खनन से संबंधित परिवहन दुर्घटनाओं में 7 दिनों के भीतर 46 लोगों की मौत

पिछले साल 2 दिसंबर के बाद से, रेत और पत्थर के खनन और उनके परिवहन से संबंधित दुर्घटनाओं में कम से कम 57 लोगों की मौत हुई है जबकि 37 लोग घायल हुए हैं। कर्नाटक, गुजरात और पश्चिम बंगाल में 15 जनवरी से 21 जनवरी के बीच इनमें से 46 लोगों की मौत हुई है।

Shivani GuptaShivani Gupta   8 Feb 2021 10:18 AM GMT

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खनन से संबंधित परिवहन दुर्घटनाओं में 7 दिनों के भीतर 46 लोगों की मौत

इस साल 15 से 21 जनवरी के बीच, खनन के बाद खनिजों के परिवहन के दौरान चार दुर्घटनाएँ हुई। इनमें से ज्यादातर मामले अवैध खनन के हैं। इन मामलों में कर्नाटक, गुजरात और पश्चिम बंगाल में कम से कम 46 लोगों की मौत हुई है जबकि 31 लोग घायल हुए हैं।

ये सभी दुर्घटनाएँ या तो ओवरलोड बोल्डर ट्रकों, अवैध पत्थर खदानों के लिए विस्फ़ोटक ले जाने वाली लॉरी या खनन गतिविधियों में शामिल रेत ट्रकों और टिपर के चालकों की लापरवाही के कारण हुईं हैं।

नदियों से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले एक नेटवर्क, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रीवर्स और पीपुल (SANDRP) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले महीने 2 दिसंबर से, रेत और पत्थर का खनन, और उनके परिवहन संबंधी दुर्घटनाओं और हमलों में कम से कम 57 लोग मारे गए हैं जबकि 37 घायल हो गए।

SANDRP के एसोसिएट समन्वयक भीम सिंह रावत ने गाँव कनेक्शन को बताया, '' इस तरह की मौतों के पीछे गैर-कानूनी खनन ही मूल कारण है। इन दुर्घटनाओं में से अधिकांश रात के अंधेरे में या तड़के हुई हैं।

रावत कहते हैं, "सैकड़ों-हजारों भारी ट्रक अक्सर ओवरलोड होते हैं। इन्हें मुख्य रास्तों के बजाए अंदर की सड़कों से ले जाया जाता है। इससे सड़कों को नुकसान पहुंचता है, बड़े-बड़े गड्ढे हो जाते हैं, फिर यही दुर्घटना के कारण बनते हैं। अधिक पैसा कमाने के लिए ड्राइवर ज्यादा काम करते हैं, और वे जल्दबाजी में गाड़ी चलाते हैं। इससे दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है।"

जनवरी 2019 और नवंबर 2020 के बीच, अवैध रेत खनन के कारण देश में कम से कम 193 लोगों की मौत हुई है। कड़े क़ानूनों के बावजूद, रेत माफियाओं का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है। इससे लोगों की मौत तो हो ही रही है, इसके साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है।

नदी से अवैध बालू खनन कर ले जाता एक ट्रक (फोटो- भीम सिंह रावत)

कर्नाटक में पत्थर की अवैध खदान

21 जनवरी को, कर्नाटक के शिवमोगा जिले के अब्बलगेरे तालुका के हुनासोडु गाँव में पत्थर की एक अवैध खदान के पास जिलेटिन से भरे एक ट्रक में ज़ोरदार विस्फोट हुआ। इस दुर्घटना में छह लोगों की मौत हो गई।

विस्फोट का प्रभाव कथित तौर पर इतना शक्तिशाली था कि लगभग 20 किलोमीटर के दायरे में इसके झटके महसूस किए गए। ख़बरों के मुताबिक विस्फोट से न केवल घरों की दीवारें हिला गईं, बल्कि इससे खिड़की के शीशे भी चकनाचूर हो गए और सड़कों और कुछ घरों की दीवारों में दरारें आ गई।

'गुगल अर्थ' की तस्वीरों से पता चलता है कि इंसानी आबादी के आसपास के इलाकों में कई पत्थरों की खदानें हैं। समाचार रिपोर्टों का दावा है कि गिरफ्तार किए गए लोगों के पास खनन के लिए आवश्यक अनुमति नहीं थी। उनके पास विस्फोटक खरीदने का लाइसेंस भी नहीं था।

SANDRP की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में केवल 750 खनन साइट को ही आधिकारिक मंजूरी मिली हुई है, जबकि लगभग 2,000 से अधिक खनन साइट अवैध रुप से संचालित हैं।

इसके अलावा, 15 जनवरी को बालू टिपर से संबंधित एक और खतरनाक सड़क दुर्घटना हुई, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई, जबकि छह लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह दुर्घटना पुणे- बेंगलुरु राष्ट्रीय राजमार्ग पर इटिगट्टी क्रॉसिंग पर हुई, जो राज्य के धारवाड़ शहर से लगभग 13 किलोमीटर दूर है।

धारवाड़ के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि दावणगेरे सेंट पॉल कॉन्वेंट स्कूल की 17 पूर्व छात्राएं मिनी बस में तीन दिन की छुट्टी के लिए गोवा जा रही थीं। तभी रेत से भरा एक ट्रक उनकी बस से टकरा गया।

यह दुर्घटना कथित तौर पर तब हुई जब तेज़ रफ्तार से जा रहे बालू टिपर चालक ने दूसरे वाहन को ओवरटेक करने के दौरान नियंत्रण खो दिया। रिपोर्ट के अनुसार, दोनों गाड़ियों के ड्राइवरों की भी मौत हो गई।


पश्चिम बंगाल में ओवरलोड ट्रक

कर्नाटक में शिवमोगा विस्फोट के दो दिन पहले, पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर धुपगुड़ी के मेन ताली इलाके में जलधका नदी पुल के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर 19 जनवरी को एक दुर्घटना की सूचना मिली थी।

नदी से खनिजों को ले जा रहे एक ट्रक ड्राइवर ने अपना नियंत्रण खो दिया। इसके बाद ट्रक, एक डिवाइडर से टकरा गया और फिर बोल्डर विपरीत दिशा से आ रही दो गाड़ियों के यात्रियों पर गिर गए। इस दुर्घटना में 14 लोग मारे गए और 18 घायल हो गए। मृतकों में चार बच्चे और छह महिलाएं शामिल थीं। मरने वालों में छह लोग एक ही परिवार के थे।

हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि वह ट्रक बोल्डर को वैध तौर पर ले जा रहा था या अवैध तौर पर। ट्रक ओवरलोडेड क्यों था और यह ट्रैफिक के वक्त क्यों चल रहा था, ये सवाल भी अब तक अनसुलझे ही हैं। SANDRP के मुताबिक यह पता चला है कि ट्रक के फिटनेस प्रमाण पत्र की वैधता समाप्त हो गई थी।

हरियाणा के यमुना नगर में यमुना नदी के किनारे होता अवैध खनन (फोटो- भीम सिंह रावत/ संदर्प)

गुजरात में रेत डंपर की दुर्घटना में 15 की मौत

इस दौरान, उसी दिन 19 जनवरी की सुबह, गुजरात के सूरत से लगभग 50 किलोमीटर दूर किम मांडवी एनएच-48 पर कोसम्बा गाँव के पास सड़क किनारे सो रहे 22 लोगों के ऊपर रेत का एक डंपर चढ़ गया।

इस दुर्घटना में 12 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, तीन ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ दिया और आठ घायल हो गए। ये सभी मृतक प्रवासी श्रमिक थे और राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के थे।

जनवरी 2019 और नवंबर 2020 के बीच, देश में नदी रेत के अवैध खनन की घटनाओं/दुर्घटनाओं के कारण 193 लोगों की जान चली गई। साल 2018 में, अवैध रेत खनन के कारण 28 लोगों की मौत हुई थी।

हरियाणा के कनालसी गांव में यमुना नदी में होता बालू खनन (फोटो- सुरेंद्र सोलंकी)

सरकारी आंकड़े भी देश में अवैध रेत खनन की ओर इशारा करते हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस साल राज्यसभा के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की जिसके अनुसार साल 2013 और 2017 के बीच अवैध खनन के 4.16 लाख मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और कर्नाटक से सबसे अधिक मामले सामने आए हैं।

भीम सिंह रावत कहते हैं, "क़ानूनों के बावजूद, अवैध खनन और अवैध परिवहन क्यों हो रहे हैं? यह खनन शासन प्रणाली में चल रही गंभीर गड़बड़ी की ओर इशारा करता है।"

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