव (फोटो- बर्कले अर्थ/ वाशिंगटन पोस्ट)

दुनिया के कुछ सबसे बेहतरीन क्लाइमेट वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए एक ताजा विश्लेषण के अनुसार, साइबेरिया में बीती जनवरी से जून 2020 के बीच पड़ने वाली जबरदस्त गर्मी का प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन है और इस जलवायु परिवर्तन के लिए इंसानी गतिविधियां ही ज़िम्मेदार हैं।

पी.पी. शिर्शोव इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसियनोलॉजी (समुद्र विज्ञान) और रूसी विज्ञान अकादमी सहित अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और मौसम विज्ञान सेवाओं के शोधकर्ताओं के समूह ने अपने विश्लेषण में यह भी पाया कि अगर मानव प्रजाति ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कर जलवायु को प्रभावित नहीं किया होता तो वहां का औसत तापमान 2°C से अधिक नहीं बढ़ा होता।

इस वर्ष की शुरुआत से ही साइबेरिया में तापमान औसत से ऊपर रहा है। आर्कटिक के लिए 38° C का एक नया रिकॉर्ड तापमान 20 जून को रूसी शहर वेरखोयान्स्क में दर्ज किया गया था, जबकि साइबेरिया का कुल तापमान जनवरी से जून तक औसत से 5°C अधिक था।

उच्च तापमान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मापने के लिए वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन चलाए, जिसमें आज के जलवायु के मिजाज़ की तुलना मानन प्रभाव के बिना जैसे जलवायु होता उसके साथ करने की कोशिश की। इस विश्लेषण से पता चला है कि जैसी लंबी गर्मी साइबेरिया में इस साल जनवरी से जून तक अनुभव की गई थी, वैसी गर्मी बिना मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के 80,000 वर्षों में केवल एक बार ही कभी महसूस की गई होगी।

इसका अर्थ यह है कि ऐसी स्थिति बिना मानव जनित जलवायु परिवर्तन में लगभग असंभव है। बिना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से पैदा हुई गर्मी के ऐसा नहीं हो सकता था। जलवायु परिवर्तन ने लंबे समय तक गर्मी की संभावना को कम से कम 600 गुना तक बढ़ा दिया। यह अब तक किए गए किसी भी एट्रिब्यूशन अध्ययन के सबसे मजबूत परिणामों में से है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि वर्तमान जलवायु में भी लंबे समय तक ऐसी गर्मी की संभावना बहुत कम थी। ऐसी चरम स्थितियों की संभावना हर 130 साल में एक बार से भी कम होती है। लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कटौती के बिना सदी के अंत तक उसके ज़्यादा फ्रिक्वेंसी से होने का जोखिम है।

साइबेरिया में गर्मी ने व्यापक आग भड़का दी है। जून के अंत में 1.15 मिलियन हेक्टेयर भूक्षेत्र जल चुके थे। यह लगभग 56 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के साथ जुड़ा हुआ है, जो कि स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे कुछ औद्योगिक देशों के वार्षिक उत्सर्जन से अधिक है। इसने पारमाफ्रॉस्ट के पिघलने की गति को भी तेज कर दिया।

मई में जमी हुई मिट्टी पर बना एक तेल टैंक ढह गया, जिससे इस क्षेत्र में अब तक के सबसे खराब तेल रिसाव में से एक हुआ। ग्रीनहाउस गैसें आग और पिघलाव के द्वारा रिहा होती हैं। साथ ही बर्फ के नुकसान से ग्रह और गर्म होगा और ग्रह की परावर्तन क्षमता में भी कमी आती है। गर्मी को रेशम कीटों के प्रकोप से भी जोड़ा गया है, जिनके लार्वा शंकुधारी पेड़ खाते हैं।

पी.पी. शिर्शोव इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसियनोलॉजी के प्रोफेसर ओल्गा ज़ोलिना ने कहा, "इस अध्ययन से न केवल यह पता चलता है कि तापमान की परिमाण मात्रा अत्यंत दुर्लभ है बल्कि मौसम का पैटर्न भी दुर्लभ है, जो इसका कारण बने। हम यह अध्ययन करना जारी रख रहे हैं कि हजारों हेक्टेयर में फैले जंगल कैसे आग की लपटों को प्रभावित कर सकते हैं क्योंकि आग की लपटें धुएं और वायुमंडल में राख भर देती हैं।"

शोध के प्रमुख लेखक और मेट ऑफिस में सीनियर डिटेक्शन एंड एट्रिब्यूशन साइंटिस्ट एंड्रयू सियावरेला ने कहा, "इस रैपिड रिसर्च के निष्कर्ष ने साइबेरिया में लंबे समय तक गर्मी की संभावना को कम से कम 600 गुना बढ़ा दिया। वास्तव में यह चौंका देने वाला है। यह शोध चरम तापमान का और सबूत है जिसे हम दुनिया भर में एक गर्म वैश्विक जलवायु में अधिक बार देखने की उम्मीद कर सकते हैं। महत्वपूर्ण रूप से, इन अत्यधिक गर्मी की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके नियंत्रित किया जा सकता है।"

350 से अधिक अध्ययन, रैपिड और साथ ही सहकर्मी की समीक्षा, ने जांच की है कि क्या जलवायु परिवर्तन ने विशेष रूप से मौसम की घटनाओं को अधिक संभावित बना दिया है। वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ग्रुप के पिछले अध्ययनों में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने इस साल की ऑस्ट्रेलियाई आग और पिछले जून में फ्रांस में रिकॉर्ड तोड़ हीटवेट की संभावना को और अधिक बढ़ा दिया। यह भी पाया गया कि ट्रॉपिकल स्टॉर्म इमेल्डा में सितंबर में टेक्सास में हुई बारिश को जलवायु परिवर्तन से अधिक संभावित और तीव्र बना दिया गया था।

ऑक्सफोर्ड के पर्यावरण परिवर्तन संस्थान के कार्यवाहक निदेशक डॉ फ्रेडेरिक ओटो ने इस विश्लेषण के बारे में कहा, "यह अध्ययन फिर से दिखाता है कि हीटवेव जलवायु परिवर्तन का कितना बड़ा हिस्सा है। यह देखते हुए कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में हीटवेव अब तक के सबसे घातक चरम मौसम की घटना है, उन्हें बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। चूंकि उत्सर्जन में वृद्धि जारी है, हमें दुनिया भर में अत्यधिक गर्मी का सामना करने में लचीलापन बनाने के बारे में सोचने की जरूरत है।"

इस अध्य्यन के बारे में आप और अधिक इस लिंक पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं-

https://www.worldweatherattribution.org/siberian-heatwave-of-2020-almost-impossible-without-climate-change

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