महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में 'पर्यावरण' कहां?

जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर राजनीतिक दल कितना गंभीर हैं, यह उनके चुनावी घोषणा पत्र को देखने से पता चलता है।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   18 Oct 2019 11:40 AM GMT

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019: पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में पर्यावरण कहां?

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 21 अक्टूबर को होने हैं। राजनीतिक पार्टियों ने देर से ही सही अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्रों को जारी कर दिया। किसी ने किसानों की आय को दो सालों में दोगुनी करने की बात कहीं तो किसी ने महाराष्ट्र को सूखे से मुक्त करने की पुरानी चुनावी वादे को दोहराया। बात कही गई थी। वहीं कुछ पार्टियों ने राज्य के नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने की बात कही, तो कुछ ने शहरी वनों के संरक्षण को भी अपने घोषणा पत्र में जगह दी।

महत्वपूर्ण बात यह है कि इन घोषणा पत्रों में 'जलवायु परिवर्तन' के मुद्दे जगह मिली, लेकिन कोई भी पार्टी इसके प्रति अधिक गंभीर नहीं दिखी। राज्य में सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 15 अक्टूबर को अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में महाराष्ट्र को सूखे मुक्त करने की बात कही गई, जिसकी घोषणा सीएम देवेंद्र फड़नवीस ने 2014 में सत्ता प्राप्त करने के बाद भी की थी।

पांच साल पहले जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने राज्य की सत्ता संभाली थी तो उन्होंने राज्य को सूखा मुक्त करने के लिए 'जलयुक्त शिवार अभियान' नाम के एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी। लेकिन इन पांच सालों में राज्य को तीन बार भीषण सूखे का सामना करना पड़ा। इस साल की शुरुआत में भी राज्य सूखे से जूझ रहा था। मराठवाड़ा और विदर्भ में अभी भी स्थिति 'सामान्य' नहीं है।

मराठवाड़ा में सालाना बारिश का औसत (Long Period Average-LPA) 666.8 मिलीमीटर है लेकिन 2019 में इस क्षेत्र में सिर्फ 590.7 मिलीमीटर बारिश हुई। रिकॉर्ड में लिखा जाएगा कि 2019 में महाराष्ट्र में सामान्य से 32 फीसदी अधिक बारिश हुई। लेकिन इस रिकॉर्ड में मराठवाड़ा और विदर्भ के किसानों का दर्द शामिल नहीं होगा।

पिछले पांच साल में महाराष्ट्र में तीन बार सूखा पड़ा है। (तस्वीर- निधि जम्वाल)

इस साल राज्य ने सूखे के साथ-साथ बाढ़ की दोहरी मार झेली। अगस्त में कोल्हापुर, सांगली और पुणे में बाढ़ ने भीषण तबाही मचाई। भीषण बारिश की वजह से पुणे में दीवारें गिरी और लोगों की मौतें हुई। मुंबई में भी जब दो हफ्ते के देरी के बाद मानसून ने दस्तक दी तो वहां भी बाढ़ से तबाही मची।

राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने में मुंबई में आई बाढ़ के लिए 'जलवायु परिवर्तन' को दोषी माना था। यह साफ है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से राज्य में सूखे और बाढ़ की स्थिति एक साथ देखी जा रही है। लेकिन हैरत की बात यह है कि बीजेपी के 44 पन्नों के घोषणा पत्र में 'जलवायु परिवर्तन' को कहीं भी जगह नहीं मिली।

बीजेपी के घोषणापत्र में 'पर्यावरण' शब्द का उपयोग संभवतः सिर्फ एक बार हुआ है, जिसमें पार्टी ने पर्यावरण संबंधी विषयों पर एक बेहतर रोड-मैप तैयार करने की बात कही गई है। इस घोषणा पत्र में 'जंगल' का भी जिक्र सिर्फ एक बार हुआ है और कहा गया है कि वन विकास केंद्रों और संबंधित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाएगा। लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर रुप से प्रभावित करने वाली 'वायु प्रदूषण' का जिक्र इस घोषणा पत्र में कहीं भी नहीं है।

'जलयुक्त शिवार अभियान', जिसे पांच साल पहले सूखे से लड़ने का एक प्रमुख अभियान माना जा रहा था, उसे अब बीजेपी महत्वपूर्ण नहीं मान रही है। अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस का सारा ध्यान 11 बांधों (डैम) को जोड़ने वाली 16000 करोड़ रुपये की महत्वकांक्षी परियोजना पर है, जिससे मराठवाड़ा के सूखे को दूर करने की बात की जा रही है। हालांकि कई विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने इस परियोजना पर अपनी आपत्ति जताई है।

बीजेपी के घोषणा पत्र में नवी मुंबई में एक अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की बात भी की गई है, जिसका मतलब है कि इस इलाके में पड़ने वाली एक नदी के रास्ते को मोड़ा जाएगा और सदाबहार जंगल (मैंग्रूव) की कटाई होगी। इसके अलावा इस परियोजना क्षेत्र में पड़ने वाली एक छोटी पहाड़ी को भी नुकसान पहुंचेगा। इस घोषणा पत्र में मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने का भी जिक्र है, जिसका मतलब है कि 54000 सदाबहार जंगलों को नुकसान पहुंचेगा।

बीजेपी मैनिफेस्टो में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में हुई राज्य की प्रगति की भी बात की गई है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि महाराष्ट्र में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर ग्राउंड वाटर की कमी की वजह से सोलर पम्प महीनों तक काम नहीं करते हैं।

महाराष्ट्र में कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर ग्राउंड वाटर की कमी की वजह से सोलर पम्प काम नहीं करते। (फोटो- निधि जम्वाल)

विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने अपने घोषणा पत्र में 'स्वच्छता और पर्यावरण' को विशेष महत्व दिया है। शिवसेना ने राज्य में इलेक्ट्रिक व्हिकल नीति लाने की भी बात कही है। इसके अलावा जिला परिषद स्तर पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, राज्य की 21 नदियों को प्रदूषण मुक्त और सदाबहार वनों को संरक्षण देने की भी बात शिवसेना के घोषणा पत्र में की गई है।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए मुंबई और ठाणे क्षेत्र में शहरी जंगलों को बढ़ावा देने की बात भी शिवसेना के घोषणा पत्र में की गई है। हालांकि, 10 दिन पहले ही ग्रेटर मुंबई के 'आरे' के जंगलों में लगभग 2100 पेड़ों को कांटा गया, जो शहरी जंगल कR श्रेणी में आता है। इस दौरान शिव सेना के 'युवा सेना' के अध्यक्ष आदित्य ठाकरे ने ट्वीटर पर लगातार इसका विरोध किया जबकि ग्रेटर मुंबई के इस क्षेत्र की नगर निगम में शिव सेना का ही कब्जा है।

अगर हम विपक्षी दलों कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), सीपीआई (एम) और किसान-श्रमिक पार्टी की संयुक्त घोषणापत्र की बात करें तो इस घोषणा पत्र में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को अलग से जगह दी गई है और कहा गया है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी सरकार कठोरता से नीति बनाएगी और उनका पालन करेगी।

विपक्षी पार्टियों के इस संयुक्त घोषणा पत्र में बाढ़, सूखा, लू और ओलावृष्टि जैसी चरम पर्यावरणीय घटनाओं का जिक्र किया गया है और आपदा प्रबंधन प्रणाली को मजबूत करने की बात की गई है। घोषणा पत्र में कहा गया है कि हमारी सरकार शहरी जंगलों के संरक्षण और वायु की गुणवत्ता को बढ़ाने का कार्य करेगी।

मुंबई में रहने वाले पर्यावरणविद और 'कन्जर्वेशन एक्शन ट्रस्ट' के ट्रस्टी देबी गोयनका कहते हैं, "यह सब बस कहने की बातें हैं, असल में कोई भी पार्टी पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति गंभीर नहीं है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण जैसे शब्द नेता लोग अपनी सुविधानुसार प्रयोग करते हैं।"

पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करने वाली संस्था 'वातावरण' के संस्थापक और निदेशक भगवान केसभात कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन महाराष्ट्र में उनकी ही पार्टी इसके ठीक उलट करती है। एक चीज तो साफ है, कोई भी पार्टी बिना जलवायु परिवर्तन के जिक्र के चुनावों में नहीं उतर सकती। हालांकि वो अपने वादों पर कितना अमल करती है, यह काफी महत्वपूर्ण है।"

"पर्यावरण परिवर्तन हमारी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। बाढ़ और सूखे के इस दौर में किसानों की आय दोगुनी करने की बात करना महज भाषणबाजी है। इसी तरह बांधों को जोड़ने की बात कहकर सूखे वाले क्षेत्र में पानी पहुंचाने की भी बात कहना भी सिर्फ सार्वजनिक पैसों की बर्बादी है।", भगवान केसभात आगे कहते हैं।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सात साल में बनी 'महाराष्ट्र राज्य जलवायु कार्य योजना' कई मसलों पर कमजोर है। अत्यधिक बारिश के इस दौर में खुले घास के मैदान, तालाब और नहर, जल संरक्षण के बेहतर साधन बन सकते हैं। नदियों की जमीन को अतिक्रमण से बचाया जाए और सुंदरीकरण के नाम पर उसके किनारों को कंक्रीट से बांधा ना जाए।

पांच करोड़ रोजगार के साथ राज्य को एक ट्रिलियन यूएस डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कहना तो आसान है लेकिन पर्यावरणीय चुनौतियों को दरकिनार कर इन लक्ष्यों को शायद ही पाया जा सके!

अनुवाद- दया सागर

इस स्टोरी को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- Manifestos mere lip service to the environment

   

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