कोविड -19 ने ना सिर्फ नियम बदले, देह व्यवसाय की परिपाटी ही बदल दी

कोरोना लॉकडाउन के दौरान महाराष्ट्र के सेक्स वर्कर्स को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा और वे भूखमरी के कगार तक पहुंच गईं। लेकिन वे निश्चित हैं कि सेक्स व्यापार बंद नहीं होगा और न्यू नार्मल में 'सुरक्षित रहने' के नए तरीके तैयार करने होंगे।

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कोविड -19 ने ना सिर्फ नियम बदले, देह व्यवसाय की परिपाटी ही बदल दी

- तनवी देशपांडे

मुंबई: दुनिया भर को घुटनों पर ला चुकी कोरोना महामारी ने जिंदगी और मौत के नियम बदल दिए हैं। जीने और रहने की शर्तें बदल दीं, ज़िंदगी जीने का नजरिया बदल दिया। इन बदलावों का बड़ा असर सेक्स वर्कर्स के व्यवसाय पर भी पड़ा है।

लॉकडाउन ने देशभर में इस व्यवसाय को लगभग पूरी तरह ठप कर दिया था। सामाजिक और शारीरिक दूरी, फेस मास्क और साफ़-सफ़ाई अब इस व्यवसाय के नए पर्याय बन गए हैं। कोरोना वायरस से बचने के मूल उपाय बनी दो गज की दूरी और मास्क देह व्यवसाय की परिपाटी के बिल्कुल विपरीत हैं।

हालांकि जब बात पेट पालने की हो तो रास्ता भी निकलता है। देह व्यापार में लगे लोगों ने कोरोना के बीच अपने काम के लिए नई गाइडलाइन बना ली है। देह व्यवसाय के काम से जुड़े कई इलाकों में अब साफ़-सफ़ाई, फेस मास्क पहनने और चुम्बन न करने की शर्त पर काम शुरू हो गया है।

महाराष्ट्र के कमाठीपुरा में लगभग 5000 देह व्यवसायी रहते हैं। इन्हीं में से एक रजनी ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमारे लिए यह बहुत मुश्किल भरा दौर है। लॉकडाउन के दौरान बचत के सारे पैसे ख़त्म हो गए हैं। अब काम किसी तरह शुरू भी हुआ तो पूरे पैसे कहाँ मिलते हैं? हमारे ज़्यादातर ग्राहक श्रमिक मजदूर हैं, जो लॉकडाउन की वजह से शहर छोड़कर जा चुके हैं।"

कमाठीपुरा की ही मुमताज़ अंसारी ने गांव कनेक्शन को बताया, "उसके तीन बच्चे हैं। अगर सिर्फ अपना पेट पालना होता तो कब का यह धंधा छोड़ चुकी होती। पर मैं चाहती हूं कि दोनों बेटियों को पढ़ाकर अच्छा मुकाम दिलाऊँ। एक विकलांग बच्चा है जिसे हमेशा इलाज़ और दवाईओं की ज़रूरत रहती है। यही नहीं 70 साल की की बूढी माँ भी मेरे ही भरोसे है। इसके चलते इस पेशे में रहना मेरी मजबूरी है।"

मुमताज बताती हैं कि लॉकडाउन के पहले 12000 से 15000 रुपये महीने जीवनयापन के लिए मिल जाते हैं, पर अब बहुत मुश्किल भरा दौर है। लॉकडाउन के दौरान बचत के सारे पैसे खत्म हो गए। बिजली और मकान के किराये में कोई कटौती नहीं की गई।

बकौल मुमताज, "मैंने और मेरे साथियों ने मिलकर अपने काम को बरकररार रखने का तरीका निकाला है। कोरोना वायरस से बचने के लिए हमने अपने ग्राहकों को साफ़ सफ़ाई रखने, चेहरे और हाथ न छूने और अपने हाथ साबुन से धोने जैसी शर्तों का पालन करने को कहा है। मौजूदा हालत से हर कोई वाकिफ है, इसलिए हमें इसमें कोई परेशानी नहीं हुई। हमारे यहां आने वाले भी अपने लिए चिंतित रहते हैं इसलिए वे हमारी शर्तों को मान लेते हैं। ऐसे में इस तरह हमारी गाड़ी धीरे ही सही पर चल निकली।"


खुद को सुरक्षित रखना एकमात्र उपाय

कोरोना के चलते बदले हालात में हर इंसान को खुद को सुरक्षित रखने का संकल्प लेकर चलना होगा। दो गज की दूरी, फेस मास्क पहनना, बार-बार साबुन से हाथ धोना आज के दौर की अनिवार्यता बन गई है। इनके आधार पर अब काम धंधे वापस शुरू किये जा रहे हैं।

देह व्यापार से जुड़े लोगों के लिए काम करने वाले राष्ट्रीय नेटवर्क (NNSW) के कोषाध्यक्ष और पुरुष देह व्यवसायी ने कहा, "हमने मिलकर दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। नीदरलैंड की रूटर्स रिपोर्ट की तर्ज पर देह व्यवसायियों की इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने के लिए हम उनको समय-समय पर जानकारियां देते रहते हैं। व्हाट्सएप के जरिये लोगों को जोड़ा गया है। उन्हें सफाई, सुरक्षित रहने, श्वसन और गरारा करने, योग करने तथा अन्य व्यायाम के वीडियो भेजते हैं।"

"NNSW के 1.5 लाख सदस्य हैं। देश के सात राज्यों से जुड़े इन सदस्यों में पुरुष और महिलाओ के साथ-साथ ट्रांसजेंडर्स भी शामिल हैं। हम इन्हें विटामिन, ज़िंक की दवाईयां और सैनेटाइजरउपलब्ध कराते हैं। हम और हमारे ग्राहक सुरक्षा के सारे मानदंड अपनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। कोविड-19 से बचने के लिए ऐहतियात बरतने में ग्राहक हमारा पूरा सहयोग कर रहे हैं। हम अपनी असली पहचान दुनिया से छिपाकर रखते हैं। फ़ोन या वीडियो कॉल के ज़रिये, वीडियो लीक होने का डर बना रहता है और ग्राहक हमें पैसे भी नहीं देते। इसलिए हमने इस माध्यम को अस्वीकार कर दिया है," देह व्यवसाय के राष्ट्रीय नेटवर्क के समन्वयक अमित कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया। इसके अलावा थर्मल स्कैनिंग की भी शुरुआत कर रहे हैं।


उहापोह से भरी है धंधे में शामिल लोगों की जिंदगी

इस धंधे में शामिल हर किसी को अपने हिस्से का संघर्ष तो झेलना ही पड़ता है। कोरोना महामारी के दौर बदनामी भरी ज़िन्दगी जीने के लिए बने ये लोग और मुसीबत में हैं। इस धंधे से जुड़े लोगों के राष्ट्रीय नेटवर्क की रिपोर्ट कहती है कि महाराष्ट्र में 65 हज़ार सेक्स वर्कर्स हैं। इनमें 20,988 महिलाएं हैं। इनमें से केवल 8,730 महिलाओं को राशन कार्ड मिले हैं।

फालका लैंड रोड के समीप 54 प्रतिशत लोगों ने कम ब्याज पर कर्ज लिया है। पिछले ऋण की भरपाई हो नहीं पाई थी। इसी बीच लॉकडाउन होने से घर में रखी पूंजी भी खत्म हो गई। हालात यह है कि काम बंद होने से 15 अप्रैल के बाद इनके पास सिर्फ कुछ 10 दिनों तक का राशन बचा था। जिनके पास खाने को पैसे नहीं, वे घर और बिजली का बिल कहाँ से चुकाएंगे। बच्चों की पढ़ाई रुक गई है और आलम यह हो गया है कि मकान मालिकों ने बिजली काट दी है। जीवन में अंधेरा घर में भी अंधेरा। बड़ी बात यह है कि अंधेरे से निकलने की सूरत ही नहीं दिखती है।


किसी बुरे सपने की तरह है यह विपदा

एक सेक्स वर्कर मीना गांव कनेक्शन से कहती है, बच्चों की पढ़ाई और हॉस्टल फ़ीस न दे पाने की वजह से बच्चे घर वापस आ गए हैं। यह बुरे सपने की तरह है। मुंबई की गैर लाभकारी संस्था क्रांति में कार्यरत संध्या दिल्ली के प्राइवेट कॉलेज की छात्रा हैं और फिलहाल मुंबई में हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन से बताया कि सेक्स वर्कर्स के बच्चे बदनामी का ताज़ सिर पर पहनकर चलते हैं। अब यह सब परेशानियां हों तो जीना मुश्किल हो जाता है। अब घरों को खाली करने को कहा जा रहा है। HIV से पीड़ित सेक्स वर्कर्स के पास न तो इलाज़ के पैसे हैं और न ही खाने को।

भारत में अभी भी अवैध है देह व्यवसाय

भारत में गुमनामी और बदनामी भरा रेड लाइट एरिया और उनमें काम को अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956 के तहत अवैध माना जाता है। मुंबई के ही एक कार्यकर्ता हरीश अय्यर इस पेशे को कानूनी वैधता दिलाना चाहते हैं। उनका कहना है कि सेक्स वर्कर्स को भी उनके हिस्से का अधिकार मिलना चाहिए। उन्हें और उनके परिवार को समाज में इज़्ज़त मिलनी चाहिए। सेक्स वर्कर्स और गैर लाभकारी संस्था येल स्कूल ऑफ़ मेडिसिन तथा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी और उनके पेशे को भी नया प्रारूप देने की जरूरत है।


कहीं कोरोना संक्रमण बढ़ा तो नहीं रहे सेक्स वर्कर

कुछ शोध यह कहते हैं कि इस पेशे की वजह से कोरोना महामारी का प्रसार और तेज़ी से हो रहा है। जब तक रेड लाइट एरिया बंद थे तब तक केस कम थे। पिछले 45 दिनों में संख्या घटकर 21 फीसदी और पहले 60 दिनों में मृत्युदर घटकर 2.8 फीसदी हो गई थी।

बकौल पाटिल सिर्फ इन्हें दोष देना गलत है। राज्य सरकारों को सेक्स वर्कर्स के ऋण वसूली और किराया देने पर छह महीने की रोक लगानी चाहिए। सेक्स वर्कर्स के अखिल भारतीय नेटवर्क के अनुसार सरकार को सेक्स वर्कर्स को मुफ़्त राशन, बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई और इलाज के लिए 5000 रुपये की सुविधा देनी चाहिए। ताकि इन्हें भी ऐसा लगे की हम भी समाज का हिस्सा हैं।

अनुवाद- इंदु सिंह

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