उत्तराखंड में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से 9 जिलों में रेड अलर्ट, कई गांव उजड़ें

विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में व्यापक भूस्खलन का कारण सड़क चौड़ीकरण परियोजनाएं और पहाड़ की कटाई है, जिस कारण गांव शहर से कट जाते हैं और खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं।

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उत्तराखंड में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से 9 जिलों में रेड अलर्ट, कई गांव उजड़ें

- मेघा प्रकाश

नौ अगस्त की रात लगभग साढ़े दस बजे उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे सागर रौथाण ने अचानक से एक तेज आवाज सुनी। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते अचानक से उनके पीछे से रसोई का एक हिस्सा बाढ़ के पानी के साथ तेजी से बहते हुए आया।

रौथाण ने गांव कनेक्शन से बताया, "मैं जल्दी से परिवार में मौजूद अन्य नौ सदस्यों को घर के बाहर ले गया और गांव में दूसरे लोगों की मदद करने के लिए दौड़ा। बादल फटने की वजह से भारी बारिश हो रही थी, जिससे हमारे गांव में बाढ़ आ गई। रात में अंधेरा होने की वजह से कुछ अधिक दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन सुबह हमारा सामना तबाही के एक मंजर से हुआ। घर ढह गए थे और हमारे खेत तबाह हो गए थे।"

एक अन्य ग्रामीण के साथ रौथाण ने उस रात कम से कम 50 ग्रामीणों, उनके मवेशियों और अन्य जानवरों को बचाया। सिलवारी बूंगा गांव के कुल 15 घरों में से तीन पूरी तरह से नष्ट हो गए जबकि सात अन्य बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। सभी निवासियों ने अपने घरों को छोड़ दिया और पास के स्कूल में उनके रहने की व्यवस्था की गई। वह अपने घरों में तब तक नहीं लौट सकते जब तक कि उनके घरों का पुनर्निर्माण नहीं किया जाता।

उत्तराखंड में बाढ़ के प्रकोप का सामना करने वाला सिलवाड़ी बूंगा एकमात्र गांव नहीं है। भारी बारिश के कारण कई जिलों में बाढ़ और भूस्खलन हुआ है। वहीं हालात और बुरे होने के भी आसार हैं।


देहरादून स्थित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मौसम विज्ञान केंद्र ने आने वाले दिनों में भी भारी बारिश होने का अनुमान जताया है। इससे राज्य में बाढ़ की स्थिति बढ़ सकती है। राज्य के कुल 13 जिलों में से नौ जिलों को रेड अलर्ट जारी किया गया है। इनमें चमोली, टिहरी, हरिद्वार, बागेश्वर, पिथौरागढ़, नैनीताल, अल्मोड़ा, चंपावत और उधम सिंह नगर शामिल हैं। साथ ही राज्य की राजधानी देहरादून में भी भारी बारिश के आसार जताए गए हैं।

राज्य में मानसून के आगमन के बाद से ही बारिश के कारण रोज कोई ना कोई आपदा हो रही है। जुलाई महीने में बारिश से जुड़ी घटनाओं में 45 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 127 लोग घायल हो गए थे। वहीं 61 लोगों को बचाव अभियान के तहत बचा लिया गया था। 12 अगस्त को रुद्रप्रयाग जिले में एक एसयूवी गाड़ी के खाई में गिर जाने की वजह से दो महिलाओं की मौत हो गई।

राज्य में लगातार हो रही ऐसी घटनाओं की वजह से लोग काफी डरे हुए हैं। सिलवाड़ी बूंगा गांव में कई जगहों पर जमीन में दरार पैदा हो गई है। 1986 में यहां बादल फटने के कारण एक भारी पत्थर अपनी जगह से विस्थापित होकर गांव के ठीक सामने आ गया था। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि भारी बारिश और बादल फटने के कारण पत्थर अपनी जगह से हट गया जिसकी वजह से इलाके में भूस्खलन की समस्या पैदा हो गई।

रौथाण ने कहा, "हमें डर है कि अगर पत्थर फिर अपनी जगह से खिसकता है, तो यह नीचे आ जाएगा और पूरे गांव को समतल कर देगा। इससे सैकड़ों लोगों की जान को भी खतरा है। हमारे गांव की जमीन में दरारें आ गई हैं और हमें डर है कि हमारी जमीन का कुछ हिस्सा नदी में भी बह सकता है। हमारी फसलें पहले ही नष्ट हो चुकी हैं।"


रौथाण की तरह ही कुलबीर मिथवान भी 9 अगस्त को सोने की तैयारी कर रहे थे, जब उन्होंने सिलेवारी बोंगा में अपने घर से 20-30 मीटर दूर गडेरा (प्राकृतिक पानी का झरना) के नीचे पानी की तेज आवाज सुनी। मिथवान ने गांव कनेक्शन से बताया, "मुझे उस वक्त ही महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है और मैं लोगों को बचाने के लिए बाहर निकला। गांव के बुजुर्ग लगातार डर के साये में जी रहे हैं।"

वर्तमान में भारी वर्षा के कारण राज्य की कई नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। ऋषिकेश और हरिद्वार में गंगा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। मौसम विज्ञान केंद्र, देहरादून के निदेशक बिक्रम सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि 14 अगस्त से 17 अगस्त तक भारी बारिश के लिए अलर्ट जारी किया गया है। जिला प्रशासन ने निचले इलाकों के लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है।

बागेश्वर जिले में सरयू और गोमती नदियों का जल-स्तर लगातार बढ़ रहा है। देहरादून में रिस्पना, सुसवा, बिंदल और सोंग जैसी नदियों में जल-स्तर बढ़ने के कारण निचले इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई है।

पिछले महीने से हो रही भारी बारिश ने न केवल गांव की सड़कों को खराब किया है बल्कि इस वजह से कनेक्टिविटी भी बाधित हुई है। उदाहरण के लिए 23 जुलाई को पिथौरागढ़ जिले की मुनस्यारी तहसील में भारी बारिश के कारण भूस्खलन हुआ और इसमें 10 से अधिक लोग मारे गए। साथ ही गैला और तांगा मुन्याल गांवों में भी भारी नुकसान होने की सूचना है। तांगा गांव में पांच घर ढह गए और ग्यारह लोग लापता हो गए। वहीं गेला गांव में दो घर ढह गए और तीन लोग मलबे के नीचे दब गए और उनकी मौत हो गई।

इस महीने की शुरुआत में बादल फटने से धापा और मुनस्यारी में कई झोंपड़ियां खंडहर में तब्दील हो गईं। पिथौरागढ़ के धारचूला से विधायक हरीश सिंह धामी ने गांव कनेक्शन को बताया, "फिलहाल लोगों को मेक-शिफ्ट शिविरों और सरकारी स्कूलों में रखा गया है। कुछ लोगों ने अपने मवेशियों के साथ सुरक्षित स्थानों पर शरण ली है। "

उन्होंने कहा, "हम बेहद चिंतित हैं क्योंकि ग्वालगांव क्षेत्र नीचे खिसक रहा है। यदि भारी बारिश के कारण यह टूटता है तो एक अनुमान के अनुसार धारचूला शहर का आधा हिस्सा मिट सकता है। "


भूस्खलन और डूबते गांव

एसपी सती ने गांव कनेक्शन को बताया, "यह भूस्खलन पहाड़ियों में सड़क चौड़ीकरण परियोजनाओं और वनों की कटाई का एक परिणाम है।" सती, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय, टिहरी गढ़वाल में पर्यावरण विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

सती ने बताया, "रोड कटिंग और चौड़ीकरण के दौरान भूस्खलन जैसी समस्या होती है लेकिन इस समय घट रही भूस्खलन की घटनाएं अनुमानित आकलन से भी ज्यादा हैं। उत्तरकाशी जिले के भटवारी ब्लॉक में हमने पहाड़ी की चोटी पर बसे एक छोटे से गांव रायथल में एक जीपीएस लगाया है जो भूकंप की भविष्यवाणी कर पपड़ी जमाव का अनुपात भी बताता है। इस मशीन के माध्यम से हमने दर्ज किया कि पूरा गांव प्रति वर्ष 10 फीट की दर से बैठ रहा है।"

इसी तरह मंदाकिनी घाटी में पांच ऐसे जोन हैं, जो डूब रहे हैं। इसका मुख्य कारण क्षेत्र में चल रही सड़क चौड़ीकरण गतिविधियां हैं, जिसकी वजह से घाटी के डूबने की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि चमोली जिले के पाटी टांगरी, पुरसारी, मैथाना, कामेदा क्षेत्र भी सड़क चौड़ीकरण के काम के कारण डूब रहे हैं।

पिछले हफ्ते राज्य में कई राज्य राजमार्गों और राष्ट्रीय राजमार्गों को लगातार भूस्खलन के कारण बंद कर दिया गया था। गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ भटवाड़ी ब्लॉक के स्वर्गगढ़ क्षेत्र में भूस्खलन की वजह से गांवों को जोड़ने वाली सड़क अलग हो गई थी, जिसकी वजह से अयारखल, भेला टिपरी, धरासू जोगत, जसपुर, बथेडी, उदारी, भुक्की कुज्जन और धौंत्री सिरी गांव में आवागमन दो दिन तक बंद रहा।


एक और आपदा को दावत?

जून, 2013 में इसी तरह भारी वर्षा और बादल फटने के कारण अचानक से तेज बाढ़ आई जिससे कई गांवों का सफाया हो गया और कई लोग अपना जान गवां बैठे। आधिकारिक अनुमानों के अनुसार इस बाढ़ से उत्तराखंड के पांच जिले प्रभावित हुए जिसमें 197 लोग मारे गए, 236 घायल हुए और 4,021 बाढ़ के बहाव में बह गए। इस प्राकृतिक आपदा में कुल 2,119 घर पूरी तरह, 3,001 घर बुरी तरह और 11,759 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। केदारनाथ घाटी पूरी तरह से बर्बाद हो गई। इस आपदा का सबसे बड़ा कारण अनियोजित निर्माण और रिवरबेड्स का अतिक्रमण था।

केदारनाथ के पुनर्निर्माण और राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वर्तमान में एक ऑल वेदर रोड परियोजना चल रही है। चारों मंदिर केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री को ऑल वेदर रोड (हर मौसम लायक सड़क) से जोड़ा जाना है।

सती कहते हैं, "सरकार ने पिछली आपदा से सीख नहीं ली है। वह इसे एक अवसर के रूप में देख रही है। अंधाधुंध और अवैज्ञानिक निर्माण ने केदारनाथ घाटी को खतरे में डाल दिया है क्योंकि हेलीपैड तक में ग्लेशियल मुरायन (पुराने ग्लेशियरों के अवशेष) पाए जाते हैं, जो भविष्य में बहने का कारण बन सकते हैं।"

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "ऐसी स्थिति में यदि इस क्षेत्र में मूसलाधार बारिश और बाढ़ आती है, तो इसके 2013 की बाढ़ की तुलना में बहुत अधिक गंभीर परिणाम हो सकते हैं।" वर्तमान में एक प्रोजेक्ट के तहत यहां के लिए 12 मीटर चौड़ी सड़क प्रस्तावित है। लेकिन पार्किंग की अपर्याप्त सुविधाओं और भारी निर्माण के कारण पहाड़ी क्षेत्र को होने वाले पारिस्थितिकी नुकसान के बारे में बिल्कुल सोचा नहीं गया है।


पहाड़ी राज्य के लिए रडार

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पास राज्य में बेहतर मौसम पूर्वानुमान सुविधाओं की एक योजना है। वर्तमान में राज्य में मौसम की भविष्यवाणी उपग्रह, सिनोप्टिक और स्वचालित प्रणालियों का उपयोग करके की जाती है।

सिंह ने बताया, "मौसम की भविष्यवाणी को सही समय पर करने के लिए राज्य में जल्द ही मुक्तेश्वर, सुरकंडा देवी (धनोल्टी) और पौड़ी में रडार स्थापित किए जाएंगे। यह हर 10-15 मिनट में क्लाउड ग्रोथ, वर्षा की तीव्रता और वर्षा की वास्तविक समय निगरानी करने में मदद करेगा।" उन्होंने कहा, "रडार डेटा का उपयोग करके विशिष्ट ब्लॉकों और स्थानों के लिए एक या दो घंटे पहले चेतावनी जारी की जा सकती है।"

इसके साथ ही राज्य सरकार ने हाल ही में भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान विस्थापित हुए 5,000 लोगों को पुनर्वासित करने के लिए राज्य के प्रत्येक जिले में आश्रय घरों के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।

वहीं राज्य में एक सामुदायिक रेडियो, 'मंदाकिनी की आवाज' की संस्थापक सरिता थॉमस के अनुसार संचार आपदा प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, "सामुदायिक भागीदारी और सहभागिता के बिना चेतावनी और अलर्ट बेकार हो सकते हैं। लोगों को जागरूक करने के लिए उन्हें इस तरह की आपदा को कम करने के तरीकों पर शिक्षित और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।"

थॉमस पिछले आठ वर्षों से मंदाकिनी घाटी में स्थानीय समुदायों के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने ग्रामीण जगहों में लोगों को शामिल करने, सूचित करने और शिक्षित करने के लिए सामुदायिक रेडियो की शुरूआत की थी। रेडियो का उपयोग यहां विभिन्न गांवों में सूचना प्रसारित करने के लिए किया जाता है।

वर्तमान में राज्य प्रशासन बाढ़ के प्रभावों को कम करने और इनसे निपटने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहीहै। बागेश्वर की आपदा प्रबंधन अधिकारी शिखा सुयाल ने गांव कनेक्शन को बताया कि सभी जिला प्रमुख अलर्ट पर हैं। उन्होंने बताया, "तहसीलदारों, ग्राम प्रधानों और स्थानीय ग्राम निकायों के साथ सभी लोगों को घर के अंदर रहने और नदियों के पास न जाने की सलाह दी गई है।"

चूंकि संचार तकनीक आपदा प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार है, ऐसे में सुयाल और उनकी टीम एक व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से स्थानीय मीडिया और लोगों को नदियों और बारिश के पैटर्न और जल स्तर के बारे में नियमित रूप से अपडेट करती रहती है।

पौड़ी में आपदा प्रबंधन अधिकारी दीपेश चंद्र काला के अनुसार मलबे से ब्लॉक हुई सड़को को साफ करने के लिए क्षेत्र में 47 जेसीबी तैनात की गई हैं। साथ ही आपातकाल की स्थिति में ग्राम पंचायतों से समन्वय के लिए उन्हें पहले से ही सैटेलाइट फोन उपलब्ध कराए गए हैं।

मेघा प्रकाश देहरादून, उत्तराखंड में स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस स्टोरी को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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